हमारी सफलता और प्रगति तय करती हैं 10 दिशाएं
पृथ्वी की गति, पृथ्वी के घूर्णन और अन्य ग्रहों के चुम्बकीय प्रभाव, सूर्य से प्रदत्त ऊर्जा, सूर्य से मिलने वाली विभिन्न रंगों की ऊर्जा, ऊर्जा को प्रभावी-अप्रभावी बनाने वाले नियम, अलग-अलग स्थानों की ऊर्जा, ऋतुओं के अनुसार अलग-अलग ऊर्जा, जलवायु के प्रभाव, शहर के स्थल पठार पहाड़, वृक्ष, जलीय वन भूमि से प्राप्त अलग-अलग तरह की जलवायु और ऊर्जा से ही मानव और मानव समाज का जीवन संचालित होता है। एक सुंदर भविष्य के लिए नदी, पहाड़ और शहर के वास्तु को बचाना जरूरी है।
आपके घर के भीतर की दिशाएं और शहर की दिशाएं मिलकर आपका भविष्य तय करती हैं। घर के वास्तु से घर का वातावरण निर्मित होता है। आपकी मानसिक और शारीरिक स्थिति कैसी होगी यह घर और बाहर के वातावरण पर निर्भर करता है। इसलिए दिशाओं के वास्तु का ज्ञान होना जरूरी है।
दिशाओं से पैदा होने वाले वातावरण का संबंध लोगों की सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है। यदि इसमें कोई दोष हो, तो इसे तुरंत वास्तु उपायों के द्वारा ठीक कर लेना चाहिए। आप अपने घर का वास्तु दोष तो दूर कर सकते हैं किंतु शहर का कैसे करेंगे? इसके लिए आपको बचना चाहिए उन जगहों पर जाने से, जो वास्तु अनुसार नकारात्मक ऊर्जा का निर्माण कर रही है। आपका खुद का घर भी शहर के किस स्थान पर बना है इसका ध्यान रखें। दिशाएं दस होती हैं। दिशाओं की शुरुआत ऊर्ध्व व ईशान से होती है और उत्तर-अधो पर समाप्त। 1. ऊर्ध्व 2. ईशान, 3. पूर्व, 4. आग्नेय, 5. दक्षिण, 6. नैऋत्य, 7. पश्चिम, 8. वायव्य, 9. उत्तर और 10. अधो। दिशा में जहां दिशा शूल होता है, वहीं राहु काल भी नुकसानदायक है। दूसरी ओर, प्रत्येक दिशा के दिग्पाल होते हैं और उनके ग्रह स्वामी भी।
दक्षिण से गर्म हवाएं चलती रहती है तो उत्तर से ठंडी। तब आपके घर का मुख्य द्वार उत्तर की दिशा में है तो अति उत्तम, ईशान और पूर्व में है तो उत्तम और पश्चिम व वायव्य में है तो मध्यम और अन्य में है तो निम्नतम।
दस दिशा के दस दिग्पाल : ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारूत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत। उक्त सभी दिशाओं के दिशा शूल, वास्तु की जानकारी के साथ जानिए धन, समृद्धि और शांति बढ़ाने के उपाय।
अगले पन्ने पर, ऊर्ध्व दिशा का महत्व...
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ऊर्ध्व दिशा : ऊर्ध्व दिशा के देवता ब्रह्मा है। ब्रह्मा हम सभी के जन्मदाता हैं। इस दिशा का सबसे ज्यादा महत्व है। आकाश ही ईश्वर है। जो व्यक्ति ऊर्ध्व मुख होकर प्रार्थना करते हैं उनकी प्रार्थना में असर होता है। वेदानुसार मांगना है तो ब्रह्म और ब्रह्मांड से मांगे किसी ओर से नहीं। उससे मांगने से सबकुछ मिलता है।
वास्तु : घर की छत, छज्जे, उजाल दान, खिड़की और बीच का स्थान इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आकाश तत्व से हमारी आत्मा में शांति मिलती है। इस दिशा में पत्थर फेंकना, थूकना, पानी उछालना, चिल्लाना या ऊर्ध्व मुख करके अर्थात आकाश की ओर मुख करके गाली देना वर्जित है। इसका परिणाम घातक होता है।
दिशा शूल : इस दिशा में जाने का कोई दिशा शूल नहीं।
यदि आपका घर ईशान में है तो...
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