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Written By मधु किश्वर

नरेन्द्र मोदी के बारे में एक गुजराती मुस्लिम की सोच

नरेन्द्र मोदी के बारे में एक गुजराती मुस्लिम की सोच -
वर्ष 2002 के
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दंगों के बाद एक गुजराती मुस्लिम जफर सरेशवाला उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने मोदी के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाया था। वे उस समय एक हस्ती बन गए थे जब उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा था कि वे मोदी को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस तक घसीट लेंगे। लेकिन, जल्दी ही उन्होंने अपना रास्ता बदल दिया।


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एक ऐसे समय में जब मोदी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घृणा के पात्र बन चुके थे तब उन्होंने सीधे मोदी से ही बात करने का फैसला किया। उन्होंने यह फैसला इस तथ्‍य के बाद किया कि दंगों में उनके परिवार को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ा था। उनकी फैक्टरी पूरी तरह से राख हो गई थी। इससे पहले भी उनका परिवार 60 के दशक, 70 के 80 और 90 के दशक के दंगों में पहले भी कई बार नुकसान उठा चुका था।

प्रत्येक बार वे अपने कारोबारी ठिकानों को खड़ा करते, दंगों में उन्हें जला दिया जाता और उन्हें नए सिरे से फिर एक बार कारोबार जमाना पड़ता था। अपने 'राजनीतिक दृष्टि से गलत कदम' के चलते वे बहुत अधिक खामियाजा भुगत चुके थे। जिन्होंने हीरो बनाया, उन्हीं ने बदनाम किया... आगे पढ़ें...

जफर पर न केवल उनके ही साथी मुस्लिमों ने हमला किया बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी उन्हें निशाना बनाया। कार्यकर्ताओं के नेटवर्क्स ने कहा कि वे मोदी के हाथों बिक गए हैं और उन्होंने अपने समुदाय को धोखा दिया। जिन लोगों ने उन्हें मोदी विरोधी अभियान चलाने के लिए एक हीरो बना दिया था, उन्होंने ही उन्होंने समूची आक्रामकता के साथ बदनाम भी किया।

काफी महीनों पहले मैंने (मधु) गुजरात पर एक टीवी बहस के दौरान जफर के छोटे-छोटे साउंड बाइट्‍स सुने। पर तब हमारे टीवी एंकर्स मोदी को एक सामूहिक हत्याएं करने वाला कसाई और एक फासिस्ट नेता बनाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे, इसलिए वे जफर को उनके वाक्य ही पूरे नहीं करने देते थे। यह स्पष्ट था कि वे मोदी से नफरत करो अभियान को कुछ अधिक 'संतुलित' दिखाने के लिए नाममात्र के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे थे।

गुजरात शिखर बैठक के दौरान मैं 11 जनवरी, 2013 को जफर से मिली थीं। मैं यह जानने के लिए खुद पहुंची थी कि मोदी विरोधियों के लिए गुजरात के विकास मॉडल की योजनाबद्ध तरीके से कटु आलोचना करना कहां तक उचित था, लेकिन जफर के साथ हुई एक आकस्मिक मुलाकात और मेरे साथ बातचीत करने के लिए समय देने की सहज इच्छा ने मुझे अंदर तक हिला दिया। नरेन्द्र मोदी से जफर की पहली मुलाकात में क्या हुआ... आगे पढ़ें...

जब रजत शर्मा के साथ मोदी लंदन पहुंचे तब मैंने उनसे मिलने की बात कही। लंदन में मोदी साहिब ने हमसे वेम्बली में किसी हॉल में मिलने को कहा। मैंने जवाब दिया कि हम उनसे प्राइवेट में मिलना चाहते हैं। वे राजी हो गए और उन्होंने हमें शाम पांच बजे सेंट जेम्स कोर्ट में मिलने बुलाया, जहां वे लंदन में ठहरे थे। समय था अगस्त माह 2003 का।

