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Last Modified: शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018 (11:51 IST)

ऐसे ढकती है दुनिया अपना सिर

ऐसे ढकती है दुनिया अपना सिर | religious dress
दुनिया में कई धर्म हैं। लोगों की धार्मिक आस्था उनके पहनावे में भी नजर आती है। अपने विश्वास और आस्था को व्यक्त करने के लिए अनुयायी सिर को कई तरह से ढकते हैं। जानिए कैसे-कैसे ढका जाता है सिर।
 
यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया। टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया। यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी। यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था।
 
माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर। 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था। इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था। दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं।
 
दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है। यह पगड़ी के अंतर्गत आता है। भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ। इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है। सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते। और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं।
 
चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है। इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती। यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है। फारसी में इसे टेंट कहते हैं। यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है। इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं।
 
नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है। ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं। ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं। कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है।
 
हिजाब
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है। सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए। सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं। तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है। वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है।
 
शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है। न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है। जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है। साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था। ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था।
 
बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे। इस के चार कोने होते हैं। लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था। 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा।
 
टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है। 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं। यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है। रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं। नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है।
 
हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है।इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया। इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है। और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है।
 
शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे। इसे शट्राइमल कहा जाता है। शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं। आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती। दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था। लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई। (क्लाउस क्रैमेर/एए)
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