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Written By ND
Last Updated :(एजेंसी) , रविवार, 12 अगस्त 2007 (15:39 IST)

कभी तन्हाइयों में यूँ हमारी याद आएगी

गायिका मुबारक बेगम
वह गीत सुनकर मैं हतप्रभ रह गया, क्योंकि उस गीत के सुरों में गिड़गिड़ाहट की अनुगूँज थी कि इंदौर में कार्यक्रम रखवा दो, ताकि उनके परिवार को सहारा मिल जाए।

जिंदगी के थपेड़ों ने उनको भीतर से तोड़ दिया है, लेकिन सुरों की ताकत पर वे आज भी जिंदा हैं। उनके गीत बुलंदियों को छूकर फिर गुम हो गए। आज वे बेजार हैं, सहारे की तलाश है। फिर नए सिरे से सुरों को सजाना चाहती हैं।

रेडियो सिलोन ने शनिवार को प्रसारित एक कार्यक्रम में ख्यात गायिका मुबारक बेगम के गीतों का प्रसारण किया और इन गीतों में छुपे दर्द को उनके प्रशंसकों तक पहुँचा ही दिया।

मुंबई से दूरभाष पर इस गायिका ने 'नईदुनिया' के साथ अपने दर्द को तो बाँटा ही, साथ ही बड़े जोश के साथ 'मुझको अपने गले लगा लो' गीत भी सुनाया और कहा कि मैं अब भी गाना गा सकती हूँ। इससे सिद्ध होता है कि सुरों की तपस्या करने वालों को उम्र अपने बंधन में बाँध नहीं सकती।

भाई-बहनों की खातिर मुंबई आई थी : मुबारक बेगम ने बताया कि वे शुरू में राजस्थान के नवलगढ़ में रहती थीं तथा फिर अहमदाबाद आ गईं।

पिता फल का ठेला लगाते थे और सभी बच्चों का खर्च उठाना उनके लिए संभव नहीं था। उन्होंने बताया कि मुझे फिल्मों का बेहद शौक था और बचपन से ही गाने गुनगुनाती रहती थी। पिता ने सोचा कि मुबारक अच्छा गा लेती है, मुंबई चलते हैं। आकाशवाणी पर शायद कुछ बात बन जाए।

आकाशवाणी में बात बन गई। उसके बाद फिल्मों में भी खूब गाया। 'अब्बा अलग-अलग स्टूडियो में ले जाते थे। थोड़े ही दिनों में अच्छा नाम हो गया था। अब लोगों को बताना पड़ता है कि हम मुबारक बेगम हैं। दूसरी गायिकाओं के मुकाबले हम चार आने ही चले हैं, पर फिल्म संगीत में हमारा योगदान तो है', उन्होंने बड़ी दर्द भरी आवाज में बयान किया।

अपनों से है शिकायत : मुबारक बेगम ने बताया कि जिस समय सुरैया, गीता दत्त, लता मंगेशकर गा रही थीं तभी वे भी गाती थीं। इन सबके साथ किसी न किसी ने सहयोग किया परंतु हमें किसी ने सहयोग नहीं दिया। उस समय की गायिकाओं ने यह देखा कि हम आगे जा सकते हैं। इस कारण हमारे गाने फिल्मों से हटवा दिए व 1970 के बाद रेडियो से बजना भी बंद हो गए।

उन्होंने सवाल किया कि हमने कोई कोरस में गाना नहीं गाया है, बल्कि मैं मुख्य गायिका रही हूँ। तब भी सरकार हमारी अनदेखी क्यों कर रही है?

शबाना, जावेद ने की मदद : महाराष्ट्र शासन से उन्हें मात्र 700 रुपए महीना मिलता है, वह भी हर तीन महीने बाद। तीन वर्ष पूर्व ही ग्रांट रोड से जोगेश्वरी के फ्लैट में आए हैं। फ्लैट खरीदने को पैसे शबाना व जावेद अख्तर ने दिए थे। फ्लैट का मेन्टेनेंस ही डेढ़ हजार रुपए है। इसके अलावा उनकी बेटी को पार्किन्संस रोग है।

इसके लिए दो डॉक्टरों की दवाई चलती है। बेटा मेहमूद भी छोटा-मोटा काम करता है, परंतु घर में केवल रहना ही तो नहीं है, रोजाना के खर्चे कहाँ से जुटाऊँ? मेरे चाहने वाले कोई बेटी की दवाई का खर्च एक महीने का दे देता है तो कोई और मदद कर देता है, पर ऐसा कब तक चलेगा?

आपने बताया कि कुछ दिन पूर्व 28 गीतों की एक सीडी निकाली है और अब रमजान के लिए इबादत वाली सीडी व कैसेट बाजार में आएँगे। मुबारक बेगम ने बड़े भावुक स्वर में कहा कि मैं किसी भी कार्यक्रम में गा लूँगी। ऑर्केस्ट्रा के साथ भी गा लूँगी। आप मेरा इंदौर में कार्यक्रम रखिए।

मैं जावरा शरीफ जाना चाहती हूँ... खुद कार्यक्रम माँगना अच्छा नहीं लगता। अगर आपको लगता है कि मैं इस उम्र में गा नहीं सकती तो रुकिए मैं गाना गाकर बताती हूँ 'मुझको अपने गले लगा ले ओ मेरे हमराही...'।