मुझे पसंद हैं अस्त-व्यस्त चीजें
-राजेश जोशी
मुझे पसंद हैं थोड़ी अस्त-व्यस्त और ऊबड़-खाबड़ चीजें हर चीज जहां सजी हो इतने करीने से कि छींकने तक से हिल जाती हो हवा पूछ बैठने को करता है मन आपके यहां क्या कोई बच्चा नहीं है बिसरा चुके हैं आप क्या अपना पूरा बचपन ? थोड़े अस्त-व्यस्त घर लगते हैं मुझे बहुत प्यारेलगता है वहां बची होगी अब भी जीवन कीथोड़ी हड़बड़ी और सरलताझकाझक कलफ लगे क्रीजबंद कपड़ों में किसी को देखकरकोई सुबक कर रोता है मेरे भीतरहाय! कुछ ही दिनों में निकल आएगी इसकी तोंदकुछ दिनों में हो जाएगा यह गंजाब़ढ़ती उम्र के साथ इसे घेर लेंगी तरह-तरह की बीमारियां बढ़ जाएगा इसका रक्तचापयह कभी खुलकर नहीं हंसेगादुख में भी कभी फफक कर रो नहीं पाएगा यहपत्थर के मजबूत परकोटे से घिरे किले की तरह होगा इसका हृदयमुझे पसंद हैं थोड़े फक्कड़ और बेखबर से कविथोड़ी अनगढ़ और अस्त-व्यस्त-सी कविताजो अचानक हड़बड़ी में चली आई होकवि की आत्मा से बाहरऔर जिसे तराशने का कभी वक्त ही न मिला हो उसे!