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Last Modified: पटना , शनिवार, 26 सितम्बर 2015 (20:06 IST)

विरासत सौंपने को तैयार राजनीति के कई धुरंधर

विरासत सौंपने को तैयार राजनीति के कई धुरंधर - Bihar assembly elections
पटना। राजनीति में परिवारवाद के मुद्दे को लेकर भले ही सभी राजनीतिक दल हमेशा से एक-दूसरे पर  आरोप लगाते रहे हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि इससे कोई भी दल अछूता नहीं है और इस बार के  बिहार विधानसभा चुनाव में भी विभिन्न पार्टियों के कई दिग्गजों ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने  परिवार के ही सदस्यों को सौंपी है।
 
एक आम मान्यता रही है कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर और इंजीनियर का बेटा इंजीनियर। आजादी के बाद  राजनीति में भी इस मान्यता को स्थापित करने का पूरा प्रयास हुआ कि राजनेता का बेटा भी राजनेता ही  हो। 
 
इसके पक्ष में राजनेताओं ने तर्क दिया कि हर क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति यदि पुत्र-पुत्रियों को अपनी विरासत सौंपने की इच्छा रख सकता है तो हमारा बेटा क्यों नहीं हमारी राजनीतिक विरासत को  आगे ले जा सकता। आखिर उसने जब से होश संभाला अपने इर्द-गिर्द राजनीतिक माहौल ही तो देखा है।
 
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल यूनाइटेड (जदयू) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समेत कई छोटी-बड़ी कई पार्टियों के नेताओं ने अपनी-अपनी संतानों को चुनावी समर में उतार दिया है। इनमें सबसे आगे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव हैं। 
 
चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने के कारण यादव खुद तो चुनाव में खड़े नहीं हो सकते इसलिए  उन्होंने अपने दोनों पुत्रों तेजप्रताप और तेजस्वी यादव को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। 
 
पुत्रों को  राजनीतिक विरासत सौंपने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में राजद सुप्रीमो ने दो-टूक मीडियाकर्मियों  से ही पूछ लिया कि मेरा बेटा नेता नहीं बनेगा तो क्या भैंस चराएगा?
 
राजद सुप्रीमो के पुत्र तेजस्वी यादव राघोपुर से जबकि तेजप्रताप महुआ से चुनावी समर में किस्मत  आजमा रहे हैं। पिछली बार राघोपुर से यादव की पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ीदेवी चुनाव लड़ी थीं  हालांकि उन्हें जदयू के सतीश कुमार से हार का सामना करना पड़ा था। 
 
इस बार जदयू से टिकट कटने के कारण सतीश कुमार भाजपा के टिकट पर राघोपुर से चुनाव लड़ रहे हैं।  पहले यह माना जा रहा था कि लालू की बड़ी पुत्री मीसा भारती उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगी  लेकिन लोकसभा चुनाव में उनकी हार ने उनके भविष्य को लेकर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। 
 
यादव ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी की क्षमता को पहचाना और अब उन्होंने संकेत दे दिया कि उनके  उत्तराधिकारी तेजस्वी होंगे। तेजस्वी क्रिकेट के मैदान में सफल नहीं रहे लेकिन अब यह इंतजार है कि वे  राजनीति के मैदान में कितने शतक बना पाते हैं। 
 
इसी तरह राजद के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के पुत्र चन्द्रिका राय परसा, पूर्व सांसद  प्रभुनाथ सिंह के पुत्र और निवर्तमान विधायक रणधीर सिंह छपरा सीट से उम्मीदवार हैं। चंद्रिका राय ने  पिछली बार राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था।
 
मढ़ौरा से पूर्व विधायक युदुवंती राय के पुत्र जितेन्द्र कुमार राय चुनाव लड़ रहे हैं। इसी पार्टी से मधुबनी  से पूर्व विधान पार्षद राजकुमार महासेठ के पुत्र समीर महासेठ, उजियारपुर से पूर्व मंत्री तुलसीदास मेहता  के पुत्र आलोक कुमार मेहता, शाहपुर से पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी के पुत्र राहुल तिवारी चुनावी दंगल में  किस्मत आजमा रहे हैं।
 
