भोपाल। स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचारी से राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार को देश के लिए खतरनाक बताया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सभी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना है। प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बाद अब सवाल मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के सामने है। सवाल यह है कि मध्यप्रदेश सरकार क्या धार के कारम बांध के भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बड़ा एक्शन लेगी? क्या मध्यप्रदेश में आए दिन लोकायुक्त के छापे में काली कमाई के कुबेरों के खिलाफ शिवराज सरकार कड़ा प्रहार करेगी?
भ्रष्टाचार के चलते बह गया 304 करोड़ का डैम?-धार जिले के धरमपुरी तहसील में मध्यम सिंचाई परियोजना के तहन निर्माणाधीन कारम बांध में दरार और पानी के रिसाव ने 72 घंटे तक भोपाल से लेकर दिल्ली तक सबको हिलाकर रख दिया। 304 करोड़ की लागत से बन रहे कारम बांध में आई दरार से 18 गांव के लोगों को रातों-रात विस्थापित करना पड़ा और स्थानीय प्रशासन के सेना को बचाव कार्य जुटना पड़ा। कारम बांध के फूटने से होने वाली बड़ी तबाही को रोकने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने करीब 48 घंटे तक चले ऑपरेशन का भोपाल के मंत्रालय में रहकर खुद मॉनिटरिंग की। वहीं सरकार को दो मंत्री और कई जनप्रतिनिधि मौके पर डट रहे। अब पूरे मामले की जांच के लिए सरकार ने एक हाईलेवल कमेटी का गठन कर दिया है।
दरअसल 304 करोड़ से बने कारम बांध ने एक बार फिर मध्यप्रदेश के बहुचर्चित 3 हजार करोड़ के ई टेंडर घोटाले को सुर्खियों में ला दिया। तीन हजार करोड़ के ई टेंडर घोटाले की एक निशानी भी कारम बांध भी है। कारम बांध में भ्रष्टाचार की बात को खुद विधानसभा में सरकार ने स्वीकार की थी। कारम बांध परियोजना को लेकर भी ईओडब्ल्यू ने कमलनाथ सरकार के समय प्रकरण दर्ज किया था, लेकिन सरकार बदलते ही जांच ठंडे बस्ते में चली गई। 305 करोड़ रुपए के लगात से बने रहे बांध के पहली ही बारिश में दरक जाना भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत है।
कारम बांध के फूट जाने को लेकर भ्रष्टाचार के एक नहीं कई सवाल है। सबसे बड़ा सवाल है कि भ्रष्टाचार के कारण दिल्ली की जिस एएनएस कंस्ट्रक्शन कंपनी का लाइसेंस ही 2016-17 में रद्द कर दिया गया था,उसी कंपनी को 305 करोड़ के निर्माण का ठेका देकर, बिना गुणवत्ता जांचे ही भुगतान कैसे कर दिया गया। कोठीदा में कारम मध्यम सिंचाई परियोजना को लेकर भष्टाचार के आरोप में स्थानीय स्तर पर कई बार लगाए गए। किसानों ने बांध निर्माण को लेकर हुए सर्वे को लेकर भी सवाल उठाए थे।
ई टेंडरिंग घोटाले में ईडी ने इस घोटाले में एक कंपनी की ओर से 93 करोड़ की रिश्वत बांटने की बात कही थी। इस घोटाले में मंत्री और अफसरों के लिप्त होने की बात सामने आई थी। तब जिसे बाद में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
सरकारी बाबू भी काली कमाई के कुबेर?-काली कमाई के ऐसा नहीं है की कारम बांध को लेकर भ्रष्टाचार के मामले में मध्यप्रदेश में पहली बार सुर्खियों में आया है। मध्यप्रदेश के सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के ठिकानों से समय-समय पर मिलने वाली काली कमाई भी प्रदेश को अक्सर सुर्खियों में लाती रही है। पिछले दिनों मे भोपाल में सरकारी दफ्तर के क्लर्क के हीरो केसवानी के घर से 85 लाख रूपए बरामद होना हो या इंदौर और जबलपुर में सरकारी कर्मचारियों की अकूत संपत्ति का खुलासा होना हो।
भ्रष्टाचार पर सरकार का सरेंडर?- मध्यप्रदेश में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार के बढ़ते मामलों के बीच शिवराज सरकार के एक आदेश पर भी गौर करना होगा। सामान्य प्रशासन विभाग के 5 मई 2022 को जारी एक आदेश के मुताबिक अब राज्य में आईएएस, आईपीएस, आईएफएस और वर्ग एक में शामिल अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार की सीधे जांच अब जांच एजेंसियों से नहीं हो सकेगी। इन अधिकारियों के खिलाफ जांच के लिए मुख्यमंत्री की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17-ए नियम के तहत वर्ग-दो से लेकर वर्ग-चार तक के अधिकारी और कर्मचारियों के मामले में प्रशासकीय विभाग की अनुमति अनिवार्य होगी। इस अनुमति के बाद ही कोई पुलिस अधिकारी आगे की कार्रवाई कर सकता है।
नए आदेश के मुताबिक कोई भी पुलिस अधिकारी,लोकायुक्त संगठन या ईओडब्ल्यू जैसी भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं भ्रष्टाचार से जुड़े किसी मामले में सीधे जांच या अधिकारी के खिलाफ एफआइआर अथवा किसी भी तरह की पूछताछ नहीं कर सकती हैं। गौर करने वाली बात यह है कि अब तक आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों की जांच के लिए अभी तक जांच एजेंसियां स्वतंत्र थीं। ऐसे में सवाल है कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कैसे हो पाएगी।
भ्रष्ट पर कार्रवाई या सिर्फ खानापूर्ति?-मध्यप्रदेश में लोकायुक्त के छापे में लगातार काली कमाई के कुबेर के खुलासे के बाद अब भ्रष्चारी क्यों बैखोफ है यह भी जानना जरूरी है। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि लोकायुक्त पुलिस अगर किसी अधिकारी और कर्मचारी को घूस लेते हुए रंगेहाथों पकड़ती है तो उसको मौके पर सहमति पत्र लेकर रिहा कर देती है।
हैरत की बात यह है कि भ्रष्टाचार निवारण कानून में घूसखोर को जमानत देने का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन सीआरपीसी की धारा-41 के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकती। इसके साथ जांच एजेंसियां सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सहारा लेकर भ्रष्टाचारियों को जमानत दे देती है। जबकि मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र और राजस्थान में भ्रष्टाचार के आरोपियोंं को जेल भेजा जाता है।