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Last Updated :नई दिल्ली , रविवार, 1 मई 2016 (18:41 IST)

संसदीय समिति ने राजन से पूछी 'डूबे कर्ज' की वजह

संसदीय समिति ने राजन से पूछी 'डूबे कर्ज' की वजह - Raghuram Rajan, Parliamentary committee, RBI, NPA
नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बढ़ते डूबे कर्ज (एनपीए) की वास्तविक वजह बताने को कहा है। राजन ने समिति के समक्ष इसकी प्रमुख वजह कुल आर्थिक कमजोरी को बताया है।
कांग्रेस नेता केवी थॉमस की अगुवाई वाली लोक लेखा समिति (पीएसी) ने राजन के जवाब की समीक्षा की। समिति का कार्यकाल शनिवार को समाप्त हो गया है। 
 
सूत्रों ने बताया कि समिति के पुनर्गठन के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर को भविष्य में उसके समक्ष पेश होने को कहा जा सकता है। इसके अलावा विभिन्न सरकारी बैंकों को भी अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए समिति के समक्ष पेश होने का कहा जा सकता है। 
 
संसदीय समिति ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों की समीक्षा का फैसला किया था। दिसंबर 2015 के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 3.61 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया।
 
दिसंबर के अंत तक 701 खाते ऐसे थे जिन पर सरकारी बैंकों का बकाया 1.63 लाख करोड़ रुपए था। इन सभी खातों पर बकाया 100-100 करोड़ रुपए से अधिक था। इसमें सबसे अधिक हिस्सा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का था। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पहले पीएसी के समक्ष पेश होने को तैयार नहीं थे, लेकिन बाद में वे इसके लिए राजी हो गए और उन्होंने समिति के समक्ष अपनी बात रखी। 
 
पीएसी के एक सदस्य ने कहा कि जांच के दौरान यह बात सामने आई कि कई मामलों में वही बैंक अधिकारी ऋण निकालने का प्रयास कर रहे हैं जिन्होंने इसे मंजूर किया था। चूंकि वही अधिकारी जिन्होंने ऋण मंजूर किया था, उसकी वसूली का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि वे कितने सफल रहते हैं। ऐसा लगता है कि उनके पास इसके लिए कोई तंत्र नहीं है।
 
रिजर्व बैंक के गवर्नर को भेजे सवालों में समिति ने पूछा था कि निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों का एनपीए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों जितना नहीं है। यह स्थिति तब है जबकि प्राथमिकता क्षेत्र ऋण की जरूरत को छोड़कर अन्य सभी मामलों में समूचे बैंकिंग क्षेत्र को समान अड़चनों का सामना करना पड़ता है।
 
समिति ने कहा कि निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों का एनपीए सिर्फ 2.2 प्रतिशत है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 5.98 प्रतिशत है। ऐसे में यह भरोसा करना मुश्किल है कि सिर्फ प्राथमिकता क्षेत्र ऋण इसकी वजह है।
 
पीएसी के चेयरमैन ने गवर्नर से यह भी जानना चाहा है कि हाल में एनपीए और दबाव वाली परिसंपत्तियों में तेजी से उछाल की वास्तविक वजह क्या है और क्या यह 1998 में एनपीए के मुद्दे पर गठित नरसिम्हन समिति द्वारा बताई गई वजहों से भिन्न है।
 
अपने जवाब में राजन ने कहा है कि एनपीए में बढ़ोतरी के कुछ कारण वही हैं जिनका संकेत नरसिम्हन समिति ने दिया था। इसके अलावा दबाव वाली संपत्तियों में बढ़ोतरी को कुल आर्थिक सुस्ती के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए। (भाषा)
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