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Written By ND

निर्दलीयों को नकारा मतदाताओं ने

निर्दलीयों को नकारा मतदाताओं ने -
पिछले विधानसभा चुनावों की तरह एक बार फिर प्रदेश के मतदाताओं ने निर्दलीय उम्मीदवारों को तवज्जो नहीं दी। तेरहवीं विधानसभा के लिए किस्मत आजमाने मैदान में उतरे 1 हजार 374 निर्दलीय उम्मीदवारों में मात्र तीन ही सफलता पाने में कामयाब रहे हैं।

वोट प्रतिशत के लिहाज से भी निर्दलीय प्रत्याशियों का ग्राफ लगातार गिरता रहा है। साठ और सत्तर के दशक तक जहाँ निर्दलीयों को कुल मतों के 15 से 18 प्रतिशत वोट मिलते रहे हैं, वहीं वर्ष 2003 आते-आते यह प्रतिशत 7.70 तक आ गया।

प्रदेश के इतिहास में अविभाजित मध्यप्रदेश में अब तक वर्ष 1957 का चुनाव ही ऐसा रहा है जब सबसे ज्यादा 55 निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे थे। इसके बाद से लगातार निर्दलीय प्रत्याशियों के प्रति लोगों का भरोसा कम होता रहा। वर्ष 1998 तक आते-आते यह संख्या 8 से 10 तक सीमित हो गई।

मतदाताओं की बेरुखी वर्ष 2003 में भी साफ दिखाई दी और मात्र दो उम्मीदवार ही विजयी रहे। जबकि इस बार भी निर्दलीयों की संख्या तीन तक ही सीमित रह गई।

महिलाओं को नहीं मिला भरोसा: विधानसभा चुनाव का परिणाम कांग्रेस की तरह महिलाओं के लिए भी निराशा भरा रहा। इसके नतीजों से जाहिर होता है कि एक बार फिर प्रदेश के मतदाताओं ने महिला उम्मीदवारों पर ज्यादा एतबार नहीं किया।

प्रदेश की 220 महिला उम्मीदवारों में मात्र 25 महिलाएँ ही विधानसभा तक पहुँचने में कामयाब हो सकी हैं। हालाँकि वर्ष 2003 के मुकाबले यह संख्या ज्यादा है!

गौरतलब है कि महिला आरक्षण की पुरजोर वकालत करती रही कांग्रेस ने 29 महिलाओं को मैदान में उतारा था, लेकिन इनमें से मात्र आठ महिलाओं को ही जीत नसीब हुई है जबकि सत्ताधारी भाजपा में जरूर महिलाओं का जादू सिर चढ़ बोला है।

भाजपा ने जहाँ 23 महिलाओं को टिकट दिया था वहाँ 15 महिलाओं ने जीत हासिल की है। इसके अलावा भाजश से एक और समाजवादी पार्टी से भी दो में से एक मीरा यादव ने जीत दर्ज की है। (नईदुनिया)