मंगलवार, 3 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. साहित्य
  4. »
  5. विजयशंकर की कविताएँ
Written By WD

बारिश में स्त्री

बारिश में स्त्री -
विजयशंकर चतुर्वेदी
WDWD
बारिश है

या घना जंगल बाँस का

उस पार एक स्त्री बहुत धुँधली

मैदान के दूसरे सिरे पर झोपड़ी

जैसे समंदर के बीच कोई टापू

वह दिख रही है यों

जैसे परदे पर चलता कोई दृश्य

जैसे नजर के चश्मे के बगैर देखा जाए कोई एलबम

जैसे बादलों में बनता है कोई आकार

जैसे पिघल रही हो बर्फ की प्रतिमा

घालमेल हो रहा है उसके रंगों में

ऊपर मटमैला

WDWD
नीचे लाल

बीच में मटमैला-सा लाल

स्त्री निबटा रही है जल्दी-जल्दी काम

बेखबर

कि देख रहा है कोई

चली गई है झोपड़ी के पीछे

बारिश हो रही है तेजतर

जैसे आत्मा पर बढ़ता बोझ

नशे में डोलता है जैसे संसार

पुराने टीवी पर लहराता है जैसे दूरदर्शन का लोगो

दृश्य में हिल रही है वह स्त्री

माँज रही है बर्तन

उलीचने लगती है बीच-बीच में

घुटने-घुटने भर आया पानी

तन्मयता ऐसी कि

कब हो गई सराबोर सर से पाँव तक

जान ही नहीं पाई

अंदाजा लगाना है फिजूल

कि होगी उसकी कितनी उम्र

लगता है कि बनी है पानी ही की

कभी दिखने लगती है बच्ची

कभी युवती

कभी बूढ़ी

शायद कुछ बुदबुदा रही है वह

या विलाप कर रही है रह-रह कर

मैदान में बारिश से ज्यादा भरे हैं उसके आँसू

थोड़ी ही देर में शामिल हो गई उसकी बेटी

फिर निकला पति नंगे बदन

हाथ में लिए टूटा-फूटा तसला

वे चुनौती देने लगे सैलाब को

जो घुसा चला आता था ढीठ उनके संसार में

SubratoWD
बारिश होती गई तेजतर

तीनों डूबने-उतराने लगे दृश्य में

जैसे नाविक लयबद्ध चप्पू चलाएँ

और महज आकृतियाँ बनते जाएँ

मैं ढीठ नजारा कर रहा था परदे की ओट से

तभी अचानक जागा गँदले पानी की चोट से

इस अश्लीलता की सजा

आखिरकार मिल ही गई मुझे।