सूचना मांगने वाले को ही सजा..!
-अरविंद शुक्ला, लखनऊ से
अखिलेश राज में उत्तरप्रदेश में यूं तो सरकारी तंत्र की मनमानी कायम है। मगर लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार के बाद लोगों की मुश्किलों और बढ़ गई हैं। ताजा मामले में तो सूचना मांगने वाले को ही सजा सुना दी। इसी कड़ी में एक ऐसा अनोखा मामला सामने आया है, जिसमें उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त रंजीतसिंह पंकज ने बीते 6 जून को अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाकर सूचना मांगने वाले व्यक्ति को ही कारावास की सजा सुना दी। राज्य सूचना आयोग कानूनन न्यायालय नहीं है पर पंकज ने बिना अधिकार के ही सीआरपीसी की धारा 345 के साथ पठित आईपीसी की धारा 228 के तहत न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही में यह तुगलकी आदेश जारी किया हैlसीआरपीसी की धारा 345 में केवल किसी सिविल, दांडिक अथवा राजस्व कोर्ट द्वारा ही कार्यवाही की जा सकती है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार बनाम नमित शर्मा की रिव्यू याचिका (सिविल) संख्या 2309/2012 के आदेश दिनांक 3 सितंबर, 2013 के द्वारा स्पष्ट कर दिया है कि सूचना आयोग न्यायालय नहीं है इसलिए सीआरपीसी की धारा 345 इस मामले में लागू हीनहीं होती हैlआईपीसी की धारा 228 में केवल न्यायिक कार्य करने बाले लोकसेवक के मामले में ही कार्यवाही की जा सकती है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार बनाम नमित शर्मा की रिव्यू याचिका द्वारा स्पष्ट कर दिया है कि सूचना आयुक्त न्यायिक कार्य नहीं करते हैं अपितु प्रशासनिक कार्य करते हैं इसलिए आईपीसी की धारा 228 भी इस मामले में लागू ही नहीं होती हैlआरटीआई एक्ट में सूचना आयुक्त की अवधारणा आरटीआई एक्ट के संरक्षक के रूप में की है पर यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि यही सूचना आयुक्त आज भ्रष्टाचारियों से सुपारी लेकर आरटीआई एक्ट के किलर की भूमिका में सामने आए हैं और प्रदेश में आरटीआई एक्ट का गला घोंटकर आरटीआई एक्ट की मंशा की हत्या करने पर आमादा हैंlउत्तर प्रदेश में सूचना कानून के रक्षक के ही सूचना कानून के भक्षक बनने के इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने उत्तरप्रदेश के राज्यपाल और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर न्यायिक जांच कराने की मांग की है। चूंकि पंकज हाल ही में सेवानिवृत्त हो चुके हैं, अत: उर्वशी शर्मा ने न्यायिक जांच कराने की मांग की है।