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Last Updated : शुक्रवार, 21 जनवरी 2022 (11:07 IST)

नेशनल वॉर मेमोरियल में मिल जाएगी अमर जवान ज्योति, राहुल बोले-कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते

नेशनल वॉर मेमोरियल में मिल जाएगी अमर जवान ज्योति, राहुल बोले-कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते - Rahul on amar jawan jyoti
नई दिल्ली। दिल्‍ली में इंडिया गेट पर बने अमर जवान ज्योति की मशाल की लौ 21 जनवरी से बंद हो जाएगी। अब यह मशाल नेशनल वॉर मेमोरियल की मशाल के साथ मिल जाएगी। इस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कड़ी नाराजगी जताई है।
 
राहुल ने ट्वीट कर कहा कि बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा। कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते- कोई बात नहीं… हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएंगे!
 
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को शाम साढ़े तीन बजे एक कार्यक्रम में अमर जवान की मशाल को नेशनल वॉर मेमोरियल की मशाल के साथ मिला दिया जाएगा। इसके पीछे का तर्क ये है कि 2 जगहों पर मशाल का रखरखाव करना काफी मुश्किल हो रहा है।
 
गुरुवार को रक्षा मंत्रालय की ओर से ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी गई थी कि अमर जवान ज्योति को वॉर मेमोरियल में शिफ्ट किया जाएगा।
 
क्या है अमर जवान ज्योति : पहले विश्व युद्ध और उससे पहले शहीद हुए ब्रिटिश भारतीय सेना के 84,000 सैनिकों के सम्मान में अंग्रेजों ने इंडिया गेट बनवाया था। इसके बाद यहां अमर जवान ज्योति 1971 के युद्ध में शहीद सैनिकों के स्मरण में रखवाई गई थी। 
 
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय सेनाओं ने अदम्य साहस और पराक्रम दिखाया था। इस युद्ध के चलते बांग्लादेश राष्ट्र का निर्माण हुआ। यही नहीं पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारत के आगे सरेंडर कर दिया था। इस जंग में भारत के 3,843 सैनिक शहीद हुए थे। 
 
यह एक अस्थायी व्यवस्था थी, लेकिन अब हमारे पास अलग से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक है। नेशनल वॉर मेमोरियल के निर्माण के बाद से स्वतंत्रता दिवस, 26 जनवरी समेत अहम मौकों पर राष्ट्र प्रमुख वहीं सैनिकों को श्रद्धांजलि देने जाते हैं।

क्या है नेशनल वॉर मेमोरियल : पीएम मोदी ने 25 फरवरी 2019 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया था। यहां 25,942 सैनिकों के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। यह इंडिया गेट के दूसरी तरफ केवल 400 मीटर की दूरी पर स्थित है। 
 
इस युद्ध स्मारक में 1947-48 के युद्ध से लेकर गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष तक शहीद हुए सैनिकों के नाम अंकित हैं। इनमें आतंकवादी विरोधी अभियान में जान गंवाने वाले सैनिकों के नाम भी हैं। सशस्त्र सेनाओं के शहीद सैनिकों की याद में इससे पहले कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं था।