कहां खो गया हूं, पता नहीं कुछ मुझको,
भटका हुआ मुसाफिर, पूछूं राह मैं किसको।
मेला लगा हुआ है, पर मैं हूं खड़ा अकेला,
अनजाने सब लगते, यह कैसा रेलम-पेला।
कैसे चले जा रहे हैं, तेजी से सब लोग,
भागम-भाग लगी है, लगी हुई है होड़।
कोलाहल है जितना, सन्नाटा भी उतना,
भीड़-भाड़ है भीषण, वीरानापन कितना।
अनजान नगर, अनजान डगर, अनजाने हैं लोग,
सीधा ही मैं चलते जाऊं, ना पूछूं जाऊं किस ओर।