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अगले पन्ने पर क्या है साइंटोलॉजी का इतिहास...
क्या है साइंटोलॉजी : वर्ष 1955 में एल. रॉन हबॉर्ड ने साइंटोलॉजी की खोज की थी। इस नए सिद्धांत को मानने वाले मानते हैं कि इससे व्यक्ति अपनी अपनी आए दिन की परेशानियों से मुक्ति पा लेता है। साइंटोलॉजी के माध्यम से व्यक्ति को न तो नौकरी की फिक्र सताती है और न बच्चों की। वह वास्तविकता से अलग होकर सोचता है।
साइंटोलॉजी को मानने वालों के अनुसार साइंटोलॉजी का सिद्धांत इलेक्ट्रोसाइकोमीटर या ई-मीटर नामक एक विशिष्ट यंत्र से जुड़ा है, जो आत्मा, रूह, दिमाग और इंसानी भावनाओं तक को माप सकता है, उसका आकलन कर सकता है। माना जाता है कि यह रहस्य, विज्ञान और धर्म का मिश्रण है।
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साइंटोलॉजी का प्रशिक्षण : इस धर्म में दीक्षा के लिए 30 साल तक के लोगों को शामिल किया जाता है। शामिल लोगों को सी ऑर्गेनाइजेशन नामक एक संस्था में रखा जाता है। शामिल लोग अपने परिवार, दोस्तों और करीबियों से दूर हो जाते हैं और फिर उन्हें कड़े अनुशासन में साइंटोलॉजी सिखाई जाती है।
साइंटोलॉजी चर्च के अनुसार परिवार से दूर रहने के बाद लोग आत्मिक और शारीरिक तौर पर शुद्ध हो जाते हैं लेकिन इस संप्रदाय के बहुत से ऐसे पूर्व सदस्य हैं, जो इसे मात्र अंधविश्वास मानते हैं।
उल्लेखनीय है कि साइंटोलॉजी के अजीबोगरीब सिद्धांत के कारण यह तथाकथित धर्म हमेशा विवाद में रहा है। आजकल भारत में इस इस अजीब और शैतानी तरह की विचारधारा का जोर-शोर से प्राचार और प्रासार किया जा रहा है। भारत में भी कई हिन्दू इसके अनुयायी बन गए हैं। भारत में इसके प्रचारक हैं यतीन बजाज जो दिल्ली स्थित साइंटोलॉजी केन्द्र में संचार प्रमुख हैं।
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साइंटोलॉजी ई-मीटर : ई-मीटर एक ऐसा उपकरण है, जिसे चर्च ऑफ साइंटोलॉजी द्वारा विकसित किया गया था। इस डिवाइस का उपयोग चर्च पादरियों द्वारा बुरी आत्माओं से पीड़ित लोगों के लिए इलाज के लिए किया जाता था। सन् 1971 में अमेरिका के कोलंबिया की जिला अदालत ने इस डिवाइस को बेकार की वस्तु बताकर अयोग्य घोषित कर दिया था।
(समाप्त)