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Written By Author गिरीश उपाध्‍याय

महिला प्रतिनिधि धो सकती हैं कलंक का टीका

महिला प्रतिनिधि धो सकती हैं कलंक का टीका - Child death rate
मध्यप्रदेश में महिला जनप्रतिनिधि यदि ठान लें तो राज्य के माथे पर लगा सबसे अधिक शिशु मृत्यु दर वाले प्रदेश का दाग धोया जा सकता है। प्रदेश पर लगा यह काला टीका धोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बस टीकाकरण के प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है। 
 
वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एएचएस) 2013 में माताओं और बच्चों की स्थिति को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं वे प्रदेश की प्रगति की चमक को फीका करते हैं। ये आंकड़े कहते हैं कि मध्यप्रदेश में पांच साल से कम उम्र के एक हजार बच्चों में से 83 बच्चे असमय की मौत के मुंह में चले जाते हैं। जीवित जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से 62 नवजात भी इसी तरह जिंदा नहीं रह पाते। बच्चों की इन असमय मौतों का एक प्रमुख कारण गर्भवती माताओं और नवजात शिशुओं को समय समय पर जरूरी टीकों का न लगवाया जाना है। ये टीके बच्चों को ऐसी गंभीर बीमारियों से बचाने का काम करते हैं जो या तो जानलेवा साबित होती हैं या फिर आगे चलकर बच्चों में गंभीर शारीरिक विकृतियां पैदा कर देती हैं। 
 
इस स्थिति से निपटने में जन प्रतिनिधियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। इस बार राज्य के 51 में से 22 जिलों से कुल 30 महिला विधायक चुनकर आई हैं। एएचएस की रिपोर्ट के आधार पर किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि इन महिला विधायकों वाले जिलों में 12 से 23 माह के बच्चों में पूर्ण टीकाकरण का औसत 60 प्रतिशत ही है। यानी करीब 40 प्रतिशत बच्चे इन इलाकों में ऐसे रह जाते हैं जिन्हें सारे जीवनरक्षक टीके नहीं लग पाते। चैंकाने वाली बात यह है कि इन 22 जिलों में करीब पांच प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिन्हें किसी भी प्रकार को कोई टीका नहीं लग पाता। यह आंकड़ा इस तरह के बच्चों के पूरे प्रदेश के औसत से भी डेढ़ प्रतिशत अधिक है। 
महिला विधायकों वाले जिलों में ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, रतलाम, इंदौर, धार, झाबुआ, खरगोन, खंडवा, बुरहानपुर, सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, जबलपुर, बालाघाट, रीवा, सतना, सिंगरौली, शहडोल और उमरिया शामिल हैं। इनमें से आठ जिले ऐसे हैं जहां दो दो महिला विधायक चुनकर आई हैं। 
 
प्रदेश की कुल 30 महिला विधायकों की ताकत और असर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से तीन प्रदेश में केबिनेट मंत्री हैं जिनमें महिला एवं बाल विकास मंत्री मायासिंह, उद्योग मंत्री यशोधराराजे सिंधिया और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री कुसुम मेहदेले शामिल हैं। इनके अलावा दो पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस व रंजना बघेल भी इस समूह में हैं। 
 
इतनी बड़ी ताकत होने के बावजूद इन महिला विधायकों के जिलों में महिलाओं और बच्चों की सेहत की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इनके प्रतिनिधित्व वाले 22 जिलों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर प्रति हजार 83 और शिशु मृत्यु दर प्रति हजार 64 है जो प्रदेश के औसत क्रमशः 83 और 62 से कहीं अधिक है। इसी तरह प्रति एक लाख पर मातृ मुत्यु दर भी इन जिलों में औसतन 257 है जो प्रदेश के औसत 227 से काफी अधिक है।
 
सबसे दयनीय स्थिति सागर संभाग की है जहां के पांच जिलों सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ से कुल सात महिला विधायक हैं लेकिन इन जिलों में पूर्ण टीकाकरण का औसत प्रदेश में सबसे कम 42.16 प्रतिशत ही है। किसी भी तरह का टीकाकरण न होने वाले बच्चों का प्रतिशत भी यहां अपेक्षाकृत बहुत अधिक 5.6 है। इसके मुकाबले आठ विधायकों वाले इंदौर संभाग के छह जिलों की स्थिति काफी बेहतर है जहां पूर्ण टीकाकरण का प्रतिशत 68.3 और किसी भी तरह का टीका न लगने वाले बच्चों का प्रतिशत 3.75 ही है। 
 
मध्यप्रदेश में यूनीसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वंदना भाटिया कहती हैं कि टीकाकरण बच्चों के स्वास्थ्य की बुनियाद है। बच्चों को लगने वाले टीके उन्हें सात जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं। इनमें खसरा, टिटेनस, पोलियो, टीबी, गलघोंटू, काली खांसी और हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से पोलियो को छोड़कर बाकी टीके इंजेक्शन के जरिए दिए जाते हैं जबकि पोलियो की दवा बच्चों को बूंदों के रूप में पिलाई जाती है। बच्चों के अलावा गर्भवती महिलाओं को भी टिटेनस का टीका लगाकर खुद गर्भवती मां और उसके होने वाले बच्चें को टिटेनस जैसे घातक रोग से बचाया जा सकता है।
 
निश्चय ही इस संदर्भ में महिला विधायकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण और कारगर साबित हो सकती है। यदि ये सभी जन प्रतिनिधि पूर्ण टीकाकरण को अपने अपने जिलों में अभियान के रूप में चलाने का संकल्प लेकर काम करें तो बच्चों और माताओं की सेहत को लेकर प्रदेश की तसवीर बदल सकती है।