रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. धर्मयात्रा
  4. »
  5. आलेख
  6. तिरुवनंतपुरम की आट्टुकाल देवी का मंदिर
Written By WD

तिरुवनंतपुरम की आट्टुकाल देवी का मंदिर

attukal bhagavathy temple thiruvananthapuram | तिरुवनंतपुरम की आट्टुकाल देवी का मंदिर
- शशिमोहन
केरल के तिरुवनंतपुरम शहर में स्थित आट्टुकाल भागवती मंदिर ( attukal bhagavathy temple thiruvananthapuram) की शोभा ही अलग है। धर्मयात्रा की इस कड़ी में इस बार हम इस तीर्थ के विषय में ही जानकारी दे रहे हैं। कलिकाल के दोषों का निवारण करने वाली वही पराशक्ति जगदम्बा केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम शहर की दक्षिण-पूर्व दिशा में आट्टुकाल नामक गाँव में भक्तजनों को मंगल आशीष देते हुए विराजती हैं।

वीडियो देखने के लिए फोटो पर क्लिक करें और फोटो गैलरी देखेन के लिए यहां क्लिक करें-

अनंतपुरी असंख्य देव मंदिरों की दिव्य आभा से प्रशोभित नगर है। मोक्षकांक्षी तीर्थाटकों का आशा केन्द्र। पुरुषार्थों को अनुग्रह प्रदान करने वाले भगवान अनंतशायी के दर्शन के लिए भारत के विभिन्न प्रदेशों से समागत होने वाली तीर्थयात्रियों की उपस्थिति से तिरुवनंतपुरम नगर सदैव आबाद रहता है।

मंदिर की उत्पत्ति से संबंधित इतिहास : आट्टुकाल गाँव के प्रमुख परिवार मुल्लुवीड़ के परम सात्विक गृहनाथ को देवी दर्शन का जो अनुभव हुआ, वही मंदिर की उत्पत्ति का आधार है। माना जाता है कि यह देवी पतिव्रताधर्म के प्रतीक रूप में प्रख्यात हुई कण्णकी का अवतार हैं।

पोंकल महोत्सव-
आट्टुकाल मंदिर का सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध उत्सव है पोंकल महोत्सव। यह त्योहार द्राविड़जनों का एक विशिष्ट आचरण है। यह कुंभ के महीने में पूरे नक्षत्र और पौर्णमि दोनों के मिलन मुहूर्त में मनाया जाता है और यह अत्यंत ख्याति प्राप्त है। दिन के समय कीर्तन, भजन बराबर चलते हैं और रात में मंदिर कलाओं एवं लोक नृत्यों आदि के कार्यक्रम हैं। संगीत सभाएँ भी चलती हैं। देश की विविध जगहों से अलंकृत रथ-घोड़े-दीपयष्ठियाँ आदि का जुलूस निकलता है। नारियल के किसलय पत्तों से अथवा चमकते कागजों से अलंकृत तख्ते पर देवी का रूप रखकर दीपयष्ठियाँ बनाई जाती हैं और उन्हें सिर पर रखकर बाजों की सहयात्रा के साथ निकलने वाला जुलूस अत्यंत मनोहारी होता है

WDWD
नौवें दिन त्रिवेन्द्रम नगर की सभी सड़कें आट्टुकाल की तरफ जाती हैं। लगभग पांच किलोमीटर के भीतर जितने भवन हैं उनके आँगन, मैदान, सड़कें जो भी खाली जगह होती है पोंकल का केन्द्र बन जाती है। केरल के बाहर से भी पोंकल नैवेद्य तैयार करने के लिए लाखों स्त्रियाँ एक दिन पहले ही पोंकल क्षेत्र में आकार अपना स्थान निश्चित कर लेती हैं। वे अपने साथ पोंकल के लिए जरूरी चीजें याने चावल, शर्करा, नारियल, लकड़ी आदि लेकर आती हैं। ये सभी चीजें यहाँ भी खरीदी जा सकती हैं।

इतनी बड़ी तादाद में आने वाली स्त्रियों की सुविधा एवं संरक्षण की व्यवस्था अनेक संस्थाओं की तरफ से प्राप्त होती है। पुलिस भी जागरूक रहती है। स्वयंसेवक, सेवा समितियाँ, मन्दिर ट्रस्ट के स्वयंसेवक ये सब हर प्रकार की सेवा के लिए कटिबद्ध रहते हैं। प्रयाग के कुम्भ मेले का स्मरण दिलाता है यह पोंकल मेला।

WDWD
उत्सव का प्रारंभ तभी होता है, जब कण्णकी चरित के आलापन के साथ देवी को कंकण पहनाकर बैठा दिया जाता है। उत्सव के नौ दिनों के बीच में वह सारा चरितगान पूरा का पूरा आलापित हो जाता है। यानी कोटुंगल्लूर देवी की आवभगत कर आट्टुकाल मंदिर में आनीत किया जाता है। सारी घटनाओं के बाद पाण्ड्य राजा का वध तक है चरितगान।

पाण्ड्य राजा के निग्रह के पश्चात विजयाघोष एवं हर्षोल्लास चलता है। साथ ही पोंकल के चूल्हों में आग लगाई जाती है। फिर शाम को निश्चित समय पर पुजारी पोंकल पात्रों में जब तीर्थजल छिड़कते हैं, तब विमान से पुष्पवर्षा होती है। देवी की नैवेद्य-स्वीकृति से प्रसन्न होकर नैवेद्यशिष्ट सिर पर धारण करके स्त्रियाँ वापस जाने लगती हैं

कैसे पहुँचें-

तिरुवनंतपुरम सेंट्रल रेलवे स्टेशन से यह पीठ मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जबकि यहाँ के हवाई अड्डे से इसकी दूरी मात्र सात किलोमीटर ही है। भारत के सभी प्रदेशों से तिरुवनंतपुरम पहुँचने के लिए अनेक सुगम रास्ते हैं। तिरुवनंतपुरम पहुँचने वाले तीर्थ यात्री रेलवे स्टेशन अथवा बस अड्डे से सीधे आट्टुकाल पहुँच सकते हैं। उन यात्रियों की सुविधा के लिए बसों, टैक्सियों तथा ऑटो रिक्शाओं की पंक्तियाँ हमेशा सड़क के किनारों पर तैयार खड़ी रहती हैं। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के सामने से दो किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर पैदल चलें, तो तीस मिनट के अंदर आट्टुकाल देवी के सम्मुख पहुँच जाएँगे।