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Written By भाषा

गाँधीजी की 'सुप्रीम रोमांटिक हीरोइन' थीं कमला

गाँधीजी की ''सुप्रीम रोमांटिक हीरोइन'' थीं कमला -
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देश के हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र को एकीकृत करने और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान देने वाली कमलादेवी चट्टोपाध्याय को महात्मा गाँधी बहुत मानते थे और इस निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी को उन दिनों उनकी 'सुप्रीम रोमांटिक हिरोइन' का खिताब दिया था, जो नमक कानून तोड़ने के मामले में बांबे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थीं।

वर्डसवर्थ की तरह प्रकृति की दीवानी कमला देवी ने ऑल इंडिया वीमेन्स कांफ्रेंस की स्थापना की और देश के विभिन्न हिस्सों में बिखरी समृद्ध हस्तशिल्प तथा हथकरघा कलाओं की खोज की दिशा में अद्भुत एवं सराहनीय काम किया।

ग्रामीण इलाकों में उन्होंने जिस तरह एक पारखी की तरह घूम-घूम कर हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं का संग्रह किया उसके लिए उन्हें 'हथकरघा माँ' की उपाधि भी दी गई थी।

हस्तशिल्प क्षेत्र में जाना माना नाम जया जेटली ने कमला चट्टोपाध्याय के योगदान के संबंध में कहा कि वे पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने हथकरघा और हस्तशिल्प को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग लेने वाली कमला देवी चट्टोपाध्याय बहुत दिलेर महिला थीं और वे पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने 20 के दशक में खुले राजनीतिक चुनाव में खड़े होने का साहस जुटाया। वह भी ऐसे समय में जब बहुसंख्यक भारतीय महिलाओं को आजादी शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था।

कमला देवी ने देश के बुनकरों के लिए जिस शिद्दत के साथ काम किया, उसका असर था कि जब वे गाँव में जाती थीं, तो हस्तशिल्पी, बुनकर, जुलाहे, सुनार अपने सिर से पगड़ी उतार कर उनके कदमों में रख देते थे। इसी समुदाय ने उन्हें 'हथकरघा माँ' का नाम दिया।

तीन अप्रैल 1903 को मेंगलूर के कायस्थ ब्राह्मण परिवार में जन्मी कमला सेवानिवृत डिप्टी कलेक्टर की बेटी थीं और दुर्भाग्य से बाल विवाह का शिकार हुईं।

अत्याचार की यही सीमा होती तो भी नियति मानकर स्वीकार कर लिया जाता लेकिन उन पर दुखों का पहाड़ उस समय टूट पड़ा, जब मात्र 12 वर्ष की उम्र में उनके माथे पर विधवा लिख दिया गया। लेकिन 16 साल की उम्र में उनका पुन: विवाह हुआ।

उनके जाति पाति में विश्वास रखने वाले रिश्तेदार इस विवाह के घोर विरोधी थे लेकिन वे सरोजिनी नायडू के छोटे भाई हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय के साथ विवाह बंधन में बंध गईं।

हरेन्द्रनाथ भी कला, संगीत, कविता और साहित्य में रूचि रखने वाले इंसान थे। लेकिन दोनों की विचारधाराओं में मेल नहीं होने के कारण यह संबंध अधिक समय तक नहीं चला और इसकी परिणति तलाक के रूप में हुई। उस समय उनका एक ही बेटा था रामकृष्ण ।

जिंदगी की तन्हाई और महात्मा गाँधी के आह्वान के चलते वे राष्ट्र सेवा से जुड़ गईं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे चार बार जेल गईं और पाँच साल सलाखों के पीछे गुजारे। राष्ट्रभक्ति का जज्बा ऐसा था कि आजादी के बाद उन्होंने सरकार द्वारा प्रदत्त सम्मान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।