- हरनारायण शुक्ला
कभी वहां रहा कभी यहां, पूछो न कहां से हूं,
घर है ना तो घाट यहां, मैं बंजारा जो हूं,
आज पड़ाव यहां है, कल तम्बू कहां तनेगा,
पता किसे है इसका, कल कोई काम बनेगा,
बने ना बने इसकी, परवाह नहीं कर प्यारे,
जो होगा देखा जाएगा, सब होंगे वारे-न्यारे,
हम पड़ाव में पड़े रहे, मंजिल की कोई बात नहीं,
दुनिया कितनी प्यारी, जन्नत की कोई चाह नहीं,
आज हूं, कल रहूं ना रहूं, ये किसने है जाना,
बेमतलब हो जाएगा, तब मेरा पता-ठिकाना।