* शीतलाष्टमी व्रत : जानिए चैत्र कृष्ण अष्टमी का पवित्र महत्व
पौराणिक शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी का व्रत रखने से छोटी माता का प्रकोप नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता भगवती दुर्गा का ही रूप है। भारतीय उपासना पद्धति जहां मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से मजबूत करती है वहीं शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने का भी इसका उद्देश्य होता है।
कहा जाता है कि चैत्र महीने से जब गर्मी प्रारंभ हो जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं। शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने वाला यह व्रत करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
आयुर्वेद की भाषा में चेचक का ही नाम शीतला कहा गया है। अतः इस उपासना से शारीरिक शुद्ध, मानसिक पवित्रता और खान-पान की सावधानियों का संदेश मिलता है। रंगपंचमी के बाद पड़ने वाले त्योहारों में एक ओर जहां 27 मार्च, बुधवार को शीतला सप्तमी मनाई गई, वहीं 28 मार्च, गुरुवार को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर श्रद्धालु दिन भर उपवास रखकर शीतला माता की पूजा-अर्चना करके बासी भोजन का भोग लगाते है।
शीतला अष्टमी व्रत में चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन शीतल पदार्थों का मां को भोग लगाया जाता है। कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है तथा प्रार्थना की जाती है कि- चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएं।
इस दिन शीतला स्त्रोत का पाठ शीतल जनित व्याधि से पीड़ितों के लिए हितकारी है। स्त्रोत में भी स्पष्ट उल्लेख है कि शीतला दिगंबर है, गर्दभ पर आरूढ है, शूप, मार्जनी और नीम पत्तों से अलंकृत है। इस अवसर पर शीतला मां का पाठ करके निरोग रहने के लिए प्रार्थना की जाती है।
मंत्र- 'वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।'
इसी दिन संतानष्टमी का भी व्रत करने का विधान है। इसमें प्रातःकाल स्नानादि के बाद भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी का विधिवत पूजन करके मध्य-काल में सात्विक पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से पुण्य ही नहीं मिलता बल्कि समस्त दुखों का भी निवारण होता है।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी, वैशाख, जेष्ठ और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी पूजन करने का प्रावधान है। चारों महीने के चार दिन का व्रत करने से शीतला जनित बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इस पूजन में शीतल जल और बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है। इस दिन श्रद्धालु शीतला अष्टमी का व्रत रखकर माता की भक्ति में करके अपने परिवार की रक्षा करने के लिए माता से प्रार्थना करते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार कहीं अन्य स्थानों पर माता शीतला अष्टमी को महिलाएं अपने परिवार तथा बच्चो की सलामती के लिए एवं घर में सुख, शांति के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक माता शीतला को बासौड़ा बनाकर पूजती है। माता शीतला को बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा, बिना नमक की पूड़ी आदि चढ़ावे के एक दिन पूर्व रात्रि में बना लिए जाता है तथा अगले दिन यह बासी प्रसाद माता शीतला को चढ़ाया जाता है। पूजा करने के पश्चात महिलाएं बासौड़ा का प्रसाद अपने परिवारो में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता शीतला का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।