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Written By WD

'नापाक' बोल, हां.. हमने मारा कैप्टन सौरभ कालिया को...

''नापाक'' बोल, हां.. हमने मारा कैप्टन सौरभ कालिया को... -
पाकिस्तान की हरकतें कितनी घिनौनी हो सकती हैं, इसका देर-सवेर खुलासा हो ही जाता है। चाहे फिर वह कारगिल युद्ध हो या फिर कश्मीर में भारतीय सैनिकों के सिर काटने की घटना। पड़ोसी देश धूर्तता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने कभी यह स्वीकार नहीं किया था कि कारगिल युद्ध के दौरान उसके सैनिक मौजूद थे। हालांकि बाद में उसने इसे भी स्वीकारा।

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दूसरी ओर भारत ने जब-जब यह मामला उठाया कि भारतीय सेना की सर्च पार्टी के कैप्टन सौरभ कालिया को युद्ध के पहले ही पकड़कर बड़ी ही बेरहमी से यातनाएं देकर मार गया था। तो पाकिस्तान ने इसमें अपनी सेना का कोई हाथ होने से साफ इंकार करते हुए इसे मुजाहिदों का काम बताया था।

उल्लेखनीय है कि कैप्टन कालिया का शव भारत को क्षत-विक्षत अवस्था में मिला था। उनके शरीर पर जख्मों के कई निशान थे, लेकिन पाक ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया उसके सैनिकों ने कैप्टन कालिया को मारा। उसका कहना था उनके शव की दुर्दशा भी मुजाहिदों ने की। इस बीच, कैप्टन कालिया के माता-पिता ने कहा है कि अब उन्हें सरकार के अगले कदम का इंतजार रहेगा। अब आगे पढ़िए पाक सैनिकों का कॉमेडी सर्कस...

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वहीं दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना का एक वीडियो सामने आया, जिसमें उसके सैनिक डींगें मारते दिखाई दिए हैं। पाक सेना की नार्दन लाइट इंफेंट्री के एक नायक ने यहां तक कहा कि कैप्टन कालिया और उनके पांच साथियों को हमने मारा था। कारगिल में भाग लेने वाले पाकिस्तानी सैनिकों के सम्मान में किए गए इस कार्यक्रम में हारी हुई पाक सेना के बौखलाए हुए हीरो के कारनामों का बढ़चढ़ के बखान किया गया है।

इस कार्यक्रम को पाक टीवी वर्ल्ड नामक एक चैनल ने बनाया था। सार्वजनिक रूप से पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कैप्टन कालिया की हत्या की वारदात कबूलने के बाद अब इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि सौरभ कालिया को पाक सैनिकों ने ही बड़ी बेरहमी से मारा था। ... और यदि यह सही है, हालांकि अब संदेह की गुंजा‍इश बचती भी नहीं है, तो पाकिस्तान पर जिनेवा समझौते के उल्लंघन के लिए कार्रवाई होनी ही चाहिए।

दरअसल, पाकिस्तान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसका शीर्षक था 'ट्रिब्यूट टू हीरो ऑफ कारगिल वार ऑफ पाकिस्तान' (कारगिल के जवानों को मेरा सलाम) । इस कार्यक्रम में कारगिल युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों ने अपनी बहादुरी के किस्से (?) सुनाए। इनमें से एक थे नायक गुल ए खानदान। गुल ने कैसी डींगें हांकी, आपको भी भरोसा नहीं होगा... आगे पढ़ें...

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गुल ने कहा कि वह का‍रगिल युद्ध में काफी बहादुरी और जवांमर्दी के साथ लड़ा। उसने कहा कि ढाई-तीन महीने की इस जंग में 13 मई, 1999 को भारतीय सेना के छह बंदों (कैप्टन कालिया और उनके पांच साथी) ने हमारी पोस्ट की ओर एडवांस किया। वे रेकी के लिए आए थे और हमारी पोस्ट, जो कि सबसे ऊंची पोस्ट है, पर कब्जा करना चाहते थे।

