क्यों जन्मे थे कृष्ण
- डॉ. ओमप्रकाश गुप्ता
हर साल की तरह, फिर जन्माष्टमी आएगीपरमपिता परमात्मा की, फिर से याद दिलाएगीइस जन्माष्टमी पर, मन में प्रश्न उभरता हैपरमपिता परमात्मा, मानव क्यों बनता हैसुना है विद्वानों से, बैकुण्ठ में प्रभु का वास हैजहां न कोई दुख-संताप, केवल सुख का वास हैउस बैकुण्ठ को छोड़, क्यों आते प्रभु इस लोक है, जहां मात्र संताप, पीड़ा, यातना और शौक है आप कहेंगे, यह कैसा बचकाना प्रश्न हैस्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा हैयदा यदा हि धर्मस्यग्लानि: भवतिभारतअभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदाआत्मानम्सृजामि अहम्? अर्थात्, कृष्ण थे जन्मे पापियों का नाश करनेधर्म की करने रक्षा और अधर्म का नाश करनेबात मैं मानूं नहीं, भगवन क्षमा मुझको करेंसही बात है कुछ और लीला न प्रभु मुझसे करेंकंस शिशुपाल जैसे जंतुओं को मारने के लिएबैकुंठ से हल्का इशारा, पर्याप्त निपटाने के लिएहां, जन्म लेकर आपने, इनका नाश कुछ ऐसे किया?'
बाय-प्रोडक्ट' जन्म का, मन भ्रमित सब का किया?जन्मे थे प्रभु आप, हम मानवों को शिक्षा देनेहम थे भूले-भटके, थे जन्मे हमें राह देनेकैसे करें आदर बड़ों का, माता, पिता, गुरुजनों काकर्तव्य-पालन के लिए, त्याग कैसे करें सुखों काकैसे करें प्रेम निर्मल, मन में न कोई स्वार्थ होमनसा वाचा कर्मणा, हर सोच केवल धर्मार्थ होकैसे निभाएं मित्रता, सीखें सुदामा प्रेम में छोड़ी प्रतिज्ञा स्वयं की, अर्जुन सखा के प्रेम मेंकैसे करें रक्षा बहिन की, जैसे की द्रौपदी हे प्रभोदुष्ट-दण्डित कैसे करें, शिक्षा आपने दी है प्रभोत्यागी दुर्योधन की मेवा, स्वीकारा साग विदुर काछोड़ें हम साथ पापियों का, गुप्त संदेश आपकादी और भी शिक्षा प्रभु, नहीं शब्द मेरे पास हैंहाथ मेरा थामिए प्रभु, केवल मेरी यह आस हैइस जन्माष्टमी पर प्रभु, बोध मुझको दीजिएअनुकरण कुछ कर सकूं, बुद्धि मुझको दीजिएजन्मे थे प्रभु आप क्यों, ज्ञान सबको दीजिएकैसे जीवन जिएं हम, पथ प्रदर्शित कीजिए'
ओम' चरणों में पड़ा, कृपा-शरण दीजे विभुकृष्ण-कृपा सर्वत्र हो, जय-जयकार मेरे प्रभु।