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Last Modified: बुधवार, 2 अगस्त 2023 (22:33 IST)

Kuno Cheetah Death : चीतों में फर की मोटी परत और नमी ले रही जान, इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट

Kuno Cheetah Death : चीतों में फर की मोटी परत और नमी ले रही जान, इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट - cheetahs developing thick coats in anticipation of african winter  leading to fatal infections in indian conditions experts
नई दिल्ली। अफ्रीका की सर्दियों के आदी चीतों के ‘फर’ की मोटी परत विकसित होने की प्राकृतिक प्रक्रिया, भारत की नमी युक्त और गर्म मौसमी परिस्थितियों में प्राणघातक साबित हो रही हैं। यह दावा चीता परियोजना से जुड़े अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने किया है। सरकार को सौंपी रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चीतों के फर को काटने की सलाह दी है ताकि उन्हें प्राणघातक संक्रमण और मौत से बचाया जा सके।

अफ्रीका से लाकर मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 20 वयस्क चीतों को बसाया गया था। इनमें से मार्च के बाद से 6 की मौत हो गई है। चीते की मौत का सबसे नवीनतम मामला बुधवार को सामने आया।
 
विशेषज्ञों ने कहा कि फर की मोटी परत परजीवियों और नमी से होने वाले त्वचा रोग के लिए आदर्श परिस्थिति है, इसके साथ ही मक्खी का हमला संक्रमण को बढ़ाता है और त्वचा के स्वास्थ्य के लिए विपरीत परिस्थिति पैदा करता है।
 
उन्होंने कहा कि जब चीते अपने जांघ के बल पर बैठते हैं तो संक्रमित तरल पदार्थ फैल कर रीढ़ की हड्डी तक पहुंच सकता है।
परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि सभी चीतों की त्वचा पर घने फर विकसित नहीं हुए हैं।
 
उन्होंने कहा कि कुछ चीतों के लंबे बाल नहीं है और उन्हें ऐसी समस्या का सामना करना नहीं पड़ा है। इसलिए प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के तहत सबसे सेहतमंद चीते और उनके शावक जिंदा रहेंगे और उनके शावक भारतीय परिस्थितियों में फलेंगे-फूलेंगे।
 
हाल में सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में, विशेषज्ञों ने कहा कि जलवायु चीतों के लिए एकमात्र कारक नहीं है क्योंकि उनके निवास क्षेत्र की ऐतिहासिक सीमा दक्षिणी रूस से दक्षिण अफ्रीका तक फैली हुई है, जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों से युक्त है।
 
रिपोर्ट में उद्धृत शोध के अनुसारर 2011 और 2022 के बीच 364 चीतों को स्थानांतरित करने के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि उनके अस्तित्व के लिए जलवायु बड़ी बाधा नहीं है।
 
उक्त सरकारी अधिकारी ने स्वीकार किया कि अफ्रीकी विशेषज्ञों ने भी ऐसी स्थिति की आशा नहीं की थी।
 
इन चीतों को दवा देने के संभावित जोखिमों के बारे में चिंताएं जताई गई हैं जिसमें चीतों को भगाना, पकड़ना और बाड़ों में वापस लाना शामिल है। इस तरह की कार्रवाइयों से तनाव और मौत का जोखिम हो सकता है, जिससे चीतों का उनके नए आवास में संतुलन बनाने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
 
बहुप्रतीक्षित ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत, कुल 20 चीतों को दो दलों में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में लाया गया था। पहला दल पिछले साल सितंबर में और दूसरा दल इस वर्ष फरवरी में आया।
 
मार्च के बाद से इनमें से 6 वयस्क चीतों की विभिन्न कारणों से मौत हो चुकी है। मई में, मादा नामीबियाई चीता से पैदा हुए चार शावकों में से तीन की भी अत्यधिक गर्मी के कारण मौत हो गई थी।
 
चीता परियोजना के तहत आठ नामीबियाई चीतों - पांच मादा और तीन नर - को पिछले साल 17 सितंबर को केएनपी के बाड़ों में छोड़ा गया था। फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते केएनपी लाए गए थे।
 
बाद में मार्च में नामीबियाई चीता ‘ज्वाला’ के चार शावक पैदा हुए, लेकिन उनमें से 3 की मई में मौत हो गई थी।
 
ग्यारह जुलाई को एक नर चीता ‘तेजस’ मृत पाया गया था जबकि 14 जुलाई को एक और नर चीता ‘सूरज’ मृत पाया गया था।
 
इससे पहले, नामीबियाई चीतों में से एक साशा की 27 मार्च को किडनी से संबंधित बीमारी के कारण मौत हो गई थी, जबकि दक्षिण अफ्रीका के एक अन्य चीते ‘उदय’ की 13 अप्रैल को मौत हो गई थी। दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते ‘दक्ष’ की नौ मई को मौत हो गई थी।
 
देश में इस जंगली प्रजाति के विलुप्त होने के 70 साल बाद भारत में चीतों को फिर से लाया गया।
 
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को कहा था कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक साल से भी कम समय में आठ चीतों की मौत हो जाना एक ‘‘सही तस्वीर’’ पेश नहीं करता। इसने केंद्र से इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाने और इन वन्यजीवों को अन्य अभयारण्यों में भेजने की संभावना तलाशने को कहा था। भाषा  Edited By : Sudhir Sharma
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