उसने आगे कहा कि कैप्टन कालिया और आगे बढ़े। हमने कैप्टन अली अख्तर को इसकी सूचना दी। उन्होंने कहा कि नजदीक आने दो। वे एलओसी क्रॉस कर चुके थे। हम उन्हें बंदी बनाना चाहते थे, मगर ऐसा नहीं हो सका। वे हमारी गोलीबारी में मारे गए। ... और मौजूद लोगों ने बेशर्मी से बजाईं तालियां...आगे पढ़ें...
पाकिस्तानी दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच गुल ने डींगें हांकते हुए कहा कि भारतीयों में इतना हौसला और जुर्रर नहीं थी कि वे अपने सैनिकों की लाश ले जाएं, मगर हमने दस्तूर के मुताबिक उनके शव भारत को लौटा दिए। उसने कहा कि वे शिकार करने आए थे, खुद शिकार हो गए।

गुल ने आगे बताया कि 18 मई को दोबारा हमारे ऊपर हमला हुआ। हम 22 थे, जबकि भारतीय सैनिकों की संख्या 200 से 350 के बीच थी, लेकिन उनको भी मुंह की खानी पड़ी। उनकी एक मशीन गन, अन्य वेपन, मैप, रेडियो सैट आदि हमने अपने कब्जे में ले लिए। इतना ही नहीं बाद में हवलदार सनोवर उस का उपयोग उन्हीं के खिलाफ करता रहा। क्या कहता है हवलदार फिरोज खान... आगे पढ़ें...
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अगली कड़ी में मंच पर आया पाक सेना का हवलदार फिरोज और एक सूबेदार। फिरोज ने अपनी कहानी कुछ इस अंदाज में शुरू की। उसने कहा- हमने भारत के खिलाफ 1948, 1965, 1971 में जंग लड़ी है और आगे भी लड़ते रहेंगे। उसने कहा 19 मई को मेरी पोस्टिंग न्यू तनवीर पोस्ट पर थी।

हम सात सैनिक थे, अचानक 300 भारतीय सैनिक हमारी ओर बढ़े। हमने उनके पास आने का इंतजार किया। और फिर गोलीबारी शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में बर्फ खून ही खून नजर आ रहा था, चारों ओर लाशें बिछी हुई थी। भारतीय सैनिक ऐसे भागे जैसे पागल कुत्ता भी नहीं भागता। मैंने भागते हुए सैनिकों से कहा कि वाजपेयी साहब को मेरा सलाम कहना। जारी है इनकी बेशर्मी की कहानी... आगे पढ़ें....
उसने कहा कि बाद में 4 दिन तक भारतीय सै‍निक लाशों को ढोते रहे। हमने फिर से हमला करने की हमारे कमांडर कर्नल तनवीर से इजाजत मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि तुम्हारी जान ज्यादा कीमती है। हो सकता है उनके पीछे और भारतीय सैनिक हों। पांचवें दिन मैं रेकी के लिए उधर गया। वहां कई लाशें पड़ी थीं।

उसने कहा कि काफी संख्या में जख्मी भारतीय सैनिक पड़े थे। वे चल नहीं सकते थे। उन्होंने कहा कि भगवान के लिए हमें मत मारो। मैंने कहा- घबराओ मत, मैं तुम्हें नहीं मारूंगा। अगर जा सकते हो तो जाओ और अपने सैनिकों को बताओ को वहां फिरोज खान बैठा है। बाद में हमने उनकी एलएमजी, अन्य वेपन, रेडियो सेट उठा लिए और फिर उनके हथियारों का उपयोग उन्हीं के खिलाफ किया। कैप्टन ने बताई पाकिस्तान की सही औकात... आगे पढ़ें...
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कैप्टन रोमेल अकरम ने भी मंच से अपने कारगिल युद्ध के अनुभव बताए। उसकी आंख के नीचे जख्म का एक निशान बना हुआ था। उसने कहा कि हमारी पोस्ट पर करीब 600 भारतीयों ने हमला कर दिया। हमारे 6 सैनिक शहीद हो गए, कई जख्मी हो गए। हमारी संख्या 22 थी। हमारे ऑटोमैटिक वैपन से फायर नहीं हो रहा था क्योंकि गोलीबारी के चलते उनकी काफी समय से सफाई नहीं हो पाई।

हमारे पास आरपीजी-7 रॉकेट लांचर था, जिसे सैनिकों को चलाना भी नहीं आता था। मैंने उससे फायर किया एक गोली पत्थर से लगते हुए मेरे पास गुजरी, जबकि दूसरी गोली मेरी आंख के नीचे लगी। मेरा काफी खून बह गया था, लेकिन मैंने ड्रेसिंग की। मेरे सीओ भी पोस्ट पर थे, जबकि भारतीय सेना में आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि एक छोटी सी पोस्ट पर सीओ मौजूद रहे।