बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. एनआरआई गतिविधि
Written By Author डॉ. मुनीश रायजादा
Last Updated : मंगलवार, 28 अक्टूबर 2014 (16:29 IST)

दुनियाभर में पांव पसारता इबोला : अमेरिका में भी दी दस्तक

दुनियाभर में पांव पसारता इबोला : अमेरिका में भी दी दस्तक -
इबोला वायरस पर अमेरिका से रिपोर्ट
 
इबोला वायरस की उत्पति 1976 में हुई मानी जाती है। उस समय अफ्रीका के इबोला नदी (इसी के नाम पर वायरस का नामकरण हुआ है) के किनारे रहने वाले लोगों में फैला यह रोग आज वापस सिर उठा रहा है। 1976 से 2013 तक जहां इबोला के सिर्फ  1716 मामले पाए गए थे, वहीं इसके वर्तमान प्रसार में लाइबेरिया, गिनी व सियरा लियोन में 10000 से अधिक मामलें सामने आ चुके हैं तथा लगभग 5000 लोग इसके कारण काल का ग्रास बन गए हैं। यह आंकड़े स्थिति की भयावहता को दर्शाने के लिए  काफी है।

मेरे यह लेख लिखते समय तक इबोला पश्चिमी अफ्रीकी के ऊपर लिखित 3 देशों में महामारी का रूप ले चुका है, जबकि पांच देशों (माली, सेनेगल, नाइजीरिया, स्पेन व अमेरिका) में यह वायरस यात्रियों के माध्यम से पहुंच चुका है। इस लेख के लिखने के समय तक, अमेरिका में प्रयोगशाला जांच में इबोला से संक्रमित पाए गए 4 मामले पकड़ में आए हैं, जिनमें से एक की मृत्यु हो चुकी है।
 
विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा हर दूसरे दिन जारी किए जा रहे बयान भी मामले की गंभीरता को दर्शाते हैं। एक तरफ जहां दुनिया के कोने-कोने से इन तीन सबसे अधिक प्रभावित देशों में आर्थिक व चिकित्सकीय मदद पहुंच रही है, वहीं धीरे धीरे इस वायरस ने दूसरे देशों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर दिया है।
 
अमेरिका में हाल ही में पाए गए इबोला के मामलों से देश की सीमाओं के परे भी चिंता की लहर व्याप्त हो गई है। जो लोग अमेरिका को ‘विश्वनेता’ मानते है, उनको यह खबर किसी सदमे से कम नहीं लगती है। अमेरिका में इबोला संक्रमण का पहला मामला टेक्सास राज्य डलास शहर में दर्ज हुआ। एक लाइबेरिया- निवासी अमेरिकी,थोमस एरिक डन्कन की डलास में 8 अक्टूबर को इबोला वायरस रोग से मृत्यु हो गई। 
 
एरिक अपने परिवार से मिलने अक्सर अमेरिका आते रहते थे। इसके पश्चात डन्कन की देखभाल करने वाली दो नर्सों की संक्रमण के संदेह में जांच की गई, परन्तु सौभाग्य से ये दोनों संक्रमण रहित पाई गईं और जब ऐसा लगने लगा था कि अब यह रोग आगे नहीं फैलेगा, तभी न्यूयार्क में इबोला का पहला मामला सामने आ गया। एक अमेरिकी चिकित्सक (फिजिशियन), क्रेग स्पेंसर, जो कि हाल ही में गिनी से लौटे थे, रोग से संक्रमित पाए गए। स्पेंसर गिनी में चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वाले एक स्वयं सहायता समूह (एनजीओ), ‘डाक्टर्स विदाउट बोर्डर्स’ के लिए काम करने गए थे। 
 
ऐसे में शहर में फैले भय के वातावरण को नियंत्रित करने के लिए न्यूयार्क शहर के मेयर बिल डी. ब्लासियो को जनता के बीच आना पड़ा व उन्होंने लोगों को आश्वस्त किया कि स्थिति नियंत्रण में है व चिन्ता की कोई बात नहीं है। शहरवासियों की चिन्ता का सबसे बड़ा कारण यह था की जांच में इबोला संक्रमित पाए जाने से पहले स्पेंसर शहर में विभिन्न स्थानों पर घूमते हुए देखे गए थे। उन्होंने बहुत सी सबवे (ट्रेन) लाइनों में यात्रा की थी व अपनी मंगेतर के साथ वह कुछ सार्वजनिक स्थानों पर भी देखे गए थे। इस लेख के लिखे जाते समय तक डा. स्पेंसर में रोग के कई लक्षण विकसित हो चुके हैं। खतरे को भांपते हुए पांच अमेरिकी राज्यों, न्यूयार्क, इलिनोइस, न्यू जर्सी व कोने्क्टिकट व् मैन ने पश्चिमी अफ्रीका के इबोला प्रभावित क्षेत्रों से आ रहे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 21 दिन का आवश्यक आइसोलेशन (पृथक्करण) लागू कर दिया है।
 
हालांकि इबोला संक्रमण हवा द्वारा नहीं फैलता है, फिर भी इसकी संक्रामक प्रवृति व घातकता को देखते हुए जल्द ही कड़े उपाय किए जाने की आवश्यकता है, अन्यथा यह अन्य देशों में भी फैल सकता है। वर्तमान युग में जहां हवाई यात्राओं ने भौगोलिक दूरियां मिटा दी हैं, वहां इस वायरस का भारत सहित दुनिया के किसी भी देश में पहुंचना संभव है। अतः बेहतर यही होगा कि इस रोग का मुकाबला करने के लिए हम अपनी तैयारियों व संसाधनों को पहले ही दुरस्त कर लें। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में यह वायरस बहुत तेजी से फैल सकता है। सरकार जहां हवाई अड्डों पर हो रही गहन जांच को स्थिति से निपटने के लिए ‘पर्याप्त’ बता रही है, वहीं अमेरिका लौटने के एक हफ्ते बाद संक्रमित पाए गए स्पेंसर का मामला सरकारी दावों की धज्जियां उड़ा रहा है। कम से कम हमें स्टेट ऑफ आर्ट (अतिविकसित) आइसोलेशन केन्द्र तो विकसित करने ही होंगे, जो रोग के संभावित आक्रमण के समय इसके प्रसार को रोकने में हमारी मदद करेंगे।
 
मैं जानता हूं कि यह एक बहस का मुद्दा है, परन्तु एक चिकित्सक होने के नाते मैं प्रभावित देशों से यातायात संपर्क कुछ समय के लिए रोक देने की वकालत करूंगा। प्रभावित देशों को आवश्यक तकनीकी व आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के अलावा यह कदम भी रोग के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक व तार्किक है।
 
 
(लेखक शिकागो, अमेरिका में नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ तथा सामाजिक-राजनैतिक टिप्पणीकार हैं)