महागठबंधन में राजद के अहम सहयोगी जदयू से पूर्व मंत्री बृजकिशोर नारायण सिंह के पुत्र और  निवर्तमान विधायक मंजीत कुमार सिंह बैकुंठपुर से, मोरवा से रामचंद्र निषाद के पुत्र विद्यासागर निषाद  चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह जाले से विधान पार्षद विजय कुमार मिश्र के पुत्र और निवर्तमान विधायक  ऋषि मिश्र चुनावी दंगल में उतरे हैं। 
 
पिछली बार जाले से विजय कुमार मिश्र ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था लेकिन पार्टी से मतभेद  के कारण बाद में उन्होंने यह सीट छोड़ दी और उपचुनाव में ऋषि मिश्र ने जदयू के टिकट पर चुनाव  लड़ा और विजयी बने। कांग्रेस के टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री बालेश्वर राम के पुत्र डॉ. अशोक कुमार रोसड़ा  से चुनाव लड़ रहे हैं।
 
बिहार में दो-तिहाई बहुमत से सरकार बनाने का सपना संजोए बैठी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से भी  कई नेता पुत्र चुनावी समर में उतरे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सीपी ठाकुर के पुत्र  और विधान पार्षद विवेक ठाकुर को टिकट दिया गया है। 
 
इसी तरह पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शास्वत को टिकट दिया गया है।  विवेक ठाकुर ब्रह्मपुर से जबकि अर्जित शास्वत भागलपुर से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
 
पिछले चुनाव में अश्विनी चौबे ने भाजपा के टिकट पर भागलपुर से चुनाव लड़ा था और विजयी रहे थे।  चौबे के बक्सर से सांसद बनने के बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के अजीत शर्मा निर्वाचित  हुए।
 
भाजपा सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र निवर्तमान विधायक अशोक यादव केवटी से चुनावी समर  में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। केवटी सीट इस मायने में और भी महत्वपूर्ण हो गई है कि जहां एक  ओर अशोक यादव भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं वहीं इसी सीट से राजद के टिकट पर पूर्व सांसद मोहम्मद  अली असरफ फातमी के पुत्र मोहम्मद फराज आजमी चुनाव लड़ रहे हैं। फराज फातमी पिछली बार अशोक  यादव से 29 वोट के मामूली अंतर से चुनाव हार गए थे।
 
इसी तरह भाजपा के टिकट पर ही पूर्व विधान पार्षद गंगाप्रसाद के पुत्र संजीव चौरसिया (दीघा), पूर्व  मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के पुत्र (नीतीश मिश्र, झंझारपुर), पूर्व केंद्रीय मंत्री मुनि लाल के पुत्र और  निवर्तमान विधायक शिवेश कुमार (अगियांव), पूर्व विधायक दिनेश कुशवाहा के पुत्र (अजय कुशवाहा)  मीनापुर और पूर्व सांसद जनार्दन यादव के पुत्र मनोज यादव बेलहर विधानसभा क्षेत्र से ताल ठोंक रहे हैं। 
 
पूर्व सासंद उमा शंकर सिंह के पुत्र जितेन्द्र स्वामी दरौंधा से जबकि पूर्व विधायक भूमेन्द्र नारायण सिंह के  पुत्र देवेशकांत सिंह गोरियाकोठी से चुनावी मैदान में हैं। पिछली बार भूमेन्द्र नारायण सिंह ने गोरियाकोठी  से चुनाव जीता था।
 
लालू के राजनीतिक दोस्त रहे पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र और निवर्तमान विधायक अजय प्रताप सिंह  जमुई से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। प्रताप ने पिछली बार जदयू के टिकट पर चुनाव जीता  था। नरेन्द्र सिंह के दूसरे पुत्र सुमीत कुमार सिंह चकाई विधानसभा से निर्दलीय के तौर पर चुनावी मैदान  में हैं। 
 
सुमीत कुमार सिंह इसी सीट से पिछले विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव  जीता था। इसी तरह पूर्व सांसद सीताराम सिंह के पुत्र राणा रणधीर सिंह मधुबन से जबकि नवीन किशोर  प्रसाद सिन्हा के पुत्र और निवर्तमान विधायक नितिन नवीन बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के  टिकट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। राणा रणधीर सिंह ने पिछली बार राजद के टिकट पर मधुबन  से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
 
