सप्तश्रृंगी देवी का अर्धशक्तिपीठ
-अभिनय कुलकर्णी
महाराष्ट्र में देवी के साढ़े तीन शक्तिपीठ में से अर्धशक्तिपीठ वाली सप्तश्रृंगी देवी नासिक (saptashrungi devi temple vani nashik) से करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर 4800 फुट ऊँचे सप्तश्रृंग पर्वत पर विराजित हैं। सह्याद्री की पर्वत श्रृंखला के सात शिखर का प्रदेश यानी सप्तश्रृंग पर्वत, जहाँ एक तरफ गहरी खाई और दूसरी ओर ऊँचे पहाड़ पर हरियाली के सौंदर्यं के बीच विराजित देवी माँ प्रकृति से हमारी पहचान कराती प्रतीत होती हैं।वीडियो देखने के लिए उपर के फोटो पर क्लिक करें और फोटो गैलरी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें- कहा जाता है कि जब महिषासुर राक्षस के विनाश के लिए सभी देवी-देवताओं ने माँ की आराधना की थी तभी ये देवी सप्तश्रृंगी रूप में प्रकट हुई थीं। भागवत कथा में पूरे देश में एक सौ आठ शक्तिपीठ मौजूद होने का उल्लेख किया गया है जिसमें से साढ़े तीन महाराष्ट्र में हैं। सप्तश्रृंगी को अर्धशक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा किसी भी पुराण में अर्धशक्तिपीठ होने का उल्लेख नहीं किया गया है। इस देवी को ब्रह्मस्वरूपिणी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ब्रह्म देवता के कमंडल से निकली गिरिजा महानदी देवी सप्तश्रृंगी का ही रूप है। सप्तश्रृंगी की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के त्रिगुण स्वरूप में भी आराधना की जाती है। कहते हैं कि जब भगवान राम, सीता और लक्ष्मण नासिक के तपोवन में पधारे थे तब वे इस देवी के द्वार पर भी आए थे। ऐसी दंतकथा है कि किसी भक्त द्वारा मधुमक्खी का छत्ता तोड़ते समय उसे यह देवी की मूर्ति दिखाई दी थी। पर्वत में बसी इस देवी की मूर्ति आठ फुट ऊँची है। इसकी अठारह भुजाएँ हैं। देवी सभी हाथों में शस्त्र लिए हुए हैं जो कि देवताओं ने महिषासुर राक्षस से लड़ने के लिए उन्हें प्रदान किए थे।
इनमें शंकरजी का त्रिशूल, विष्णु का चक्र, वरुण का शंख, अग्नि का दाहकत्व, वायु का धनुष-बाण, इंद्र का वज्र व घंटा, यम का दंड, दक्ष प्रजापति की स्फटिकमाला, ब्रह्मदेव का कमंडल, सूर्य की किरणें, कालस्वरूपी देवी की तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल व कड़ा, विश्वकर्मा का तीक्ष्ण परशु व कवच, समुद्र का कमलाहार, हिमालय का सिंहवाहन व रत्न शामिल हैं। प्रतिमा सिंदुरी होने के साथ ही रक्तवर्ण है जिसकी आँखें तेजस्वी हैं।मुख्य मंदिर तक जाने के लिए करीब 472 सीढि़याँ चढ़ना पड़ती हैं। चैत्र और अश्विन नवरात्र में यहाँ उत्सव होते हैं। कहते हैं कि चैत्र में देवी का रूप हँसते हुए तो नवरात्र में गंभीर नजर आता है। इस पर्वत पर पानी के 108 कुंड हैं, जो इस स्थान की सुंदरता को कई गुना बड़ा देते हैं।
कैसे पहुँचें:-वायु मार्ग: सप्तश्रृंगी देवी के दर्शन हेतु जाने के लिए सबसे नजदीक मुंबई या पुणे का विमानतल है जहाँ से बस या निजी वाहन से नासिक पहुँचा जा सकता है।रेल मार्ग: सभी मुख्य शहरों से नासिक के लिए आसानी से रेल उपलब्ध है।सड़क मार्ग: सप्तश्रृंगी पर्वत नासिक से 65 किमी की दूरी पर स्थित है जहाँ पहुँचने के लिए महाराष्ट्र परिवहन निगम के साथ निजी वाहन भी आसानी से उपलब्ध हैं।