कुंडली से जानें क्यों नहीं मिलता संतान सुख
विवाह के बाद वर-वधू की पहली इच्छा संतान की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में इस पक्ष को लेकर गहरी खोज की गई है। ज्योतिष के आधार पर यह आसानी से तय किया जा सकता है कि किसे, किस उम्र में संतान का सुख प्राप्त होगा तथा किन योगों के कारण मनुष्य संतान सुख से वंचित रह सकता है।इसके अलावा पंचम भाव से कब और कितनी संतान होगी, इसका पता चलता है। पंचमेश जब छह, आठ, बारह भाव में बैठा हो तो मनुष्य को संतान सुख में विलंब होता है। यदि वर-वधू में नवपंचम दोष तो संतान सुख देर से ही मिलता है।
जन्मपत्रिका में लग्न महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि लग्न 6, 8, 12 भाव में हो तो कमजोर माना जाता है। यह यदि नीच राशि, शत्रु राशि या फिर अस्त अवस्था में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति को संतान को लेकर चिंता बनी रहती है।इसके अलावा जब सूर्य व गुरु मजबूत अवस्था में बैठे हों तो पुत्र की प्राप्ति होती है तथा चंद्रमा व शुक्र के मजबूत होने पर कन्या की प्राप्ति होती है। पंचम भाव का संबंध जब केतु या मंगल से होता है, उस अवस्था में गर्भपात, मृत संतान का पैदा होना या फिर संतान पैदा होते ही तुरंत मृत्यु को प्राप्त होती है। गोचर ग्रहों में जब भी गुरु लग्न पंचम, नवम व एकादश भाव में हों तो भी संतान सुख का योग बनता है। यदि वर सूर्य या गुरु की महादशा से गुजर रहा हो तो भी दंपति को पुत्र की प्राप्ति संभव है।