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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: गुरुवार, 30 अप्रैल 2020 (20:10 IST)

कश्मीरियों को अफीम की फसल नष्ट करने का अल्टीमेटम

कश्मीरियों को अफीम की फसल नष्ट करने का अल्टीमेटम - Ultimatum to destroy opium crop for Kashmiris
जम्मू। कश्मीर में प्रशासन ने लोगों को एक सप्ताह के भीतर अफीम की फसल नष्ट करने का अल्टीमेटम दिया है। पुलवामा में जिला प्रशासन ने अफीम की खेती के बारे में सूचना देने के लिए हेल्पलाइन भी शुरू किया है। दरअसल 30 सालों से बंदूकों की खेती में उलझे हुए कश्मीरियों को अब अफीम की खेती मालामाल कर रही है। 
 
धान और अन्य पैदावारों में की जाने वाली मेहनत से कहीं कम की मेहनत पर मिलने वाली कमाई अब उन्हें अफीम की खेती दिला रही है। यही कारण है एक्साइज विभाग को जहां पहले 2-3 गांवों में इससे जूझना पड़ता था, अब उन्हें प्रतिवर्ष 50-60 गांवों में अफीम की खेती से लबालब खेतों में फसलों को नष्ट करना पड़ता है।

जिला उपायुक्त पुलवामा डॉ. राघव लंगर ने इस संदर्भ में संबंधित अधिकारियों की एक बैठक भी ली। बैठक में बताया गया कि पुलवामा के विभिन्न हिस्सों में 1762 कनाल जमीन पर अफीम की खेती हो रही है। इसे रोकने के लिए कई बार राजस्व, आबकारी और पुलिस विभाग ने मिलकर अभियान चलाया है। कई लोगों को पकड़ा भी गया है। कुछ समय तक खेती बंद रहती है। बाद में दोबारा शुरू हो जाती है।

डॉ. राघव ने जिले में लोगों के बीच अफीम के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता पैदा कर इसे समाप्त करने के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया। उन्होंने राजस्व विभाग को अफीम की खेती वाले इलाकों की एक सूची तैयार करने का निर्देश दिया। नकदी फसलों के लिए सब्जियां उगाने के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर दिया। 
 
उन्होंने ने कहा कि अगर तमाम चेतावनियों के बावजूद कोई अफीम की फसल नष्ट नहीं करता है तो उसकी फसल को नष्ट करने के साथ उसके खिलाफ कठोर कानूनी कर्रवाई की जाए। अधिकारियों ने बतायाकि इन जगहों पर अफीम को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में महंगे दामों पर बेचने के उद्देश्य से लगाया जा रहा है। 
 
खेती के बाकायदा उन्नत तथा संशोधित बीजों का प्रयोग किया जा रहा है, ताकि अफीम की अधिक से अधिक खेती मुमकिन हो पाए और अच्छे दामों पर बिक पाए। कश्मीरी अफीम की खेती अकसर जंगलों में करते हैं ताकि किसी को भनक न लगे। यह भी सच है कि अधिकतर अफीम के खेत केसर क्यारियों में ही उगाए जा रहे हैं।

अवंतिपोरा के पुलिस अधीक्षक भी मानते हैं कि केसर जैसी महंगी फसल भी अब कश्मीरियों को आकर्षित इसलिए नहीं कर पा रही क्योंकि यह बहुत समय लेती है और हमेशा ही इस पर मौसम की मार भी अपना असर दिखाती है। 
ऐसे में बिना किसी मेहनत, बिना पानी देने की परेशानी के पैदा होने वाली और केसर की फसल से कहीं अधिक धन दिलाने वाली अफीम की खेती अब केसर क्यारियों का स्थान ले रही है। नतीजतन एक्साइज विभाग तथा पुलिस के लिए दिन-ब-दिन अफीम की खेती के बढ़ते रकबे पर इसकी पैदावार को रोक पाना मुश्किल होता जा रहा है।

पिछले साल करीब 210 एकड़ क्षेत्रफल में अफीम की खेती को नष्ट किया गया था। बाकी आतंकी दबाव के चलते और कुछ स्थानों पर गठजोड़ के चलते ऐसा नहीं हो पाया था। एक्साइज विभाग तथा पुलिस के लिए भी यह पेशा धन दिलाने वाला है और आतंकवादी वैसे भी नशीले पदार्थो के व्यापार के जरीए अब बंदूकों की खेती कर रहे हैं यह कोई छुपी हुई बात नहीं रही है।
 
अधिकारियों के बकौल, किसानों को अफीम की खेती करने के लिए आतंकवादियों तथा तस्करों द्वारा उकसाया जा रहा है और किसानों को इसके लिए कई सौ गुणा कीमत भी अदा की जा रही है। अर्थात जितना धन वे अन्य फसलों से एक खेत में उगा कर कमांएगें, उससे कई गुणा अधिक। 
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