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अब देखिए कि मोदी हमसे कैसे मिले। उन्होंने इस बात पर नजर रखी कि हम किस समय बिल्डिंग में आए और वे हमसे मिलने के लिए लिफ्‍ट तक आए। उनके साथ बैठक के परिणाम को लेकर मैं बहुत नर्वस था। उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया और हिंदी में बोले- आओ यार।

कमरे के अंदर एक झूला था। वे झूले पर बैठ गए और उन्होंने मुझे बगल में बैठाया। चूं‍क‍ि उस समय वे गुजराती अस्मिता की बातें करते थे, इसलिए मैंने कहा- मोदीजी आप मेरी तुलना में थोड़े से कम गुजराती हैं। उन्होंने पूछा- कैसे? मैंने कहा- आपको पता है कि मैं अहमदाबादी हूं और अहमदाबादी सारे मामलों में पूरी तरह से शुद्ध गुजराती होते हैं, लेकिन आप वडनगर से हैं। आप पूरी तरह से गुजराती नहीं हैं। वे बोले- हां, आपकी बात ठीक लगती है। मोदी ने खुलकर बात की मुसलमानों से, क्या... आगे पढ़ें...
इस बैठक में रजत शर्मा समेत करीब 8-10 लोग थे। मैंने कहना शुरू किया -आप यहां वाइब्रेंट गुजरात के लिए आए हैं गुजरात की आर्थिक प्रगति के लिए। लेकिन यह आर्थिक प्रगति बिना न्याय के खाली रहेगी। प‍‍श्च‍िमी देशों का दुनिया पर शासन है क्योंकि वे अपने नागरिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करते हैं। और हमारे देश में बहुत गड़बड़ है- यहां मैं अकेले मुस्लिमों की बात नहीं कर रहा हूं- क्योंकि हमसे प्रत्येक अपने देश में किसी न किसी अन्याय का सामना करता है। बिना न्याय के कोई शांति नहीं हो सकती है।

इसके बाद हमारे साथ आए मौलाना ईसा मंसूरी ने मोदी को न्याय के महत्व पर लम्बा चौड़ा भाषण दे डाला। गुजरात के एक बहुत बड़े उद्योगपति वहां मौजूद थे। वे अपनी घड़ी को बार बार देख रहे थे। जबकि उस शाम मोदी के और भी कई बड़े कार्यक्रम थे। पर उन्होंने उनसे कहा- आप अपना घड़ी देखना बंद कीजिए। अब मैं इन लोगों के साथ कुछ समय गुजारना चाहता हूं। तब उन्होंने हमसे कहा- आपको जितना समय लगे आप लीजिए और जो कुछ आप मुझसे कहना चाहते हों, कहें।

इसके बाद हमने दंगों की बात की और उनसे पूछा-27 फरवरी, 2002 की सुबह आप क्या कर रहे थे? आपने अपनी पुलिस और आर्मी को क्यों नहीं बुलाया? आप जुहापुरा क्यों नहीं गए? आप शरणार्थी शिविरों में क्यों नहीं गए? बाद में मोदी से एसआईटी ने जो सवाल पूछे थे, वही सवाल हमने उनसे उसी दिन पूछे। इसके बावजूद हम पर आरोप लगाए गए कि निजी लाभ के लिए हम मोदी से मिले। क्या इससे भी बड़ा कोई झूठ हो सकता है? क्या कहा था मौलाना मदनी ने नरेन्द्र मोदी से.. आगे पढ़ें...
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हमारे साथ गए मौलाना ईसा मदनी, मोदी को लेकर बहुत सख्त थे। लेकिन मोदी ने उनसे बहुत सम्मान के साथ बर्ताव किया क्योंकि वह बहुत बड़े विद्वान थे। मोदी सब कुछ सुनते रहे जिसकी किसी 'हिंदू हृदय सम्राट' से बहुत कम उम्मीद की जा सकती थी?

