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उन्नति करना है तो कुंडली के भाग्य स्थान को करें मजबूत, बन जाएंगे भाग्यवान...

उन्नति करना है तो कुंडली के भाग्य स्थान को करें मजबूत, बन जाएंगे भाग्यवान...। kundali and bhagya astrology - kundali and bhagya astrology
* भाग्य का चमत्कार चाहिए तो कुंडली का नौवां भाव देखें, चमक उठेगा भाग्य
 
जन्मकुंडली में नवम भाव भाग्य-धर्म-यश का है। इस भाव का स्वामी किस भाव में किस स्थिति, किन ग्रहों के साथ या दृष्ट है। उच्च का है या नीच का या फिर वक्री है अर्थात वर्तमान में किस ग्रह की दशा-अंतरदशा चल रही है। नवम भाव का स्वामी नवांश कुंडली में किस स्थिति में है व अन्य षोडश्य वर्गीय कुंडली में उसका क्या महत्व है। 
 
इन सबको देखकर भाग्य को बल दिया जाए तो भाग्यहीन व्यक्ति भी धीरे-धीरे भाग्यहीनता से उभरकर भाग्यवान बन जाता है। उसकी राह आसान होने लगती है। जो कल तक उससे दूर रहते थे, वे भी उसके पास आने लगते हैं। यही भाग्य का चमत्कार होता है। 
 
* नवम भाव का स्वामी नवम भाव में ही हो तो ऐसा जातक भाग्य लेकर ही पैदा होता है। उसे जीवन में तकलीफ नहीं आती। यदि इस भाव के स्वामी रत्न का धारण विधिपूर्वक कर लें तो तेजी से भाग्य बढ़ने लगता है।

 
* नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो भाग्य भाव से द्वादश होने के कारण व अष्टम अशुभ भाव में होने के कारण ऐसे जातकों को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अत: ऐसे जातक नवम भाव की वस्तु को अपने घर की टांड में ग्रहानुसार वस्त्र में रखें तो भाग्य बढ़ेगा।
 


 
* नवम भाग्यवान का स्वामी षष्ट भाव में हो तो उसे अपने शत्रुओं से भी लाभ होता है। नवम षष्ट में उच्च का हो तो वो स्वयं कभी कर्जदार नहीं रहेगा न ही उसके शत्रु होंगे। ऐसी स्थिति में उसे उक्त ग्रह का नग धारण नहीं करना चाहिए।

 
* नवम भाव का स्वामी यदि चतुर्थ भाव में स्वराशि या उच्च का या मित्र राशि का हो तो वह उस ग्रह का रत्न धारण करें तो भाग्य में अधिक उन्नति होगी। ऐसे जातकों को जनता संबंधित कार्यों में, राजनीति में, भूमि-भवन-मकान के मामलों में सफलता मिलती है। ऐसे जातक को अपनी माता का अनादर नहीं करना चाहिए।
 
* नवम भाव का स्वामी यदि नीच राशि का हो तो उससे संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। ज‍बकि स्वराशि या उच्च का हो या नवम भाव में हो तो उस ग्रह से संब‍ंधित वस्तुओं के दान से बचना चाहिए।

 
* नवम भाव में गुरु हो तो ऐसे जातक धर्म-कर्म को जानने वाला होगा। ऐसे जातक पुखराज धारण करें तो यश-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
 
* नवम भाव में स्वराशि का सूर्य या मंगल हो तो ऐसे जातक उच्च पद पर पहुंचते हैं। सूर्य व मंगल जो भी हों उससे संबंधित रंगों का प्रयोग करें तो भाग्य में वृद्धि होगी।
 
* नवम भाव का स्वामी दशमांश में स्वराशि या उच्च का हो व लग्न में शत्रु या नीच राशि का हो तो उसे उस ग्रह का रत्न पहनना चाहिए तभी राज्य, व्यापार, नौकरी जिसमें हाथ डाले वह जातक सफल होगा।
 
* नवम भाव की महादशा या अंतरदशा चल रही हो तो उस जातक को उक्त ग्रह से संबंधित रत्न अवश्य पहनना चाहिए। इस प्रकार हम अपने भाग्य में वृद्धि कर सफलता पा सकते हैं।

किसी ने सच ही कहा है कि 'भाग्य बिंन सब सून'। बिना भाग्य के आधी रोटी भी नहीं मिलती, भाग्यहीन व्यक्ति सफलता तक नहीं पहुंच पाता। यदि भाग्य का 10 प्रतिशत भी मिल जाए तो वह व्यक्ति अपने जीवन में निश्चित उन्नति पाता ही है।