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जनता कर्फ्यू : कौन हैं इंदौर के वे बेशर्म लोग, जिन्होंने अनुशासन को तोड़ा?

जनता कर्फ्यू : कौन हैं इंदौर के वे बेशर्म लोग, जिन्होंने अनुशासन को तोड़ा? - janta curfew and Indore
indore in janta curfew


इंदौर देश का सबसे स्वच्छतम शहर, इंदौर देश का सबसे जिंदादिल शहर,इंदौर देश का सबसे अच्छा शहर..लेकिन इसी इंदौर के कुछ शरारती बाशिंदों ने शर्मसार कर दिया।

जब देश में प्रधानमंत्री की अपील पर जनता कर्फ्यू लगा तो देशवासियों के साथ इंदौर की जनता भी मुस्तैद थी स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए और शाम को कोरोना योद्धाओं को अपना सम्मान देने के लिए. .. शाम 5 बजते ही घंटियां, तालियां और शंखनाद के साथ जैसे ही माहौल बना कुछ उद्दंड और उच्छृंखल किस्म के युवा सड़कों पर निकल आए और अपने साथ कई लोगों की जान दांव पर लगा दी...

सोचकर ही सिहरन होती है कि जिस बीमारी से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है,  लोगों की जिंदगी मुहाल हो गई है उसे कुछ लोगों ने कैसे मजाक बना दिया... ?  
 
कोरोना का तोड़ निकालने के लिए एक दिन का कर्फ्यू सोच समझ कर लगाया गया था जिसे निहायत ही शर्मनाक तरीके से हास्यास्पद बना दिया गया। आखिर क्या अंतर है पढ़ी लिखी और समझदार कहलाने वाली लापरवाह कनिका कपूर में और स्वच्छ शहर के जिम्मेदार कहलाने वाले नागरिकों में?  
 
जिस दिन आपको पता चलेगा कि आपकी एक छोटी सी गलती ने किसी की जिंदगी ले ली है तब क्या आप स्वयं को माफ कर पाएंगे? क्या आप जानते हैं कि कितने डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टाफ अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना मोर्चे पर डटे हैं, लगातार सेवा और दायित्वों को निभा रहे हैं। 
 
क्या आप जानते हैं कि आपकी एक छोटी सी भूल, वास्तव में भूल नहीं बहुत बड़ी लापरवाही है...आप भय से निर्भय हो जाएं कोई हर्ज नहीं, आप विषाद के वातावरण को हर्ष में तब्दील कर दें कोई दिक्कत नहीं.. पर आपको यह हक किसने दिया कि अपनी मस्ती और मजे के लिए दूसरों की जिंदगी से खेल जाएं?  
 
समूचा विश्व इस समय दहशत में है। कई जिंदगियां असमय चली गई हैं। करोड़ों लोग घरों में बिना अनाज, फल, दूध के बंद कमरों में रहने के लिए मजबूर हैं। एक बीमारी ने आज हम सबकी जान सांसत में डाल दी है। 
 
पूरे विश्व में हजारों कर्मचारी work @ home लेकर 14 से लेकर 20 घंटे की निरंतर ड्यूटी दे रहे हैं। इनमें पुलिस, मीडिया साथी, फोटोग्राफर, वीडियोग्राफर, पत्रकार, डॉक्टर, सेना,सफाईकर्मी, जनसेवक कई लोग शामिल हैं। 
 
कोरोना के कारण कई लोगों का कारोबार ठप्प हो गया है, शिक्षा संस्थान सूने पड़े हैं.. क्या ऐसे वक्त में यह बेशर्म ठिठोली शोभा देती है...? जिंदा रहे तो राजवाड़ा पर एकत्र होने के कई-कई मौके आएंगे लेकिन यह कितनी शर्मनाक और भद्दी हरकत है कि बिना कुछ सोचे समझे मूर्खों की तरह सड़क पर निकल आए... 
 
ना शासन-प्रशासन का ख्याल है, न अपनी और दूसरों की जिंदगी की परवाह.. कर्फ्यू के समाप्त होने से पहले ही घरों से निकल कर कई जिंदगियों को खतरे में डाल कर आखिर कौन सा तीर मार लिया? 
 
आश्चर्य तो इस बात का है कि इनमें सिर्फ छिछोरे लड़के ही नहीं लड़कियां, बुजुर्ग और महिलाएं भी शामिल थे? हमेशा गौरवान्वित करने वाले इंदौर की ऐसी कलंकित सूरत तो किसी ने नहीं सोची थी... अगर इसी अनुशासनहीनता का परिचय हम देते तो स्वच्छता में कमाल कर पाते? 
 
लानत है उन तमाम अनुशासनहीन लोगों पर, जिन्होंने यह घटिया हरकत की... घरों में कैद इंदौरवासियों के संयम और संकल्प को आप जैसे अल्पबुद्धियों ने धो डाला है।

यह कतई हमारा इंदौर नहीं है, और इस तरह की हरकत करने वाले इंदौरी भी नहीं कहे जा सकते.. इंदौर की संस्कृति और संस्कार में आनंद है तो अनुशासन उससे पहले है, अगर खुशी है तो अपनों का ख्याल उससे भी पहले है, जिंदादिली है तो जिज्ञासा, जागरूकता और जानकारी का समावेश सबसे पहले है... 
 
इंदौर की सड़कों पर यह गंवारपन अखरने वाला है, यह लापरवाही लजाने वाली है...ज ब तक इस भयावह समस्या से पूरी तरह समाधान नहीं मिलता थोड़ी जानकारी बढ़ा लो मेरे शहरवासियों ... 
 
निवेदन यही कि चंद बुद्धिहीनों की वजह है 'पूरे शहर' की पहचान ना बिगड़े इस बात का ख्याल रहे क्योंकि जितने लोग सड़क पर थे उससे कहीं ज्यादा घरों में थे... और वही सच्चे इंदौरी हैं...