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Last Updated : शनिवार, 13 जुलाई 2019 (00:47 IST)

कर्नाटक संकट : न्यायालय ने इस्तीफों और अयोग्यता मुद्दे पर स्पीकर को 16 जुलाई तक निर्णय से रोका

HD Kumaraswamy। कर्नाटक संकट : न्यायालय ने इस्तीफों और अयोग्यता मुद्दे पर स्पीकर को 16 जुलाई तक निर्णय से रोका - HD Kumaraswamy
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष केआर रमेश कुमार से कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन के 10 बागी विधायकों के इस्तीफों और उनकी अयोग्यता के मसले पर अगले मंगलवार तक कोई भी निर्णय नहीं लिया जाए।
 
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की 3 सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण मुद्दे उठने का जिक्र करते हुए कहा कि वह इस मामले में 16 जुलाई को आगे विचार करेगी और शुक्रवार की स्थिति के अनुसार तब तक यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए।
 
शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में इससे जुड़ा सवाल पैदा होगा कि संवैधानिक अदालत किसी अन्य संवैधानिक पदाधिकारी को किस तरह का और किस हद तक निर्देश दे सकती है। मौजूदा मामले में यह अन्य संवैधानिक पदाधिकारी विधानसभा अध्यक्ष हैं।
 
पीठ ने अपने आदेश में विशेष रूप से इस बात का उल्लेख किया कि कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार इन बागी विधायकों के त्यागपत्र और अयोग्यता के मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लेंगे ताकि मामले की सुनवाई के दौरान उठाए गए व्यापक मुद्दों पर न्यायालय निर्णय कर सके।
 
पीठ ने कहा कि यह आदेश इस अदालत ने सिर्फ इसलिए पारित किया है ताकि वह बड़े संवैधानिक सवालों पर फैसला कर सके। मामले को मंगलवार 16 जुलाई 2019 को सूचीबद्ध किया जाए। पीठ ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी जिक्र किया है कि विधानसभा अध्यक्ष और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत बागी विधायकों द्वारा दायर याचिका की विचारणीयता का मुद्दा भी उठाया है।
 
पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका की विचारणीयता के सवाल के अतिरिक्त इस मामले में अनुच्छेद 164, 190, 361 बी और 10वीं अनुसूची के प्रावधानों से संबंधित महत्वपूर्ण सवाल विचार के लिए पैदा होते हैं। पीठ ने यह भी कहा कि उसे इस सवाल का भी हल निकालना है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष पर विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने से पहले उनकी अयोग्यता की कार्यवाही पर फैसला करने का दायित्व है।
 
पीठ ने यह भी कहा कि बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने विधानसभा अध्यक्ष की इस दलील का प्रतिवाद किया है कि सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों के इस्तीफे के मसले पर विचार करने से पहले उनकी अयोग्यता के मामले पर निर्णय लेना होगा। पीठ ने कहा कि इन सभी पहलुओं और हमारे समक्ष मौजूद अधूरे तथ्यों की वजह से इस मामले में आगे सुनवाई की जरूरत है।
 
पीठ ने कहा कि सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण विषय उठने के मद्देनजर हमारा मत है कि इस मामले में हमें मंगलवार को भी विचार करना होगा। हमारा मानना है कि आज की स्थिति के अनुसार यथास्थिति बनाए रखी जाए। न तो इस्तीफे के बारे में और न ही अयोग्यता के मुद्दे पर मंगलवार तक निर्णय किया जाएगा।
 
बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफों पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है और इसे लंबित रखने के पीछे उनकी मंशा इन विधायकों को पार्टी व्हिप का पालन करने के लिए बाध्य करना है।
 
उन्होंने कहा कि अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत पहुंचने के लिए बागी विधायकों की मंशा पर सवाल किए हैं और मीडिया की मौजूदगी में उनसे कहा कि 'गो टु हेल'। रोहतगी ने कहा कि अध्यक्ष को इन इस्तीफों पर फैसला लेने के लिए 1 या 2 दिन का समय दिया जा सकता है और यदि वे इस अवधि में निर्णय नहीं लेते हैं तो उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस दिया जा सकता है।
 
संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा सदन में कराए गए विधायी और दूसरे कार्य न्यायालय की समीक्षा के दायरे से बाहर हैं लेकिन इस्तीफों का मामला ऐसा नहीं है। मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से सवाल किया कि क्या उन्हें शीर्ष अदालत के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है?
 
सिंघवी ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का पद संवैधानिक है और बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए पेश याचिका पर फैसला करने के लिए वे संवैधानिक रूप से बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष विधानसभा के बहुत ही वरिष्ठ सदस्य हैं। वह संवैधानिक प्रावधानों को जानते हैं। उन्हें इस तरह से बदनाम नहीं किया जा सकता।
 
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि न्यायालय ने बागी विधायकों के इस्तीफे के मामले में विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस दिए बगैर ही 'एकपक्षीय' आदेश पारित किया है। धवन का कहना था कि इन विधायकों ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं लेकिन उसका पक्ष सुने बगैर ही आदेश पारित किया गया।
 
उन्होंने कहा कि बागी विधायकों में से एक विधायक पर पोंजी योजना में संलिप्त होने का आरोप है और इसके लिए हमारे ऊपर आरोप लगाया जा रहा है। विधानसभा अध्यक्ष को स्वयं को इस तथ्य के बारे में संतुष्ट करना होगा कि इन विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफे दिए हैं। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को विधानसभा अध्यक्ष से कहा था कि 10 बागी विधायकों के इस्तीफे के मामले में तत्काल फैसला किया जाए।
 
इसके साथ ही न्यायालय ने कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक को मुंबई से बेंगलुरु पहुंच रहे बागी विधायकों को हवाई अड्डे से विधानसभा तक समुचित सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश दिया था। कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक संकट के दौरान अभी तक कुल 16 विधायक (कांग्रेस के 13 और जद (एस) के 3 विधायक) इस्तीफा दे चुके हैं। 2 निर्दलीय विधायकों ने भी 13 महीने पुराने सत्तारूढ़ गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया है। (भाषा)
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