यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक हिप्पोक्रेटस का मानना था कि निद्रा के समय आत्मा शरीर से अलग होकर विचरण करती है और ऐसे में जो देखती है या सुनती है, वही स्वप्न है। अरस्तू ने अपनी पुस्तक 'पशुओं के इतिहास' में लिखा है कि केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु भेड़, बकरियाँ, गाय, कुत्ते, घोड़े इत्यादि पशु भी स्वप्न देखते हैं।
प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार, आत्मा चौरासी लाख योनियों में जन्म लेने और भ्रमण करने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त करती है। स्वप्न के माध्यम से वह विभिन्न योनियों में अर्जित अनुभवों का पुनः स्मरण करती है।
स्वप्नों के प्रकार * दृष्ट- जो जाग्रत अवस्था में देखा गया हो उसे स्वप्न में देखना। * श्रुत- सोने से पूर्व सुनी गई बातों को स्वप्न में देखना। * अनुभूत- जो जागते हुए अनुभव किया हो उसे देखना। * प्रार्थित- जाग्रत अवस्था में की गई प्रार्थना की इच्छा को स्वप्न में देखना। * दोषजन्य- वात, पित्त आदि दूषित होने से स्वप्न देखना। * भाविक- जो भविष्य में घटित होना है, उसे देखना। उपर्युक्त सपनों में केवल भाविक ही विचारणीय होते हैं।
स्वप्न फल प्रकृति अपने ढंग से भावी शुभाशुभ संकेत देती है। स्वप्न भी इसका माध्यम होते हैं। स्वप्नों के फलों की विवेचना के संदर्भ में भारतीय ग्रंथों में इनके देखे जाने के समय, तिथि व अवस्था के आधार पर इनके परिणामों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। इनके अनुसार-
* शुक्ल पक्ष की षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी तथा चतुर्दशी तिथि को देखा गया स्वप्न शीघ्र फल देने वाला होता है।
* पूर्णिमा को देखे गए स्वप्न का फल अवश्य प्राप्त होता है।
* शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया व कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवमी को देखा गया स्वप्न विपरीत फल प्रदान करता है।
* शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, कृष्ण पक्ष की द्वितीया के स्वप्न का देरी से फल प्राप्त होता है।
* शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व पंचमी को देखे गए स्वप्न का फल दो माह से दो वर्ष के अंदर प्राप्त होता है।
* रात्रि के प्रथम, द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ प्रहर के स्वप्नों का फल क्रमशः एक वर्ष, आठ माह, तीन माह व छः दिन में मिलता है।
* उषाकाल में देखे गए स्वप्न का फल दस दिन में मिलता है।
* सूर्योदय से पूर्व देखे जाने वाल स्वप्न का फल अतिशीघ्र प्राप्त होता है।