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Written By Author सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : शनिवार, 14 जुलाई 2018 (17:54 IST)

कश्मीर पुलिस की अपील, मुठभेड़ स्थल पर जाकर जान न दें

कश्मीर पुलिस की अपील, मुठभेड़ स्थल पर जाकर जान न दें - SP Vaid Director General of Police Jammu Kashmir
जम्मू। मुठभेड़ स्थलों पर जाकर जान देने के मामलों में होने वाली वृद्धि ने कश्मीर पुलिस को परेशानी में डाल दिया है। यह परेशानी इसलिए भी है, क्योंकि पिछले डेढ़ साल में 120 से अधिक नागरिक मुठभेड़ स्थलों पर सुरक्षाबलों पर पथराव के दौरान उनके द्वारा चलाई गई गोलियों से मारे गए हैं।
 
जम्मू-कश्मीर पुलिस महानिदेशक एसपी वैद ने एक बार फिर लोगों से अपील की है कि लोगों की जानें सुरक्षित रखने के क्रम में मुठभेड़ स्थलों के निकट जाकर सेना पर पथराव नहीं करना चाहिए, क्योंकि सेना उनकी अपनी ही है। पुलिस महानिदेशक एसपी वैद ने संवाददाताओं से कहा कि अगर किसी की जान इस तरह से जाती है, तो हमें दु:ख होता है इसलिए हम लोगों से अपील कर रहे हैं कि जहां कहीं भी मुठभेड़ हो, लोगों को वहां जाकर सेना पर पथराव नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह सेना हमारी है।
 
वैद ने कहा कि वह उन परिवारों के दु:ख को महसूस कर सकते हैं जिन्होंने इस तरह की घटनाओं में में अपने बच्चों को खोया। हम जानते हैं कि यह कितना मुश्किल है। हम दोबारा सभी से अपील करते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए और उन्हें मुठभेड़ स्थल के निकट जाकर सेना पर पथराव नहीं करना चाहिए। पुलिस ने पथराव की घटनाओं के दौरान जान की क्षति को रोकने के संबंध में सेना और सीआरपीएफ से बातचीत की है कि इस तरह की घटनाओं में जान की क्षति से कैसे बचा जा सकता है।
 
वैद की अपील के पीछे आधिकारिक आंकड़ा है, जो कहता है कि पिछले 18 महीनों में 120 के करीब पत्थरबाज अपनी जानें गंवा चुके हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले 30 सालों से पाकपरस्त आतंकवाद से जूझ रही कश्मीर वादी में अब मौतों का भी वर्गीकरण हो चुका है। अधिकतर मौतें आतंकियों की हो रही हैं, जो सुरक्षाबलों से जेहाद के नाम पर लड़कर जान दे रहे हैं जबकि कुछेक नागरिकों को आतंकी मार रहे हैं, तो कुछेक नागरिकों को आतंकी सुरक्षाबलों से अप्रत्यक्ष तौर पर लड़वाकर जान देने को मजबूर कर रहे हैं। और यह सब कुछ उस तथाकथित जेहाद के नाम पर हो रहा है जिसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर में छेड़ रखा है।
 
बात हो रही है उन नागरिकों की, जो मुठभेड़ों के दौरान आतंकियों की जानें बचाने की खातिर अब सुरक्षाबलों से भिड़ रहे हैं। फर्क आतंकियों और इन नागरिकों की लड़ाई में इतना है कि आतंकी अगर सुरक्षाबलों पर गोलियों तथा हथगोलों से हमले बोलते हैं तो ये नागरिक पत्थरों से। हालांकि सुरक्षाबल पत्थरबाजी को गोलियों से अधिक घातक बताने लगे हैं। ऐसा इसलिए है, एक सुरक्षाधिकारी के शब्दों में, 'गोलियां जब दागी जाती हैं तो आवाज करती हैं और हम आवाज सुन बचाव कर सकते हैं, पर जब पत्थर फेंके जाते हैं तो वह कहां से आएगा कोई नहीं जानता।'
 
सुरक्षाबलों पर पत्थर मारने का खामियाजा भी कश्मीरी भुगत रहे हैं। पिछले 18 महीनों में पत्थर मारने वालों में से करीब 120 पत्थरबाज मारे जा चुके हैं। इनकी मौत उस समय हुई, जब सुरक्षाबलों ने आतंकियों को निकल भागने में मदद करने की कोशिश करने वाले पत्थरबाजों पर गोलियां दागीं। नतीजा सामने था। पिछले साल फरवरी महीने में सेनाध्यक्ष बिपिन रावत द्वारा ऐसे तत्वों को दी गई चेतावनी के बाद तो सुरक्षाबलों की पत्थरबाजों के विरुद्ध होने वाली कार्रवाई में बिजली-सी तेजी आई है। यही कारण था कि जहां पहले सेना के जवान ऐसे पत्थरबाजों पर सीधे गोली चलाने से परहेज करते थे, अब वे ऐसा नहीं कर रहे हैं।
 
कश्मीर के आतंकवाद के इतिहास में पत्थरबाजी की उम्र कुछ ज्यादा नहीं है। यह तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शासन के दौरान आरंभ हुई थी। फिलहाल गोलियों की बरसात और पैलेट गन भी पत्थरबाजों के कदमों को रोक पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल, भारत सरकार कहती है कि पत्थरबाजी के लिए युवकों को धन मुहैया करवाया जाता है और नोटबंदी के बाद इनमें जबरदस्त कमी आने का जो दावा किया जा रहा है उसकी हकीकत से पर्दा 120 युवकों की 18 महीनों में गोलियों से होने वाली मौत जरूर हटा रही है।
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