गुरुवार, 28 मार्च 2024
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स्वच्छता मिशन : 'नवयुग की वंदना'

स्वच्छता मिशन : 'नवयुग की वंदना' - Swachh Bharat Mission
जीवन की नन्ही-नन्ही खुशियों में, छोटी-छोटी बातों, सामान्य अनुभवों में, अल्प गुजरते क्षणों में कई बार जिंदगी के अनेक मूल्यवान प्रेरणादायक पाठ समाए होते हैं, जो जीवनभर के लिए मूल्यवान सीख बन जाते हैं। 
 
एक ऐसे ही अनुभव से होकर गुजरी मेरी एक सुबह, जब दिमाग के तार खनखना गए और मस्तिष्क के सभी बिंदुओं को जोड़कर शोख रंगों से तस्वीर उभार गए, जो अब तक धुंधली थी। वो कड़कड़ाती ठंड की सुबह थी। सूरज निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था, भारी-भारी कोट और टोपियों से ढंके अनेक बच्चे इधर-उधर बॉल के पीछे भागते शोर मचाते कांपते हाथ में बिस्किट, चिप्स, फल के पैकेट लिए खेलते-खाते दौड़ रहे थे।
 
जगह थी मेरी बिटिया के स्कूल का मैदान, जो मैदान नहीं एक पार्किंग लॉट था, जहां मैं हफ्ते में दो दिन जाकर वॉलंटियर करती हूं। इन नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ वक्त मजे से कटता है और जीवन में हर दिन एक नया अनुभव लेकर आता है। 
 
पास ही पड़ी बेंच पर मैं एक दूसरी शिक्षिका के साथ बातचीत में व्यस्त थी, पांच मिनट गुजरे और कुछ बच्चे हमारी ओर दौड़कर आए और पूछने लगे कि हम कचरा कहां फेंकें? यहां का कूड़ादान कहां है? मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि बच्चों पर डाली। इससे पहले मैं कुछ बोलती, दूसरी शिक्षिका ने फरमान जारी किया कि शायद आज स्कूल वाले कूड़ादान बाहर रखना भूल गए हैं, अपना कचरा अपने साथ रखो? 
 
 


 


बच्चों ने अपनी नन्ही-नन्ही मुट्ठियों में अपने कचरे के खाली रैपरों को दबाया और बिना कोई सवाल किए पलटकर भाग गए और खेलने में व्यस्त हो गए। तीन मिनट पश्चात दूसरे बच्चों का टोला आया, जो पहले से अधिक बड़ा था। आकर वही सवाल करने लगा और मेरा और दूसरी शिक्षिका का फिर से वही जवाब पाने के बाद मुस्कुराकर अपना कचरा हाथ में दबाए खेलने के लिए भाग गया। 
 
मुझसे रहा नहीं गया और बच्चों की परेशानी का हल ढूंढने के लिए मैंने स्कूल ऑफिस में जाकर कूड़ेदान के बारे में सूचित किया, उसी क्षण स्कूल के संचालक माफी मांगते हुए स्वयं एक बड़ा-सा कूड़ादान लेकर बाहर आए, जो कचरा लॉट में पहले से गिरा हुआ था उसे उठाने लगे।
 
मैं पास खड़ी होकर देख रही थी और सोच रही थी इनकी मैं भी मदद कर देती हूं (पहले दिमाग में एक सोच जगाई ‍‍कि मुझे इनकी मदद करना है), परंतु मेरे मदद करने से पहले ही दूसरी शिक्षिका ने स्वयंत्रित आसपास बैठे बच्चों से कहा कि चलो, एक अच्छे नागरिक की तरह नागरिकता दिखाओ? 
 
कई बच्चे दौड़कर आए और आसपास पड़ा कूड़ा उठाकर कूड़ेदान में फेंकने लगे। कुछ बच्चे आसपास की झाड़ियों में से कचरा ढूंढकर फेंकने लगे। जिन बच्चों ने अपनी नन्ही मुट्ठियों में कचरा पकड़ रखा था वे भी दौड़कर कचरा फेंकने लगे। किसी के माथे पर कोई शिकन या परेशानी नहीं थी दूसरे का कचरा उठाकर फेंकने में। दूसरी शिक्षिका वहीं पास की बेंच पर बैठकर बच्चों पर गर्व जता रही थी कि तुम सभी मेरे अच्छे नागरिक हों। 
 
