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प्रवासी कविता : गोपियां...

प्रवासी कविता : गोपियां... - pravasi poem
- दिगंबर नासवा


 
साथ मेरा छोड़ गए
गम से रिश्ता जोड़ गए
सच न कह दे आईना
आईने को तोड़ गए
 
लहू की थी प्यास उनको
जिस्म जो निचोड़ गए
शेर को आते जो देखा
जानवर सब दौड़ गए
 
प्रेम करना सीख लिया
आत्मा के कोढ़ गए
गोपियां भरमा रहीं है?
कृष्ण मटकी फोड़ गए
 
बाप ने गलती जो देखी
कान फिर मरोड़ गए।
साभार- गर्भनाल