मौलाना ने उनसे कहा- 'मोदी साहिब, सब कुछ भूल जाएं। हमें न्याय दिलाने में मदद करें। अगर ऐसा करते हैं तो आप अपने आपही सबसे आगे निकल जाएंगे। हम न्याय की केवल मुस्लिमों को लेकर बात नहीं कर रहे हैं जो कि जनसंख्या में केवल 15 फीसद हैं। हिंदू अन्याय के और भी बड़े शिकार हैं। सभी के लिए न्याय उपलब्ध कराएं।' मौलाना ने मोदी को लगभग कटघरे में खड़ा कर दिया था। यह मोदी की परिपक्वता थी कि उन्होंने भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बाद भी हम सबको सुना।

मेरा छोटा भाई ताल्हा भी भारत से इस बैठक के लिए वहां आया था। ताल्हा ने सभी कुछ देखा था और वह राहत कार्य में सक्रियता से जुड़ा हुआ था। मैंने मोदी से कहा- देखिए कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि एक हजार से ज्यादा मुस्लिम मारे गए हैं। मैं आपसे इतना पूछता हूं कि पालमपुर और वापी के बीच में और भरूच और जामनगर के बीच जो कुछ होता है, अच्छा या बुरा, उस सब भी जिम्मेदारी आप पर होती है। आप हमारे मुख्यमंत्री हैं। जब कभी कोई समस्या होती है, जिसके साथ भी समस्या होती है- वह चाहे हिंदू हो या मुस्लिम-यह आपकी जिम्मेदारी होती है। हमारे पास हमेशा ही यह अधिकार रहेगा कि हम आपसे पूछेंगे कि आपका नियंत्रण होने के बाद यह सब कैसे हुआ? हां, यह मेरे काल का कलंक है, और क्या कहा मोदी ने आगे पढ़ें...
इस पर मोदी ने जवाब दिया- 'हां, ये मेरे काल का कलंक है और मु्‍झे उसको धोना है।' लोगों ने हमसे कहा था कि मोदी कभी अपनी गलती नहीं मानते हैं, सॉरी नहीं बोलते हैं। मैंने कहा था- सॉरी का क्या मतलब? अगर माया कोडनानी आती है और मुस्लिमों को सॉरी बोलती है तब क्या उसे माफ कर दिया जाएगा? हमारे देश में एक अपराध न्याय व्यवस्था है जो कि सॉरी कहे जाने को स्वीकार नहीं करती है। नरेन्द्र मोदी के हमसे सॉरी कह देने का क्या अर्थ होगा? हम उनकी सॉरी को उनके वास्तविक कामों से जांचेंगे।

हमने मोदी से किसी तरह की रियायतें नहीं मांगीं। हमने यह नहीं कहा कि हमारे लिए यह करो, वह करो। मोदी के लिए मेरा पहला बयान यह था कि इससे पहले क‍ि हम आगे बात करें आप मेरे इस सवाल का जवाब दें, आप पांच करोड़ (अब 6करोड़) गुजरातियों की बात करते हैं, क्या इन पांच करोड़ में 60 लाख मुस्लिम शामिल हैं? अगर इसका उत्तर हां है तो मैं आगे बात करूंगा। लेकिन, अगर आप कहते हैं कि आप गुजरात के साढ़े चार करोड़ हिंदुओं के मुख्यमंत्री हैं तो इसके बाद कुछ नहीं कहना है।

मोदी बोले- वास्तव में आप हमारे हैं। पांच करोड़ गुजरातियों में आप भी शामिल हैं। जब मैं नर्मदा का पानी साबरमती नदी में लाया तो क्या मैं इसे जुहापुरा की मुस्लिम बस्ती में बहने से रोक सकता हूं? नेहरू ब्रिज के पास साबरमती के पानी का सबसे ज्यादा लाभ किसे मिलता है? दंगों के समय क्या थी मोदी की मजबूरी... आगे पढ़ें...
शांति के साथ सारी बातें सुनने के बाद मोदी ने कहा कि आपकी कुछ बातें जायज हैं लेकिन बहुत सी अतिरंजित भी हैं। मोदी ने बताया कि फरबरी 2002 में वे प्रशासन संभालने के लिए नए थे। 2001 में उन्हें एकाएक मुख्यमंत्री बना दिया गया था, दंगों के ठीक तीन साढ़े तीन माह पहले... तब भाजपा निष्क्रियता की हालत में थी और केशुभाई पटेल की सरकार ने बहुत खराब काम किया था।

