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Written By WD

सिर्फ धागे नहीं कलाई पर बँधे एहसास

सिर्फ धागे नहीं कलाई पर बँधे एहसास -
- रजनीश

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एक भाई हुआ है इतिहास में जो हर रूप में अनोखा था। भाई के रूप में, सखा के रूप में, प्रेमी के रूप में और न जाने कितने रूपों में जिसने संबंधों के नए अर्थ प्रदान किए। उसकी उँगली के चोट पर बाँधी गई एक छोटी सी पट्टी ने उसकी मुँहबोली बहन से ऐसे संबंध कायम किए कि आज सदियों बाद भी हम उसे ही याद करते हैं क्योंकि निर्दोष प्रेम का ऐसा अद्भुत प्रसंग फिर घटित नहीं हुआ। यह एक ऐसा प्रसंग था जिसमें भाई-बहन के नाम तक मिलते-जुलते हो गए। कृष्ण-कृष्णा।

यह एक ऐसा बंधन था जिसने रक्षा की नई परंपरा स्थापित कर दी। उँगली पर बँधी उस पट्टी से एक आश्चर्यजनक प्रेम संबंध का उद्भव हुआ जिसके बाद घटित घटनाओं ने लोगों को विस्मित कर दिया। कृष्णा के जीवन में ही कृष्ण शामिल हो गया। घटना दुशासन द्वारा चीर खींचने का हो या दुर्वासा द्वारा असमय भोजन करने के लिए पहुँचने की हो, जहाँ कृष्णा की लाज की बात आई, बस बहन को आँख ही बंद करनी पड़ी और कृष्ण उसी मधुर मुस्कान और आवाज के साथ खड़े थे- "बोलो कृष्णा क्या हुआ!"

हो सकता है इतिहास में ऐसा कभी न हुआ हो पर यह कथा प्रतीक है भाई-बहन के उस अनमोल प्रेम की जिसके आगे सारा भारतवर्ष सच-झूठ की परवाह किए बिना नतमस्तक है। कितने उच्च आदर्शों की बात है। यहाँ पर सिर्फ एक ही संबंध है। वह है प्रेम का संबंध। कुछ लेन-देन नहीं।

रक्षाबंधन आज के अर्थों में :
आज के संदर्भों में भी वही मिसाल कायम है। आदर्श के रूप में ही सही आज भी भाई-बहन का रिश्ता ही एक ऐसा रिश्ता है जो प्रेम की परिभाषा के मानक अर्थों को सही रूप में पूरा करता है। प्रेम की परिभाषा के अनुसार- "प्रेम उसे कहेंगे जहाँ स्वार्थ की बिलकुल भी गंध न हो।" भाई-बहन का ही समाज एक ऐसा संबंध है जहाँ यह अर्थ पूरा होता है।

बचपन की रगों में समाया रक्षाबंधन :
यह एहसासों का त्योहार है, एहसास,जो बचपन में चरम पर होते हैं। उस उम्र में हम अपने से कोई सवाल करने की जहमत नहीं उठाते। उस उम्र में हम समय के साथ यूँ ही बहते जाते हैं। अपने स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल रक्षाबंधन की कहानी को उन दिनों पढ़ने का चाव ही कुछ अलग होता है कि सावन का महीना था, मंद-मंद बयार चल रही थी।

अनिमेष आज सुबह से ही दुखी था क्योंकि उसकी कोई बहन नहीं थी। कहानी के साथ चलते हुए हम उसके क्लाईमेक्स तक पहुँचते हुए खुद ही अनिमेष हो जाते हैं और भावनाओं के उछाल में हम पाते हैं कि हमारी आँखें गीली हो चुकी हैं। तर्क की आँधी त्योहारों के उन्माद को बहा ले जाती है। जो बढ़ती उम्र के साथ जीवन में खरपतवार की तरह पैदा होते हैं।

किसी बड़े दार्शनिक ने कहा है कि हम उसे ही सबसे ज्यादा प्यार करते हैं जिससे सबसे अधिक लड़ाई करते हैं। भाई-बहन के बीच औपचारिकता कहाँ होती है। दो मिनट पहले तक सब कुछ ठीक फिर ऐसी लड़ाई कि रोने की नौबत, फिर कुछ देर में पता ही नहीं चलता कि कभी लड़ाई हुई थी। भाई-बहन के बीच ही सबसे पहले दोस्ती होती है। कितना करीबी है यह रिश्ता की जो स्वयं सिद्ध है।