अलेक्सेई पेत्रोविच वरान्निकोव : जिनकी समाधि पर अंकित है रामचरित मानस का दोहा
- न्यूज़ीलैंड से रोहित कुमार 'हैप्पी'
सोवियत रूस के प्रोफेसर अलेक्सेई पेत्रोविच वरान्निकोव हिन्दी और रूसी दोनों भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। दोनों भाषाओं की अच्छी जानकारी व उन पर समान अधिकार होने के कारण आप सरलता से हिन्दी रचनाओं का रूसी में अनुवाद कर देते थे। आपकी मुख्य उपलब्धियों में रामचरित मानस का रूसी में पद्यानुवाद व मुंशी प्रेमचंद की कुछ रचनाओं का रूसी में अनुवाद सम्मिलित है।
वरान्निकोव रूस के प्रमुख कवि भी थे। रामचरित मानस के सफल अनुवाद हेतु आपको रूस का सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑव लेनिन' भी प्रदान किया गया था। वरान्निकोव को रामचरित मानस का अनुवाद करने में साढ़े दस वर्ष लगे थे।
सोवियत रूस के बारे में मान्यता है कि वहाँ के निवासियों को धर्मशास्त्रों के प्रति कोई आस्था नहीं है और न वे परमात्मा के अस्तित्व को ही स्वीकारते हैं। धर्म को अफीम की गोली कहने की मान्यता का उद्गम-केंद्र इसी राष्ट्र को माना जाता है, किंतु वरान्निकोव की समाधि पर रामचरित मानस का निम्नलिखित दोहा अंकित है :
"भलो भलाई पै लहहिं, लहै निचाई नीच।
सुधा सराही अमरता, गरल सराही मीच॥"