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Last Modified: गुरुवार, 24 नवंबर 2022 (19:50 IST)

Patidar Factor in Gujarat Election: गुजरात में इस बार भाजपा से कितने खुश हैं पाटीदार?

Patidar Factor in Gujarat Election: गुजरात में इस बार भाजपा से कितने खुश हैं पाटीदार? - How happy are the Patidars with the BJP this time in Gujarat?
-हेतल कर्नल
गुजरात में 2022 का चुनाव 2017 के चुनाव से काफी अलग है। पिछला चुनाव पाटीदार आंदोलन के साये में हुआ था। कांग्रेस ने ग्रामीण समस्या को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया। यही कारण था कि भाजपा गुजरात में साधारण बहुमत ही हासिल कर पाई, जबकि कांग्रेस ने 1985 के बाद से राज्य में सीट हिस्सेदारी के मामले में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। कांग्रेस की सीट संख्या में सुधार का मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उसका मजबूत प्रदर्शन था। हालांकि सरकार को लेकर ग्रामीण आक्रोश इस चुनाव में नजर नहीं आ रहा है।
 
भाजपा ने EWS आरक्षण और हार्दिक पटेल जैसे पाटीदार आंदोलन के नेताओं को पार्टी में लाकर इन मुद्दों को अपने नियंत्रण में ले लिया है। हालांकि एक सवाल यह भी है कि चुनाव प्रचार में किसानों के मुद्दे इतने हावी क्यों नहीं हैं? इस बार पटेल-पाटीदार इसलिए भी असंतुष्ट नहीं होंगे क्योंकि वर्तमान मुख्‍यमंत्री पटेल ही हैं। वहीं, 2017 में चुनाव के समय मुख्‍यमंत्री विजय रूपाणी थे, जो अल्पसंख्यक जैन समाज से आते थे। 
 
एक दिसंबर को होने वाले पहले चरण की 89 सीटों के लिए कुल 788 उम्मीदवार मैदान में हैं। सौराष्ट्र की 54 में से 16 सीटों पर पाटीदार बनाम पाटीदार का मुकाबला है। कुछ सीटों पर तीनों उम्मीदवार पाटीदार हैं तो कुछ सीटों पर दो उम्मीदवार पाटीदार हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान पाटीदार मतदाता और उम्मीदवार सौराष्ट्र की सीटों पर ज्यादा फोकस करते हैं।
 
हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी के मैदान में उतरने से भाजपा और कांग्रेस के समीकरण बदल गए हैं। मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। 2015 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन का असर 2017 के चुनाव पर देखने को मिला था। भाजपा को पाटीदार वोटरों के गुस्से का सामना करना पड़ा, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ। इससे सौराष्ट्र की 54 सीटों में से 30 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं, जबकि भाजपा को 23 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसके अलावा यदि आप भाजपा से असंतुष्ट लोगों के वोट हासिल करने में सफल होती है तो इसका सीधा फायदा भाजपा को ‍ही मिलेगा क्योंकि यदि ये वोट कांग्रेस की झोली में जाते हैं तो भगवा पार्टी को नुकसान पड़ेगा। 
 
मजदूरी के मामले में गुजरात दूसरे राज्यों से अलग नहीं : सितंबर 2022 तक उपलब्ध डाटा के मुताबिक ग्रामीण मजदूरी के मामले में गुजरात शेष भारत से बहुत अलग नहीं है। अखिल भारतीय स्तर पर और राज्य स्तर पर ग्रामीण मजदूरी पिछले कुछ महीनों से गिर रही है। इससे पता चलता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है। हालांकि इसके बावजूद ग्रामीणों में इस बार असंतोष का भाव दिखाई नहीं दे रहा है। 
 
कृषि विकास आंकड़े उत्साहजनक नहीं : सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के डेटा से पता चलता है कि गुजरात में कृषि और संबद्ध गतिविधियों में 2020-21 में केवल 1.1% की वृद्धि हुई है, जो पिछले चुनाव 2017-18 के 9.2% के आंकड़े से काफी कम है।
 
हालांकि गुजरात में कृषि, देश के अधिकांश राज्यों से बहुत अलग है। कपास और मूंगफली, ये दो फसलें गुजरात की कृषि अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 2011-12 और 2019-20 के बीच इन दो फसलों का गुजरात में फसल उत्पादन के कुल मूल्य का 40% हिस्सा था। फसल उत्पादन के कुल मूल्य में इन दोनों फसलों के हिस्से की तुलना से पता चलता है कि पहली फसल के उत्पादन में काफी उतार-चढ़ाव आया है।
कपास, मूंगफली के ऊंचे भाव : CMIE के कमोडिटी प्राइस डेटा के मुताबिक मूंगफली और कपास की प्रति क्विंटल कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। अक्टूबर 2022 में मूंगफली का भाव प्रति क्विंटल 5857 रुपए और कपास की कीमत 7876 रुपए प्रति क्विंटल है। अक्टूबर 2017 में जब गुजरात में पिछला विधानसभा चुनाव हुआ था तब मूंगफली की कीमत 4150 रुपये प्रति क्विंटल और कपास की कीमत 4430 रुपये प्रति क्विंटल थी। पांच साल पहले की तुलना में अब कीमत काफी ज्यादा है। महंगाई की वजह से ही नहीं, अक्टूबर 2017 में इन दोनों फसलों के दाम पहले के मुकाबले कम थे।
 
माना जा रहा है कि गुजरात के किसानों के लिए दो सबसे महत्वपूर्ण फसलों की कीमतों में उछाल ने इन चुनावों में ग्रामीण गुस्से को शांत कर दिया है। हालांकि यह तो परिणाम ही बताएगा कि ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों के नतीजे इस तर्क को सही साबित करेंगे या फिर खारिज करेंगे। 
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