गंगा किनारे विराजे काशी विश्वनाथ
ॐ नमः शिवाय...शिव-शंभु...
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आई. व्यंकटेश्वर राव '
वाराणसीतु भुवनत्रया सारभूत रम्या नृनाम सुगतिदाखिल सेव्यामना अत्रगाता विविधा दुष्कृतकारिणोपिपापाक्ष्ये वृजासहा सुमनाप्रकाशशः' -
नारद पुराण गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित वाराणसी नगर विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक माना जाता है तथा यह भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में सुशोभित है। इस नगर के हृदय में बसा है भगवान काशी विश्वनाथ का मंदिर जो प्रभु शिव, विश्वेश्वर या विश्वनाथ के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। स्त्री हो या पुरुष, युवा हो या प्रौढ़, हर कोई यहाँ पर मोक्ष की प्राप्ति के लिए जीवन में एक बार अवश्य आता है। ऐसा मानते हैं कि यहाँ पर आने वाला हर श्रद्धालु भगवान विश्वनाथ को अपनी ईष्ट इच्छा समर्पित करता है। फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें- धार्मिक महत्व- ऐसा माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब प्रकाश की पहली किरण काशी की धरती पर पड़ी थी। तभी से काशी ज्ञान तथा आध्यात्म का केंद्र माना जाता है। यह भी माना जाता है कि निर्वासन में कई साल बिताने के पश्चात भगवान शिव इस स्थान पर आए थे और कुछ समय तक काशी में निवास किया था। ब्रह्माजी ने उनका स्वागत दस घोड़ों के रथ को दशाश्वमेघ घाट पर भेजकर किया था। काशी विश्वनाथ मंदिर- गंगा तट पर सँकरी विश्वनाथ गली में स्थित विश्वनाथ मंदिर कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। यहाँ पर एक कुआँ भी है, जिसे 'ज्ञानवापी' की संज्ञा दी जाती है, जो मंदिर के उत्तर में स्थित है। विश्वनाथ मंदिर के अंदर एक मंडप व गर्भगृह विद्यमान है। गर्भगृह के भीतर चाँदी से मढ़ा भगवान विश्वनाथ का 60 सेंटीमीटर ऊँचा शिवलिंग विद्यमान है। यह शिवलिंग काले पत्थर से निर्मित है। हालाँकि मंदिर का भीतरी परिसर इतना व्यापक नहीं है, परंतु वातावरण पूरी तरह से शिवमय है।