बच्चे धन्यवाद कहकर वापस खेलने में व्यस्त हो गए। दो मिनट में सारा पार्किंग लॉट पहले से अधिक स्वच्छ हो गया। स्कूल के संचालक बच्चों को धन्यवाद देकर फिर भीतर चले गए। इन चंद मिनटों की घटना ने मेरे मस्तिष्क के तार हिला दिए और मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सारे संस्कारों की तरह ही हमें भी अपने आसपास के स्थान सिर्फ घर ही नहीं, वरन हमारे स्कूल, सड़कें, ऑफिस, मॉल, आसपास का इलाका इनकी सफाई की जिम्मेदारी का संस्कार, एक अच्छे नागरिक होने का संस्कार अपने बच्चों में बचपन से ही एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार में रूप नहीं में डालना चाहिए? जहां बच्चे इसे एक नित्य जिम्मेदारी समझकर सफाई में योगदान दें, शुरू से ही उनकी आदतें वैसी ही बनें। 
 
 


 


अमेरिका में मैंने यह भेद नहीं देखा है कि कोई गोरा है, काला है, एशियन है, स्पेनिश है। सुबह-सुबह लोग अपने कुत्तों को घुमाने ले जाते हैं, हाथ में बैग पकड़े होते हैं, अपने कुत्तों की गंदगी के साथ रास्ते में पड़ा कचरा, प्लास्टिक की बोतलें सभी बीनकर अपने बैग में भर लेते हैं और कूड़ेदान में फेंकते हैं घर जाकर। वे सभी अपने पड़ोस, अपनी कॉलोनियों, अपने शहर और अपने देश को स्वच्छ देखना चाहते हैं और स्वच्छ रखना चाहते हैं। 
 
शुरू में यह सब हमारे लिए बिलकुल नया था, जब पहली बार मैंने अपनी पहली अमेरिकन दोस्त को सड़क से कचरा उठाते हुए देखा, तो मैं बहुत आश्चर्यचकित रह गई, साथ में हंसी भी छुट गई। भारत में गरीब बच्चों को सड़क से मजबूरी में कचरा बीनते हुए देखा था। सोचा इसे क्या हो गया है और मैं विस्मयवश पूछ बैठी कि आप क्यों सड़क से कचरा उठा रही हैं? उसका जवाब था कि मैं मेरा मोहल्ला सुंदर और स्वच्छ देखना चाहती हूं। और अच्छे दोस्त की तरह मुझे भी कई बार उसके साथ सड़क से कचरा उठाना पड़ता था, जो मेरे लिए नई बात नहीं थी। बचपन में स्कूल में अपने प्राचार्य महोदय को भी स्कूल में झाड़ू लगाते, शौचालय साफ करते, कचरा बीनते हम विद्यार्थी देखा करते थे और स्वयं भी उनका अनुसरण करते थे। 
 
हमारा स्कूल गांधीवादी विचारधारा का था और कई प्रसिद्ध व्यक्ति हमारे स्कूल आया करते थे। वे हमेशा बहुत मूल्यों की बातें किया करते थे, कोमल बाल मन पर उस वक्त देशभक्ति और संस्कारों का गहरा असर होता था। जब पहली बार दादा विनोबा भावे के आश्रम पर आधारित फिल्म स्वयं उनकी उपस्थिति में स्कूल में देखी थी कि किस तरह कुष्ठ रोगियों के स्वास्थ्य और सफाई का उनके आश्रम में विशेष ध्यान रखा जाता है और सफाई रोगों को दूर भगाने और परे रखने के लिए कितनी जरूरी है।
 
साफ-सफाई वातावरण, घर-आंगन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, सौन्दर्य और तरक्की के लिए बहुत उत्तम है और सुबह-सुबह घर-आंगन साफ कर, नहा-धोकर फिर पूजा करने से लक्ष्मी मां की कृपा हम पर बनी रहती है। यह तो हम सभी ने बचपन से सुन रखा है और कई इसे अपने संस्कारों में ढालकर प्रतिदिन सुप्रभात वेला में आदत अनुसार उसका अनुसरण भी करते हैं। 
 
 


 


