नौकरी पाने की उम्र
विजयशंकर चतुर्वेदी
जिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्रउनके आवेदन पत्र पड़े रह जाते हैं दफ्तरों मेंतांत्रिक की अँगूठी भी ग्रहों में नहीं कर पाती फेरबदलनहीं आता बरसोंबरस कहीं से कोई जवाबकमर से झुक जाते हैं वेहालाँकि इतनी भी नहीं होती उमरसब पढ़ा-लिखा होने लगता है बेकारबढ़ी रहती हैं दाढ़ी की खूँटियाँकोई सड़क उन्हें नहीं ले जाती घरवे चलते हैं सुरंगों मेंऔर चाहते हैं कि फट जाए धरतीउनकी याद्दाश्त एक पुल है कभी-कभार कोई साथी नजर आता है उस पर बैठा हुआवे जाते हैंऔर खटखटाते हैं पुराने बंद कमरेवहाँ कोई नहीं लिपटता गले से
चायवाला बरसों से बूढ़ा हो रहा है वहींमगर बदल जाते हैं लड़के साल दर सालजिनकी चली जाती है नौकरी पाने की उम्रवे सोचते हैं नए लड़कों के बारे मेंऔर पीले पड़ जाते हैं।