प्रवासी साहित्य : 'ढाई आखर प्रेम शब्द'
कुछ शब्दों के जाल बिछे थे
जिन पर पग भरता चल रहा था मन
चौंकना, आजाद, रोमांचित मन
कुछ प्यारभरे, कुछ दर्दभरे
कुछ उदासीन, कई ढोंगी
कुछ विश्वसनीय, कई स्वार्थी
कुछ ममतामय, कई विलासी
कई अर्थों के थे शब्द
आसान नहीं थी राह मन की
दुविधा भीतर में दबाए
चलते-चलते कहे हैं खुद से
मैं हृदयहीन नहीं हूं
साहस, मदमस्त भरा हूं
थोड़ा समय अधिक लग जाएगा
वक्त फिर भी गुजर जाएगा
छल-कपट से दूर ही भला हूं
लोभ से एकांत में भला हूं
संवेदना का साथ नहीं छोड़ूंगा
धैर्य का हाथ थाम चलूंगा
दृढ़ कदम गतिवान मन
'प्रेम' शब्द का अर्थ जानने को आतुर मन
उलझ पड़ा प्रेमजाल में
प्रफुल्लित ठहरा मन
'प्रेम' शब्द का अर्थ है निराला
दिव्य, चुंबकीय और गहरा
वक्त गुजर रहा है फिर भी
मन अपनी सुध है खोए
न दिन देखे, न रात को सोचे
भक्तिभाव से जुटा हुआ है
खोज रहा है, संवर रहा है
ढाई आखर 'प्रेम' शब्द को।