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Last Updated : रविवार, 28 मई 2017 (18:47 IST)

इंटरनेट के जमाने में फर्जी खबरों का आतंक

इंटरनेट के जमाने में फर्जी खबरों का आतंक - Internet , fake news, terror
नई दिल्ली। परेश रावल को अरुंधति राय द्वारा एक पाकिस्तानी पोर्टल को साक्षात्कार में सेना विरोधी टिप्पणी करने की संभावना इतनी असली लगी कि रावल ने लेखिका के खिलाफ ट्विटर पर टिप्पणियां करने से पहले एक बार नहीं सोचा। वह खबर ही फर्जी निकली जिसमें अरुंधति के हवाले से कहा गया कि 70 लाख भारतीय सैनिक कश्मीरियों को हरा नहीं सकते।
 
लेकिन अरुंधति के खिलाफ रावल के ट्वीट को कई लोगों ने हिंसा उकसाने वाला बताया। रावल ने इस खबर पर भरोसा कैसे किया? क्या उन्होंने खबर की सत्यता की जांच की? क्या फर्जी खबर के खिलाफ कोई कार्रवाई की जा सकती है? ये सवाल पैदा हुए हैं। अरुंधति को उन टिप्पणियों के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जो उन्होंने कही ही नहीं थीं।
 
सोशल मीडिया पर ताजा फर्जी खबर कश्मीर में 40 स्कूली बसों से भरी बस के खाई में गिरने को लेकर है। सोशल मीडिया साइटों पर फर्जी खबरें बढ़ने के बीच कई पेशेवरों ने पीटीआई भाषा से इस वजह से पैदा खतरे तथा इसके पीछे के लोगों की मन:स्थिति के बारे में बात की।
 
मुंबई के मनोचित्सिक डॉक्टर हरीश शेट्टी ने कहा कि चिंतायुक्त विश्व में सुझाव शक्ति बहुत मजबूत है। उन्होंने कहा कि लोग 'इतने भोले हैं' कि 'सच के करीब' लगने वाली किसी भी चीज पर भरोसा कर लेते हैं।
 
अक्सर कई अफवाहें घातक हो सकती हैं। भारत में 20 करोड़ सक्रिय मासिक उपयोगकर्ता वाले व्हॉट्सएप पर बच्चों के अपहरण के संदेश के बाद झारखंड में गांव वालों ने 8 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी। सोशल मीडिया साइटों पर फर्जी खबरों ने हिंसा प्रभावित सहारनपुर में तनाव बढ़ा दिया जिसके बाद सरकार को इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ीं। कश्मीर में सुरक्षाबलों द्वारा अत्याचार के बारे में संदेश से हिंसा बढ़ी।
 
संकट के समय में खबर के रूप में शेयर पोस्ट की पुष्टि करना या इससे इंकार करना आसान नहीं होता। उदाहरण के लिए कश्मीर बस दुर्घटना की खबर से यहां तक कि पुलिस सकते में आ गई जिसे टेलीफोन लाइनों के बाधित होने के कारण इस खबर की सत्यता पता करने में घंटों लग गए। लेकिन ऐसी अफवाहें शुरू करने वाले लोग कौन हैं? और वे ऐसा क्यों करते हैं? 
 
मीडिया पर नजर रखने वाले पोर्टल ‘द हूट’ की संस्थापक सेवंती नीनान ने कहा कि शायद, किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए। अक्सर फर्जी खबरों का खुलासा करने वाली वेबसाइट ‘आल्ट न्यूज’ के प्रतीक सिन्हा ने कहा कि अफवाहें अक्सर राजनीतिक दुष्प्रचार से प्रभावित होती हैं, जहां बिना संबंध वाले वीडियो को घृणा या हिंसा फैलाने के लिए 'स्थानीय रूप से मोड़' दिया जाता है।
 
उदाहरण के लिए, एक लड़की को जिंदा जलाने वाले ग्वाटेमाला के पुराने वीडियो को बुरका नहीं पहनने पर एक मुस्लिम पुरुष से शादी करने वाली एक मारवाड़ी लड़की को जिंदा जलाने के वीडियो के रूप में बताया गया।
 
सिन्हा ने कहा कि जिस समय लोग खबर पढ़ते हैं, वे गुस्से में खौल जाते हैं। वे इसे सच मानकर साझा करते हैं। शेट्टी ने बताया कि गुमराह करने वाली बातें या वीडियो डालने वाले अक्सर किसी तरह के 'रोमांच' का अनुभव करना चाहते हैं। कई बार कुछ लोग आग के बिना दमकल वाहनों को फोन कर देते हैं।
 
सिन्हा ने एक बांग्लादेशी व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या का उदाहरण दिया जिसे पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों द्वारा मारा गया हिन्दू बताया गया था और इसे फेसबुक पर 37,000 से अधिक बार शेयर किया गया। सिन्हा ने कहा कि उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि हर कोई असली और फर्जी खबर में अंतर नहीं कर सकता।
 
लेकिन सेवंती ने कहा कि लोगों को इंटरनेट पर कुछ भी पढते वक्त ‘संदेह’ करना चाहिए, क्योंकि उन्हें भी अपने द्वारा शेयर सामग्री के प्रति जिम्मेदारी की भावना महसूस करनी चाहिए।
 
साइबर कानून विशेषज्ञ और उच्चतम न्यायालय के वकील पवन दुग्गल ने कहा कि पुलिस के लिए यह अपराध 'निम्न प्राथमिकता' में आता है तथा आईटी कानून के तहत फर्जी खबर फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कोई सीधा प्रावधान नहीं है। (भाषा)