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Last Updated :मुंबई , शनिवार, 30 सितम्बर 2017 (11:40 IST)

भगदड़ में दफन महानगर की कहानी

भगदड़ में दफन महानगर की कहानी - Mumbai Metropolitan
मुंबई। मुंबई के एलफिंस्टन ब्रिज पर मची भगदड़ की वजह से कम से कम 22 लोगों की मौत हो गई। लेकिन इन मौतों के साथ ही न जाने कितने सपने तबाह हो गए। ऐसे ही लोगों में से एक 24 वर्षीय हिलोनी देधिया भी थीं, जो एक्सिस बैंक के कॉर्पोरेट रिलेशन विभाग में काम करती थीं।
 
आसमान को छूती हुई मुंबई की ऊंची-ऊंची इमारतें लाखों लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं लेकिन ये इमारतें शुक्रवार को परेल और एलफिंस्टन रोड स्टेशन को जोड़ने वाली फुट ओवरब्रिज पर शुक्रवार को हुए हादसे की भी मौन गवाह हैं।
 
बड़ी संख्या में लोगों की अफरा-तफरी से इतर इस क्षेत्र के सूती कपड़ों की मिलों ने मुंबई को इसकी पहचान दी थी और इसी वजह से मुंबई को 'पूर्व का मैनचेस्टर' कहा जाता है। यहां लोग कपड़ा मिलों में चिमनियों और सायरन की आवाजों के बीच काम करते थे। समय बदलने के साथ यह क्षेत्र भी तेजी से बदलता चला गया।
 
साल 1980 के बाद मिलों ने आकाश छूने वाली इमारतों को जगह देना शुरू कर दिया था, क्योंकि समृद्धि की इच्छा के साथ लाखों लोगों के सपने बढ़ते गए थे। फुट ओवरब्रिज पर मची भगदड़ का शिकार हुई देधिया के चाचा ने अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर बताया कि देधिया एक्सिस बैंक के कॉर्पोरेट रिलेशन विभाग में काम करती थीं और वे हादसे के समय अपने कार्यालय जा रही थीं।
 
एक्सिस बैंक का कॉर्पोरेट हेडक्वार्टर बॉम्बे डाइंग कंपाउंड में स्थित है। यह स्थान एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस इमारत में एयरलाइन गो एयर, मीडिया फर्म रिपब्लिक टीवी और देश का पहला हार्ड रॉक कैफे भी है। स्टेशन के आस-पास कई इस तरह के 'मिल परिसर' हैं।
 
देधिया के जन्म से पहले ही यहां के मिल अपनी आखिरी सांस ले चुके थे। लेकिन यहां की जमीन सोना हो गई, क्योंकि यह शहर के मध्य में स्थित था। साल 2005 में यह क्षेत्र तेजी से बदलता चला गया, क्योंकि यहां मिल की जमीन पहली बार व्यापारिक विकास के लिए साफ की गई थी। यहां के ज्यादातर मिल मालिक तेजी से फार्मा, उड्डयन, रियल्टी क्षेत्र की तरफ चले गए जबकि कुछ ने अपनी जमीन रियल इस्टेट कंपनियों को बेच दी।
 
यहां के एक स्थानीय बुजुर्ग ने बताया कि मिल काफी ऊंची भी नहीं थी और यहां काफी खुली जगह भी थी। आज की तुलना में काम करने वाले लोगों की संख्या भी तब कम थी। तब काम के घंटे भी अलग-अलग थे जिसकी वजह से दिन के समय में कम भीड़ होती थी। इस शहर के बदले हुए स्वरूप के बीच देधिया के सपनों का एक दुखद अंत हो गया। उसके चाचा और चाची केईएम अस्पताल के बाहर उसके भूरे रंग का हैंडबैग थामे पोस्टमॉर्टम खत्म होने और शव मिलने का इंतजार कर रहे थे।
 
यहां से 2 किलोमीटर दूर 2 रेलवे स्टेशनों पर अभी भी भारी भीड़ अपने रोजमर्रा के काम पर जाने के लिए रास्ता बनाते हुए गुजर रही है। इन आने-जाने वाले लोगों के दिलोदिमाग में इस दुखभरी घटना की तस्वीरें गुजरती हैं लेकिन जिंदगी फिर भी चलती चली जाती है। (भाषा)