उनका (शीर्ष नेताओं) का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था कि गंदगी को साफ करो और भाजपा को दिसंबर 2002 के चुनाव जिताओ। तब उन्होंने हमें ‍व‍िस्तार से बताया कि उन्होंने बहुत ही चुनौतीपूर्ण स्थितियों में कौन-कौन से कदम उठाए थे।

हमने उनकी बातों को समझा क्योंकि 2002 में हुए दंगों के विपरीत जोकि ‍तीन दिनों तक चले थे, कांग्रेस के शासन काल में दंगे महीनों तक चलते रहते थे और पहले के इन दंगों में मरने वालों की संख्या बहुत अधिक होती थी। पुलिस और प्रशासन पूरी तरह से साम्प्रदायिकता के रंग में रंग जाते थे। यह सभी जानते थे कि भाजपा और विहिप आदि संगठन हिंदुओं की मदद करते थे, जबकि मुस्लिम अपराधियों को कांग्रेस का संरक्षण मिलता था।

राजनीतिक तौर पर संरक्षण मिलने के बाद अपराधियों के संगठित गिरोह बिना किसी डर के काम करते थे। गुजरात का तटीय इलाके में स्मगलर माफिया का असर था जोकि दुबई से सोना और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी करते थे। कैसा गुजरात मिला था नरेन्द्र मोदी को... आगे पढ़ें...
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मोदी को विरासत में ऐसा गुजरात मिला था और नवंबर 2001 में वे प्रशासन के लिए पूरी तरह बाहरी आदमी थे। एक विधायक के तौर पर जब उन्हें विधानसभा के लिए सुरक्षित सीट की जरूरत थी, वे हरेन पंड्‍या को नहीं मना सके कि वे अपनी सुरक्षित सीट उनके लिए खाली कर दें। फिर उन्होंने राजकोट से चुनाव लड़ा। 26 फरवरी, 2002 को उन्हें विजेता घोषित किया गया था।

यह संभवत: मात्र एक संयोग की बात नहीं हो सकती है कि जब उन्हें अगली सुबह विधानसभा में सरकार का पहला बजट पेश करना था कि उनके सामने गोधरा हत्याकांड आ गया। हम इस बात से बहुत प्रभावित हुए कि उन्होंने बड़ी सावधानी से हमें सुना और समुचित जवाब दिया। हर मामले से जुड़े सारे तथ्य उनकी उंगलियों पर थे।

तब हमें इस बात का अहसास हुआ कि कोई भी मुस्लिमों की बात ध्यान से नहीं सुनता है। हमने वर्ष 1969 में, 1985 में, 1987 और 1992 में दंगे देखे। किसी भी मुख्यमंत्री ने हमारी बात नहीं सुनी। वे सभी कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने कभी भी हमसे बात नहीं की। नरसिंहराव के बारे में पढ़ें जफर के विचार...आगे...

नरसिंहराव ने तो हमारा अपमान किया मुझे याद है कि 1992 के दंगों के बाद अहमदाबाद के मुस्लिम समुदाय के श्रेष्ठ लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल पीवी नरसिंह राव से मिलने के लिए गया था। उन्होंने उन लोगों को चार दिनों तक इंतजार कराया था और इस बात पर तनिक ध्यान नहीं दिया कि वे रमजान के महीने में आए थे।

मैंने नरसिंह राव से यह कहते हुए मिलने से इनकार कर दिया था कि मैं इस तरह का अपमान सहन नहीं करता कि मैं जाऊं और हाथ जोड़कर प्रधानमंत्री से मिलने की विनती करूं। अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए मैं क्यों गिड़गिड़ाऊं? लेकिन मेरे चाचा गए थे। पहले से तय समय होने के बावजूद राव ने प्रतिनिधिमंडल से भेंट नहीं की। मेरे चाचा यह कहते हुए वापस आ गए थे कि एक ऐसे आदमी से मिलने की क्या तुक है जोकि आपको समय देकर भी नहीं मिलता है?

