हरिद्वार में कावड़ियों की संख्या इस बार भी आखिरकार करोड़ को पार कर ही गई। हालांकि पहले पहल कावड़ियों का उत्साह आपदा की मार झेल रहे उत्तराखंड में ठंडा दिख रहा था, लेकिन कावड़ की महाशिवरात्रि आते-आते कावड़ियों से धर्मनगरी पट गई।
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इस अचानक बढ़ी भीड़ ने प्रशासन द्वारा कावड़ यात्रा के लिए किए इंतजामों को भी अपर्याप्त करार दे दिया। चारों तरफ पैदल कावड़ियों की भीड़ से शहर की व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं।
आज सोमवार और महाशिवरात्रि के मौके पर कावड़िए जहां गंगा दिखी वहीं से पानी भरकर ले जाते देखे गए। इस मौके पर हरिद्वार के आसपास के सभी शिव मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। वैसे तो शनिवार से ही हरिद्वार पैक चलने लगा था लेकिन सोमवार को कावड़ मेले का अंतिम दिवस होने से सर्वाधिक भीड़ गंगा जल ले जाने को उतावले दिखे।
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अचानक बढ़ी भीड़ से हरिद्वार शहर पूरी तरह थम-सा गया। वाहनों का तो 3 दिनों से रेंगना ही शुरू है। भीमगौड़ा, अपर रोड, हर की पौड़ी, मालवीय द्वीप, सुभाष घाट और कोतवाली रोड में कावड़ियों के सिर-सिर टकराने की नौबत थी।
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शिवरात्रि के मौके पर धर्मनगरी के मंदिरों की साज- सज्जा आकर्षक ढंग से की गई है। इस भीड़ ने एक बार फिर तीर्थवासियों को यह आस बंधा दी है कि पिछली 2 माह से सूनी पड़ी धर्मनगरी में श्रद्धालुओं का सन्नाटा कुछ ही पल के लिए था तथा आगे यह धर्मनगरी पुनः तीर्थयात्रियों के आकर्षण का कारण बनी रहेगी।
कावड़ वाहनों से पूरे हरिद्वार के पैक होने से हरिद्वार के रास्ते आने वाले तमाम वाहन भी जाम में फंसे रहे।
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जहां-तहां कावड़ एवं दोपहिया वाहनों का जाम इतना भयानक था कि पूरे रविवार को घंटेभर में वाहन 1 इंच भी नहीं सरक पा रहे थे। इस कारण भूखे-प्यासे कई लोग पूरे दिन जाम में फंसे रहे। यात्री गाड़ियों को तो इससे फंसना ही पड़ा।
प्रशासनिक अधिकारी एम्बुलेंस एवं अन्य अत्यावश्यक सेवा के वाहनों का भी पहिया जाम रहा।
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जाम की इस उलझन में वाहन चालक आपस में उलझते दिखे तो पुलिस ने भी जाम खुलवाने में असमर्थता व्यक्त कर हाथ खड़े कर दिए।
तमाम लोगों के जाम में फंस जाने के बावजूद भीड़ इतनी अधिक थी कि हरिद्वार व आसपास के होटलों, ढाबों एवं अन्य छुटपुट खोखों में खाना ही नहीं बचा। भीड़ में हुई अचानक बढ़ोतरी की कल्पना प्रशासन को भी नहीं थी।
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यही कारण था कि पुलिस द्वारा प्लान किया गया ट्रैफिक प्लान पूरी तरह चौपट दिखा।
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हालात ये थे कि नगर निगम द्वारा बनाया गया कावड़ बाजार, जो कि पूरे कावड़ मेले के दौरान गुलजार था, तरह-तरह की कावड़े यहां भारी मात्रा में बनी थीं व भीड़ के कारण कावड़ियों ने सारी कावड़ें खरीद लीं तो यह बाजार भी कावड़ मेले से 3 दिन पहले ही उजाड़ लगने लगा।
इस तीर्थनगरी के अलावा ऋषिकेश से 35 किमी दूर पौड़ी जिले के यमकेश्वर प्रखंड में नीलकंठ महादेव मंदिर भी कावड़ियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है।
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मणिकूट पर्वत की तलहटी में स्थित इस मंदिर के बाबत मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल को पीने से बाद भगवान शिव के शरीर में उत्पन्न ताप की शांति के लिए शंकर ने मणिकूट पर्वत तलहटी पर ही तप किया था।
यह तप 60 हजार वर्षों तक किया गया। समाधि से उठने के बाद शंकर भगवान नीलकंठ पिंडी के रूप में यहां विराजित हुए। इसी कारण इसका नाम नीलकंठ पड़ गया।
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यहां जलाभिषेक से मनुष्य की सर्व मनोकामना पूरी होती है इसी कारण यह मंदिर भी कावड़ियों का विशेष आकर्षण रहता है। इस कावड़ यात्रा में भी यहां भारी भीड़ दिखी।