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Last Updated : बुधवार, 12 जुलाई 2017 (17:11 IST)

प्रिंट मीडिया : भविष्य और संभावनाएं

प्रिंट मीडिया : भविष्य और संभावनाएं - Print media
-विनय कुशवाहा
 
खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो। 
जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो।।
 
प्रिंट मीडिया, मीडिया का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसने इतिहास के सभी पहलुओं को दर्शाने में मदद की है। जर्मनी के गुटेनबर्ग में खुले पहले छापाखाना ने संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी। जब तक लोगों का परिचय इंटरनेट से नहीं हुआ था, तब तक प्रिंट मीडिया ही संचार का सर्वोत्तम माध्यम था। मैग्जीन, जर्नल, दैनिक अखबार को प्रिंट मीडिया के अंतर्गत रखा जाता है।
 
भारत समेत विश्वभर में क्रांतियों, आंदोलनों और अभियानों आदि में प्रिंट मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में पहला अखबार 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 'बंगाल गजट' के नाम से प्रकाशित किया था। इसके बाद तो भारत में संचार के क्षेत्र में क्रांति-सी आ गई और एक के बाद एक कई अखबार प्रकाशित हुए। 
 
इंटरनेट के परिचय से पूर्व लोगों के लिए अखबार ही जानकारी के स्रोत थे। 1826 में हिन्दी का पहला अखबार 'उदंत मार्तंड' आया। आजादी से पूर्व जितने भी अखबारों का प्रकाशन शुरू हुआ, उन सभी में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की बात कही जाती थी। लोगों को ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के बारे में बताया जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अखबारों का पैटर्न बदला और अब अखबारों में सभी क्षेत्रों की खबरों को महत्व दिया जाने लगा। अखबार अब टू एजुकेट, टू इंटरटेन, टू इंफॉर्म के सिद्धांत पर चलने लगे।
 
रेडियो के बाद 15 सितंबर 1959 को दूरदर्शन के माध्यम से टीवी का आगमन हुआ। टीवी के आगामी दौर से अखबारों को किसी प्रकार का भय नहीं हुआ था लेकिन 90 के दशक में इंटरनेट के आने ने अखबारों को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया। समय के साथ-साथ अखबारों ने भी अपने आप में बदलाव करना शुरू कर दिया। जो न्यूज हाथों से लिखी जाती थी, उनकी जगह कम्प्यूटर ने ले ली। जहां पहले सारा काम मैनुअल होता था, वहां अब बहुत से काम में उनकी जगह कम्प्यूटर ने ले ली, जैसे अखबार की डिजाइन बनाना, ले-आउट बनाना, फॉन्ट आदि।
 
टेक्नोलॉजी ने जिस गति से प्रगति की ठीक उसी प्रकार अखबारों ने भी उसे अपनाने में देर नहीं की। 21वीं शताब्दी में कोई भी व्यक्ति या संस्था बिना डिजिटल तकनीक के रह नहीं सकती है, यह बात अखबारों पर लागू होती है। कई अखबारों ने अपनी वेबसाइट बनाई, अखबारों को ई-पेपर के फॉर्मेट में उपलब्ध कराया। लेकिन इन सबके बावजूद आज भी 2017 में भी प्रिंट मीडिया की महत्ता बढ़ी ही हुई है। 
 
2017 में अखबारों की विश्वसनीयता के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि अखबारों ने टेक्नोलॉजी को अपना लिया। ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) ने 10 साल (2006-2016) तक की गणना करके आंकड़े जारी किए। आंकड़ों के अनुसार प्रिंट मीडिया का सर्कुलेशन 2006 में 3.91 करोड़ प्रतियां था, जो 2016 में बढ़कर 6.28 करोड़ प्रतियां हो गया यानी 2.37 करोड़ प्रतियां बढ़ीं। प्रिंट मीडिया के सर्कुलेशन की दर 37 प्रतिशत थी और लगभग 5,000 करोड़ का निवेश हुआ। अखबारों में सबसे ज्यादा वृद्धि उत्तरी क्षेत्र में 7.83 प्रतिशत के साथ देखने को मिली वहीं सबसे कम वृद्धि पूर्वी क्षेत्रों में 2.63 प्रतिशत के साथ देखने को मिली। सभी भाषाओं के अखबारों में हिन्दी भाषा में सर्वाधिक वृद्धि हुई। 
 
आंकड़ों को देखने के बाद यह कोई भी नहीं कह सकता कि अखबारों का पतन हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक, वेब, सोशल, पैरालल आदि मीडिया उपलब्ध होने के बाद भी प्रिंट मीडिया के इतना पॉपुलर होने के पीछे कई कारण हैं जिनमें लोगों का शिक्षित होना सबसे बड़ा कारण है। जहां विकसित देशों में अखबारों के प्रति लोगों का रुझान घट रहा है वहीं भारत में इसके विपरीत प्रिंट मीडिया का प्रसार बढ़ रहा है।
 
2011 की जनगणना के अनुसार पता चलता है कि भारत में साक्षरता दर बढ़ी है 2001 की तुलना में। भारत में लोग शिक्षित हो रहे हैं, साथ ही साथ उनमें पढ़ने और जानने की उत्सुकता बढ़ रही है जिसके कारण भारत में प्रिंट मीडिया का प्रसार बढ़ रहा है।
 
आज भी लोग किसी भी खबर की सत्यता को जानने, विस्तृत जानकारी प्राप्त करने और जागरूकता बढ़ाने में अखबार का सहारा लेते हैं। प्रिंट मीडिया भले ही बहुत ही धीमा माध्यम हो, परंतु यह आज के कम्प्यूटर के युग में यह प्रगति कर रहा है। इन सब बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रिंट मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है।