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Written By WD Feature Desk

Bharat Ratna Karpoori Thakur: कौन हैं कर्पूरी ठाकुर जिन्हें सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया

Bharat Ratna Karpoori Thakur: कौन हैं कर्पूरी ठाकुर जिन्हें सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया - Bharat Ratna Karpoori Thakur
केंद सरकार की ओर से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद से हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है।  सरकार ने ये ऐलान 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती के अवसर पर किया।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 1924 में बिहार के समस्तीपुर के पितौझिया गाँव में समाज के सबसे पिछड़े वर्गों में से एक नाई समाज में हुआ था। कर्पूरी ठाकुर एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और एक सफल राजनेता थे।
उन्होंने सामाजिक भेदभाव और असमानता के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने शिक्षा,  रोजगार और किसान कल्याण के क्षेत्र में कई कारगर प्रयास किए। कर्पूरी ठाकुर को बिहार में जननायक के नाम से पुकारा जाता है। कर्पूरी का निधन 64 वर्ष की उम्र में 17 फरवरी 1988 को हुआ था।

1940 के स्वतंत्रता आंदोलन में लिया था भाग
कर्पूरी ठाकुर ने 1940 में पटना से मैट्रिक परीक्षा पास की थी। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद कर्पूरी ठाकुर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। तब उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
बिहार के पहले गैर कांग्रेस मुख्यमंत्री
वे 1970-79 के बीच  बिहार के पहले गैर कांग्रेस मुख्यमंत्री रहे हैं। पहली बार वे दिसंबर 1970 से जून 1971 तक सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में सीएम बने थे। सीएम बनने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को आरक्षण दिया था। वे दूसरी बार जनता पार्टी की सरकार में जून 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
1952 में जीता पहला चुनाव और फिर कभी नहीं हारे
कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में पहला विधानसभा चुनाव जीता था। इसके बाद कभी भी वे विधानसभा चुनाव नहीं हारे। उन्होंने कई सामाजिक मुद्दों पर काम किया और जनता के हित को सदन में मजबूती से उठाया। समाज में कमजोर तबकों पर होने वाले जुल्म और अत्याचार की घटनाओं को लेकर कर्पूरी ठाकुर सरकार को भी कठघरे में खड़ा करने से नहीं घबराते थे। 
झोपड़ी में रहने वाला मुख्यमंत्री


राजनीति को सामजिक बदलाव के लिए इस्तेमाल करने वाले कर्पूरी ठाकुर अपनी ईमानदारी और सादगी के लिए जाने जाते थे। उनका जन्म झोपड़ी में हुआ था और कहा जाता है कि दो बार मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद भी निधन के समय उनके पास वही पुश्तैनी झोपड़ी थी। कर्पूरी ठाकुर राजनीति में परिवारवाद के बेहद खिलाफ थे। उनके पास न अपना घर था ना ही गाड़ी।
जब बकरी चराती दिखीं मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पत्नी...
मुख्यमंत्री पद पर होने के बावजूद उनकी पत्नी गाँव के अपने झोपड़ीनुमा घर में ही रहती थीं और सामान्य ग्रामीण जीवन जीती थीं। एक बार की बात है जब कर्पूरी ठाकुर पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब समस्तीपुर के एसडीओ स्थानीय सीओ के साथ फील्ड विजिट पर थे। अचानक सीओ ने खेत में बकरी चारा रही एक महिला का परिचय मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पत्नी के रूप में दिया। जब एसडीओ ने कन्फर्म किया तो बात सही निकली।
उनकी इसी सादगी और ईमानदारी ने उन्हें जनता का लोकप्रिय जननायक बना दिया था। बता दें कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए लंबे समय मांग उठ रही थी