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Last Updated :नई दिल्ली , मंगलवार, 8 जनवरी 2019 (23:05 IST)

मोदी सरकार को बड़ी सफलता, लोकसभा में पास हुआ सवर्ण आरक्षण बिल

मोदी सरकार को बड़ी सफलता, लोकसभा में पास हुआ सवर्ण आरक्षण बिल - voting in loksabha on reservation
नई दिल्ली। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को मंगलवार को 3 के मुकाबले 323 मतों से लोकसभा की मंजूरी मिल गई। अब कल इसके राज्यसभा में जाने की संभावना है, जहां उच्च सदन की बैठक एक दिन और बढ़ा दी गई है। सवर्ण आरक्षण बिल देश की 95 प्रतिशत जनसंख्या को प्रभावित करेगा। 
 

लोकसभा में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने ‘संविधान (124 वां संशोधन), 2019’ विधेयक का समर्थन किया। साथ ही सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिए लाया गया है।
 
लोकसभा में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी सरकार बनने के बाद ही गरीबों की सरकार होने की बात कही थी और इसे अपने हर कदम से उन्होंने साबित भी किया।
 
उनके जवाब के बाद सदन ने 3 के मुकाबले 323 मतों से विधेयक को पारित कर दिया। चर्चा का जवाब देते हुए गहलोत ने कहा कि बहुत सारे सदस्यों ने आशंका जताई है कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा है तो यह कैसे होगा? जो पहले के फैसले किए गए, वो संवैधानिक प्रावधान के बिना हुए थे।
 
उन्होंने कहा कि नरसिंह राव की सरकार को संवैधानिक प्रावधान के बिना 10 फीसदी आरक्षण का आदेश जारी किया था, जो नहीं करना चाहिए था। मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नीति और नीयत अच्छी है, इसलिए संविधान में प्रावधान करने के बाद हम आरक्षण देने का काम करेंगे। ऐसे में इस तरह की (उच्चतम न्यायालय में निरस्त होने की) शंका निराधार है।
 
इस दौरान सदन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, गृह मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद थे। सदन में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौजूद थे। गहलोत ने कहा कि पूरे विचार-विमर्श के बाद यह कदम उठाया गया है। हम देर से लाए, लेकिन अच्छी नीयत से लाए इसलिए आशंका करने की जरूरत नहीं है।
 
गहलोत ने कहा कि यह विधेयक अमीरी और गरीबी की खाई को कम करेगा। इससे लाखों परिवारों को फायदा मिलेगा। इससे सबको फायदा होगा चाहे वह किसी वर्ग या धर्म के हों। उन्होंने विधेयक को नरेन्द्र मोदी सरकार के लक्ष्य ‘सबका साथ, सबका विकास’ की दिशा में अहम कदम करार दिया। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने 3 के मुकाबले 323 मतों से विधेयक को मंजूरी दे दी।
 
अन्नाद्रमुक के एम थंबिदुरै, आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध किया था। इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद न्यायिक समीक्षा में इसके टिक पाने की आशंका जताई गई और पूर्व में पी वी नरसिंह राव सरकार द्वारा इस संबंध में लाए गए कदम की मिसाल दी गई। कई विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार इस विधेयक को लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लाई है।
 
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने विधेयक में हुई चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए इस संबंध में विपक्ष के आरोपों को निर्मूल करार देते हुए कहा कि यह न्यायिक समीक्षा में इसलिए टिकेगा क्योंकि इस विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में संशोधन किया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रस्तावना में सभी नागरिकों के विकास के लिए समान अवसर देने की बात कही गई है और यह विधेयक उसी लक्ष्य को पूरा करता है।
 
जेटली ने कहा कि कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने अपने घोषणापत्र में इस संबंध में वादा किया था कि अनारक्षित वर्ग के गरीबों को आरक्षण दिया जाएगा। उन्होंने विपक्षी दलों को शिकवा-शिकायत छोड़कर ‘बड़े दिल के साथ’ इस विधेयक का समर्थन करने को कहा।
 
कांग्रेस नेता के वी थामस ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जल्दबाजी में लाने की कवायद करार दिया और कहा कि इसमें कानूनी त्रुटियां हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी विधेयक की अवधारणा का समर्थन करती है।
 
केंद्रीय मंत्री एवं लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाना चाहिए ताकि यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाए। 
 
उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के तहत सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को ही इसे मंजूरी प्रदान की है।
 
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि वर्तमान में नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग, ऐसे व्यक्तियों से, जो आर्थिक रूप से अधिक सुविधा प्राप्त है, से प्रतिस्पर्धा करने में अपनी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्चतर, शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार पाने से अधिकांशत: वंचित रहे हैं।
 
अनुच्छेद 15 के खंड 4 और अनुच्छेद 16 के खंड 4 के अधीन विद्यमान आरक्षण के फायदे उन्हें साधारणतया तब तक उपलब्ध नहीं होते हैं जब तक कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
 
संविधान के अनुच्छेद 46 के अंतर्विष्ट राज्यों के नीति निर्देश तत्वों में यह आदेश है कि राज्य, जनता के दुर्बल वर्गो के विशिष्टतया अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा।
 
संविधान का 93वां संशोधन अधिनियम 2005 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 खंड 5 अंत:स्थापित किया गया था जो राज्य को नागरिकों के सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों के संबंध में विशेष उपबंध करने के लिए समर्थ बनाता है।
 
इसमें कहा गया है कि फिर भी नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग आरक्षण का फायदा लेने के पात्र नहीं थे। संविधान 124वां संशोधन विधेयक 2019 उच्चतर शैक्षणिक संस्थाओं में, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाती हों या सहायता नहीं पाने वाली हों, समाज के आर्थिक रूप से दुर्बल वर्गो के लिए आरक्षण का उपबंध करने तथा राज्य के अधीन सेवाओं में आरंभिक नियुक्तियों के पदों पर उनके लिए आरक्षण का उपबंध करता है।
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