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की बिहार में अहम सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अध्यक्ष एवं केंद्रीय  मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने फिल्मी दुनिया में कुछ साल रहने के बाद राजनीति  में धमाकेदार प्रवेश किया। फर्राटे से अंग्रेजी एवं हिन्दी बोलने वाले चिराग पासवान पिछले लोकसभा  चुनाव में जमुई से सांसद चुने गए हैं।
 
विरासत सौंपने की तैयारी में सीनियर पासवान ने उन्हें लोजपा संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया है।  राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि चिराग ने ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन से नाता तोड़ने का निर्णय  लिया जिसका फायदा लोजपा को हुआ। आज लोजपा के पास 6 सांसद हैं। चिराग के भाजपा के शीर्ष  नेताओं से अच्छे एवं गहरे संबंध हैं।
 
राजनीतिक विरासत सौंपने की तैयारी में लगे राजनीतिक दिग्गजों की अगली कड़ी में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश  अध्यक्ष और वर्तमान में लोजपा के सांसद चौधरी महबूब अली कैसर का नाम भी शामिल है। कैसर के पुत्र  मो. यूसुफ अली खान को लोजपा ने सिमरी बख्तियारपुर से टिकट दिया है। हालांकि पिछले चुनाव में  कैसर को इस सीट से हार का सामना करना पड़ा था। यूसुफ अली कैसर परिवार की तीसरी पीढ़ी के  सदस्य हैं। उनके दादा चौधरी सलाहउद्दीन पूर्व केंद्रीय मंत्री थे।
 
बाहुबली नेता राजन तिवारी के पुत्र राजू तिवारी भी इस बार गोविन्दगंज से लोजपा के टिकट पर चुनावी  अखाड़े में हैं, जो पिछली बार लोजपा के टिकट से चुनाव हार चुके हैं। हालांकि लोजपा के लिए परिवारवाद  को प्रोत्साहित करना अब महंगा पड़ रहा है, क्योंकि परिवारवाद की महत्वाकांक्षा में पार्टी सुप्रीमो  रामविलास पासवान के खिलाफ उनके दामाद और दलित सेना के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार साधु ने  मोर्चा खोल दिया अंतत: पासवान को उन्हें पार्टी से निकालना पड़ा।
 
इस विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान के छोटे भाई लोजपा सांसद रामचन्द्र पासवान के पुत्र प्रिंस  राज भी राजनीति में कदम रख रहे हैं। लोजपा ने प्रिंस को कल्याणपुर से टिकट दिया है।
 
राजग की एक अन्य घटक हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम  मांझी जहां मखदुमपुर और इमामगंज से चुनाव लड़ रहे हैं वहीं उन्होंने अपने पुत्र संतोष कुमार सुमन को  पार्टी का टिकट दिया है, जो कुटुंबा से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह हम पार्टी से पूर्व विधायक जगदीश  शर्मा के पुत्र राहुल शर्मा घोसी विधानसभा से चुनावी मैदान में हैं।
 
पूर्व मंत्री शकुनि चौधरी तारापुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं वहीं उन्होंने अपने पुत्र राजेश कुमार  को खगड़िया विधानसभा से टिकट दिलाया है। चौधरी ने पिछली बार तारापुर से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
 
देश की राजनीति में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर मामलों में राजनेताओं के बेटे को पिता वाली हैसियत या ऊंचाई अब तक नहीं मिल पाई है। हां, सत्ता के गलियारे में जगह तो मिल ही जाती है। बिहार  में भी ऐसे कई नेता पुत्र रहे हैं जिन्हें अपनी राजनीतिक पारी में पिता जैसी कामयाबी मयस्सर नहीं हुई।  हालांकि कई ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी कामयाबी का परचम लहराया है।
 
माना जाता है कि बिहार में कांग्रेस के दो दिग्गज ललित नारायण मिश्र और अनुग्रह नारायण सिंह ने  राजनीति में परिवाद की नींव रखी। अनुग्रह नारायण सिंह के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने, उनके पुत्र निखिल कुमार पहले सांसद चुने गए और बाद में राज्यपाल पद तक पहुंचे। 
 
कद्दावर कांग्रेस नेता दिवंगत ललित नारायण मिश्र का परिवार भी सियासत में कभी पीछे नहीं रहा। एक भाई जगन्नाथ मिश्र तो मुख्यमंत्री बने ही, दूसरे भाई मृत्युंजय नारायण मिश्र भी भाजपा में सक्रिय हैं। (वार्ता)