इन देशों में चलते हैं प्लास्टिक के नोट
दुनिया में इस समय कुल 23 देशों में प्लास्टिक के नोट चलन में हैं। लेकिन इनमें से छह देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने सारे नोटों को प्लास्टिक के नोटों में तब्दील कर दिया है। चलिए डालते हैं इन्हीं पर एक नजर।
ऑस्ट्रेलिया
दुनिया में ऑस्ट्रेलिया पहला देश है जिसने 1988 में प्लास्टिक के नोटों की शुरुआत की। साथ ही वह दुनिया का अकेला देश है जहां पॉलिमर नोटों का उत्पादन होता है।
न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में 1999 में कागज के सारे नोटों की जगह पोलिमर नोटों ने ले ली। देश की मुद्रा का नाम न्यूजीलैंड डॉलर है, जिसका सबसे छोटा नोट पांच डॉलर का और सबसे बड़ा नोट 100 डॉलर का है।
ब्रूनेई
दक्षिण पूर्व एशिया में बसा छोटा सा देश ब्रूनेई दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता है। उनकी मुद्रा ब्रूनेई डॉलर है। फर्जी नोटों की समस्या को देखते हुए ब्रूनेई में प्लास्टिक के नोट शुरू किए गए।
वियतनाम
वियतनामी डोंग का सबसे बड़ा नोट पांच लाख का होता है, जिसका मूल्य 20 अमेरिकी डॉलर के बराबर होता है। वियतनाम में 2003 में पहली बार प्लास्टिक के नोटों की शुरुआत हुई। अब वहां सारे नोट प्लास्टिक के हैं।
रोमानिया
रोमानिया अकेला यूरोपीय देश है जिसने पूरी तरह पॉलिमर नोटों को अपनाया है। देश की मुद्रा का नाम रोमैनियन लेऊ है और यहां 2005 में सारे नोटों को पॉलिमर नोटों में तब्दील कर दिया गया।
वियतनाम
वियतनामी डोंग का सबसे बड़ा नोट पांच लाख का होता है, जिसका मूल्य 20 अमेरिकी डॉलर के बराबर होता है। वियतनाम में 2003 में पहली बार प्लास्टिक के नोटों की शुरुआत हुई। अब वहां सारे नोट प्लास्टिक के हैं।
पापुआ न्यू गिनी
पापुआ न्यू गिनी 1949 में ऑस्ट्रेलिया से आजाद हुआ। 1975 तक वहां ऑस्ट्रेलियन डॉलर ही चलता रहा। लेकिन 19 अप्रैल 1975 को पापुआ न्यू गिनी में कीना के रूप में नई मुद्रा अपनाई गई। आज वहां सारे नोट प्लास्टिक के हैं।
भारत में भी?
भारत में भी सरकार प्लास्टिक के नोट चलाने की योजना बना रही है। जल्द ही प्लास्टिक का 10 का नोट लाने की तैयारी है। सबसे पहले पांच शहरों कोच्चि, मैसूर, जयपुर, शिमला और भुवनेश्वर में ट्रायल होगा।
फायदा
बैंक ऑफ कनाडा का कहना है कि प्लास्टिक के नोट कागज के नोटों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा चलते हैं। नमी और गंदगी भी कम पकड़ते हैं। साथ ही उनकी नकल करना भी मुश्किल होता है।
नुकसान
प्लास्टिक नोट मोड़ने मुश्किल होते हैं। बहुत चिकने होने की वजह से कई बार उन्हें हाथ से गिनना मुश्किल होता है। कई कम विकसित देशों में उनकी रिसाइकलिंग की सुविधाएं नहीं हो सकती हैं।