एक असंकलित कविता शमशेर की
जन्मशती (13 जनवरी) के अवसर पर
डायरी लेखक (और लेखक ही क्यों)एक साँचा है, उस साँचे में आप फिट हो जाइए।हर एक के पास एक साँचा है। राजनीतिज्ञ,प्रकाशक, शिक्षा संस्थानों केगुरु लोगों के पास। ...
यह लॉबी, वो लॉबी।रूस के पीछे-पीछे। नहीं अमेरिका के।नहीं, चीन के। अजी नहीं, अपने घर के बाबा जी के। इस झंडे के, उस झंडे के। लाल, नहीं भगवा, नहीं काला, नहीं सफेद...लेखक एक बच्चा है,उसकी उँगली पकड़ो। अगर वह चल सकता है, तो। नहीं तो वह साफ प्रसंग के बाहर है।छोड़ो उसे। कट हिम। हॉह, कोई लिफ्ट नहींइसी तरह और भी जो बौद्धिक जीव होवैज्ञानिक, आविष्कर्ता, कलाकार,मेधावी, सच्चा, धुनी, अपनेक्षेत्र में यकता। बस,कोई भी हो...यही पॉलिसी है।