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वाराणसी की देव दीपावली : लाखों दीपों से जगमगा उठेंगे गंगा के घाट...

वाराणसी की देव दीपावली : लाखों दीपों से जगमगा उठेंगे गंगा के घाट... - Dev Deepawali date and time for Varanasi
प्रतिवर्ष कार्तिक महीने की पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है। इस बार यह त्योहार 3 नवंबर 2017, शुक्रवार को मनाया जाएगा। कार्तिक पूर्णिमा पर काशी (वाराणसी, बनारस) के गंगा तट पर अद्भुत नजारा दिखाई देगा। देव दीपावली का पर्व दिवाली के 15 दिनों के बाद मनाया जाता है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव और देवता दीपावली मनाते हैं और इस दिन सभी देवी और देवता काशी जाते हैं। 
 
दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को काशी में गंगा के अर्धचंद्राकार घाटों पर दीपों का अद्भुत जगमग प्रकाश 'देवलोक' जैसे वातावरण की सृष्टि करता है। पिछले कुछ सालों में ही पूरे देश और विदेशों में आकर्षण का केंद्र बन चुका देव दीपावली महोत्सव 'देश की सांस्कृतिक राजधानी' काशी की संस्कृति की पहचान बन हुआ है। करीब 3 किलोमीटर में फैले अर्धचंद्राकार घाटों पर जगमगाते लाखों दीप, गंगा की धारा में इठलाते, बहते दीपक, एक अलौकिक दृश्य की सृष्टि करते हैं। 
 
शाम होते ही सभी घाट दीपों की रोशनी में जगमगा उठते हैं। इस दृश्य को आंखों में समा लेने के लिए लाखों देशी-विदेशी अतिथि घाटों पर उमड़ते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सायंकाल गंगा पूजन के बाद काशी के 80 से अधिक घाटों में से हर घाट पर दीपों की लौ प्रकाश के अद्भुत प्रभामंडल की सृष्टि करती है। शरद् ऋतु को भगवान की महारासलीला का काल माना गया है। ये दीप पूरे कार्तिक मास में टिमटिमाते 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का शाश्वत संदेश देते हैं। इसी क्रम में ये दीप कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर पृथ्वी पर गंगा के तट पर अवतरित होते हैं।
 
परंपरा और आधुनिकता का यह अद्भुत संगम देव दीपावली धर्मपरायण महारानी अहिल्याबाई होलकर के प्रयत्नों से भी जुड़ा है। अहिल्याबाई होलकर ने प्रसिद्ध पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत 'हजारा दीपस्तंभ' स्थापित किया था, जो इस परंपरा का साक्षी है। आधुनिक देव-दीपावली की शुरुआत दो दशक पूर्व यहीं से हुई थी। 
 
पंचगंगा घाट का यह 'हजारा दीपस्तंभ' देव दीपावली के दिन 1001 से अधिक दीपों की लौ से जगमगा उठता है और अभूतपूर्व दृश्य की सृष्टि करता है। विश्वास, आस्था और उत्सव के इस दृश्य को आंखों में भर लेने को उत्सुक लोग यहां खिंचे चले आते हैं। यहां के कुछ प्रमुख घाटों पर तिल रखने भर की जगह नहीं होती। गंगा के घाटों पर उत्सवी माहौल की भीड़ उमड़ने के इस अवसर का तिलिस्मी आकर्षण दिन प्रतिदिन ग्लोबल होता जा रहा है। इस दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है।