प्रतिनिधिमंडल के अन्य सदस्यों ने चार दिनों तक प्रतीक्षा की। चौथे दिन उन्हें दो मिनट का समय दिया गया। कांग्रेस पार्टी के राज्य में मुस्लिमों की यह हैसियत थी। और ये लोग कौन से मुस्लिम थे? गुजरात के समाज में श्रेष्ठता रखने वाले। आप उन्हें मुस्लिम समुदाय के टाटा और बिड़ला कह सकते थे। मैंने अपने आप से कहा था कि मैं कभी भी जीवन में किसी के सामने याचक की मुद्रा में नहीं जाऊंगा।

राव के साथ यह अपाइंटमेंट एहसान जाफरी की पहल पर तय हुआ था जोकि मेरे पिता के साथ 60 वर्षों तक बहुत अच्छे दोस्त रहे। क्या आप नहीं सोचते हैं कि जिस तरह से अहसान जाफरी की हत्या की गई उससे हमें दुख नहीं हुआ होगा जिन्हें दंगों के पहले ही दिन काट डाला गया था? अपनी मौत से कुछ समय पहले ही सुबह उन्होंने मेरे पिता से बात की थी। कांग्रेस शासन में तो और भी भीषण दंगे हुए थे, तब कितने लोग मरे... आगे पढ़ें...
सरेशवाला अब तक के सबसे भीषण दंगों के बारे में बताते हैं- अहमदाबाद में कालूपुर नाम का एक इलाका है जो कि मुस्लिम आबादी के केन्द्र में बसा हुआ है। उस लोकेलिटी में पुलिस स्टेशन रिलीफ रोड पर स्थित है। उस थाने के ठीक सामने एक ‍मस्जिद है और कई मुस्लिमों की दुकानें हैं।

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1969 के दंगों में उस मस्जिद और दुकानों को जला दिया गया था। जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने दंगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया तब वे उस स्थान पर भी आई थीं। मुझे आज भी याद है कि मैं उस समय पांच वर्ष का था।

मेरे दादाजी वहां मौजूद थे और श्रीमती गांधी अपनी कार से उतरीं और उन्होंने कहा कि यहां एक पुलिस थाना है और वह भी 40 मीटर की दूरी पर, लेकिन एक मस्जिद और मुस्लिमों की दुकानों को जला दिया गया था।

वे अपनी गाड़ी से नीचे उतरीं, उन्होंने अपने संतरियों को बुलाया और उस दूरी को नापने को कहा। उनका कहना था कि यह कैसे संभव है कि पुलिस थाने के ठीक सामने मुस्लिमों की दुकानें जला दी जाती हैं? वह भी तब राज्य में और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार हो।

यह अब तक का सबसे भयानक दंगा था और 1969 के दंगों में हजारों मुस्लिमों (लगभग 5000) को योजनाबद्ध तरीके से मारा गया था। पर किसी को याद है कि तब गुजरात में हितेन्द्र देसाई की कांग्रेस सरकार थी? क्या कहती हैं मधु किश्वर... आगे पढ़ें...
यह हेट मोदी ब्रिगेड की बताई गई तस्वीर से पूरी तरह से विपरीत थी, जिसमें से किसी ने भी मोदी के साथ एक वाक्य भी नहीं बोला था, गंभीर तरीके से बात करने को तो पूरी तरह से भूल ही जाएं। जफर सरेशवाला के साथ मेरा वीडियो रिकॉर्ड किया गया इंटरव्यू कई घंटों तक चला। मैंने जफर की कहानी के तथ्‍यों को कई अन्य दस्तावेजों से दोबारा चेक किया। जफर के बयान में मुझे एक भी गलत बात नहीं मिली।

जफर ने गुजरात में मुस्लिम राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत की और मैं मानती हूं कि इससे सारे भारत की मुस्लिम राजनीति पर ऐतिहासिक असर पड़ेंगे। उनकी बातचीत को मैंने दूसरे लोगों के सहायक प्रमाणों के साथ बीच बीच में जोड़ा।