मुझे याद है बचपन का एक किस्सा, जब हमारे पड़ोसी महाशय रोज सुबह उठकर अपना आंगन झाड़कर कचरा हमारे घर के आगे फेंक दिया करते थे। घर के सभी बच्चे उन्हें ऐसा करते देखा करते थे, परंतु कई वर्षों के मधुर रिश्तों और घर में बड़ों के डर से कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। फिर एक दिन हमारे पिताजी ने उन्हें ऐसा करते देख लिया और उसके बाद तर्क-वितर्क और बहस ने एक बड़े झगड़े का रूप ले लिया और वर्षों के मधुर रिश्तों में हमेशा के लिए खटास आ गई थी। 
 
हम अपना आंगन साफ कर लें, यह सोचकर लक्ष्मी मां प्रसन्न होकर हमारे जीवन में कृपा करेंगी। सड़क पर खड़ी गाय को सुबह रोटी खिलाकर सोचते हैं कि हम पुण्य कमा लेंगे बिना यह सोचे कि उस गाय का मालिक उससे कितना दुर्व्यवहार करता है, जो सड़क पर छोड़ दिया और यही गाय किसी दूसरे के आंगन में जाकर गोबर कर किसी और का आंगन गंदा करेगी। अपने हाथ से कचरा फैलाकर डालते सरकार पर जिम्मेदारी, मन-नीयत साफ नहीं और अपने साफ आंगन में देखें ख्वाब लक्ष्मी मां के आशीर्वाद का?
 
गांधीजी जैसे महान व्यक्ति स्वयं आश्रम में साफ-सफाई करते थे। गांधीजी ने सफाई के महत्व को भल‍ी-भांति जान लिया था और सारा जीवन वे स्वच्छता के महत्व से सभी को अवगत कराते रहे। उन्होंने अपने आंगन के साथ-साथ मन-नियति को हमेशा स्वच्छ रखा।
 
हमारे वेद-शास्त्रों में भी सफाई के महत्व का उल्लेख है और इस महत्व को धार्मिक दृष्टि से देखा गया है।  

आज हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से देश के लिए स्वच्छता, साफ-सफाई की प्रार्थना की है। उनका सपना है कि भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ भारत का नाम दुनिया के सबसे स्वच्छ देशों में विश्व के मानचित्र पर अंकित हो। 
 
नेताओं के सिर्फ हाथ में झाड़ू लेकर तस्वीरें खिंचवाने या नारेबाजी, कुछ स्लोगन दीवारों पर लिख देने, टीवी या रेडियो पर सरकार के सफाई अभियान का किसी अभिनेता या अभिनेत्री द्वारा थोड़ा प्रचार कर देनेभर से क्या देश खुद-ब-खुद स्वच्छ हो जाएगा?
 
क्या यह जरूरी नहीं है कि इसकी शुरुआत हम घर और स्कूल से ही कर अपने बच्चों में बालपन से ही स्वच्छता और सफाई के महत्व की शिक्षा और कर्म को उन्हें संस्कारों के रूप में प्रदान कर देश को स्वच्छ रखने में अपना सच्चा योगदान प्रदान करें और देश की अस्वच्छता के लिए सिर्फ सरकार को ही दोषी ठहराना बंद कर दें?
 
दुनिया के किसी भी कोने में जाएं, लोग तो सभी एक जैसे ही होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि उनका व्यवहार उनकी परवरिश पर निर्भर रहता है। जिन संस्कारों के बीज बचपन में गहराई से बो दिए जाते हैं तो वे पनपकर जीवनभर सामान्य व्यवहार में शामिल हो जाते हैं। 
 
सड़क पर कचरा फेंकना किसी जमाने में सरेआम स्वीकार्य था, पर आज जब देश हर एक क्षेत्र में, हर दिशा में प्रगति के मार्ग पर नई ऊंचाइयों को छू रहा है तो क्यों न हम भी यह प्रण कर लें कि बस अब और नहीं। अस्वच्छ सड़क, अस्वच्छ मोहल्ला, अस्वच्छ देश, सड़कों पर कचरा अब हमें स्वीकार्य नहीं है।
 
इस साल स्वत्रंतता दिवस के शुभ अवसर पर हमें नए संस्कारों की ज्योत जगानी है, संपूर्ण भारतवर्ष के लिए नवयुग की वंदना करनी है, नव स्वच्छ प्राणवायु भरनी है, एक स्वच्छ भारत देश के हमारे सपने को साकार करना है। 
 
उस दिन मैंने एक नए संस्कार को एक नए अनुभव भी परछाई के साए में स्वयं में पनपते देखा।