प्रयाग का विशेष महत्व क्यों
- पंडित आर.के. राय
प्रयाग- प्र-अर्थात बड़ा एवं याग-अर्थात यज्ञ जहाँ पर हुआ उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ गया। इस स्थान के अति सुरक्षित होने के कारण ही रावण जैसा बलशाली भी समस्त प्रयाग क्षेत्र के पास फटक भी नहीं पाया। उसने कैलाश पर्वत पर जाने के लिए बहुत घूमकर अंग-उड़ीसा, बंग-बंगाल एवं श्याम देश होकर रास्ता अपनाया। सीधे काशी, प्रयाग अथवा अयोध्या आदि का रास्ता नहीं अपनाया। इसी परम पावन स्थल पर देवताओं ने मिलकर तप एवं सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आराधना की। सूर्य देव प्रसन्न हुए। तथा उन्होंने वरदान दिया कि मेरे अपने पुत्र के घर में अर्थात मकर एवं कुंभ राशि में रहते जो भी व्यक्ति इस अति पवित्र संगम स्थल पर मेरी आराधना करेगा उसे कभी कोई कष्ट अथवा व्याधि नहीं सताएगी।
ज्योतिषीय मतानुसार भी इस वर्ष सारे ग्रह भी इसी क्रम में शामिल हो गए हैं। सूर्यदेव यद्यपि मकर में जा रहे हैं। किन्तु वहाँ पर पहले से ही देवग्रह मंगल उच्च होकर बैठे हैं। दैत्यगुरु शुक्र ग्रह, चन्द्रमा की नीच राशि वृश्चिक में हैं। देव ग्रह चन्द्रमा बलवान होकर दानव-गुरु शुक्र को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। अपने घर में देवताओं के गुरु बृहस्पति बलवान हैं और शनि ग्रह पर पूर्ण दृष्टि डालकर उसके कुप्रभाव को रोक रहे हैं। '
राहुदोषो बुधो हन्यात्' के सिद्धान्त के अनुसार राहु के कुप्रभाव को दूर करने के लिए उसके साथ स्वयं देवग्रह बुध बैठे हुए हैं। यही नहीं कमजोर शुक्र को बलवान गुरु भी देख रहे हैं।
इस प्रकार प्रत्येक पाप ग्रह के पाप प्रभाव को सारे शुभ ग्रहों ने बलवान होकर रोक लिया है। ऐसी स्थिति में यदि कोई पूजा, पाठ, दान, जप, प्रार्थना आदि की जाती है तो उसका बिना किसी विघ्न-बाधा के कई गुना शुभ फल प्राप्त होगा। यह सिद्धान्त एवं प्रत्यक्ष दोनों तरह से स्वयंसिद्ध है।कन्या, मिथुन एवं मकर राशि वालों के लिए तो स्वयं भगवान ने यह एक विशेष वरदान देकर मकर संक्रांति के रूप में भेजा है।