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Last Modified: शनिवार, 25 नवंबर 2017 (12:10 IST)

मछुआरों की मदद करते पालतू ऊदबिलाव

मछुआरों की मदद करते पालतू ऊदबिलाव |  fisherman in bangladesh
ऊदबिलाव की मदद से मछली पकड़ना सदियों पुरानी कला है। दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में यह लुप्त हो चुकी हैं, लेकिन बांग्लादेश में यह अब भी जिंदा है।
 
1,400 पुरानी कला
ऊदबिलाव के सहारे मछली पकड़ने का सबसे पुराना जिक्र चीन में मिलता है। वहां सन 600 के आस पास ऐसा किया जाने लगा। धीरे धीरे यह तकनीक दूसरे देशों तक भी पहुंची। लेकिन आज ऐसा बांग्लादेश में ही देखने को मिलता है।
 
झुंड में ऊदबिलाव
बांग्लादेश में सुंदरबन डेल्टा के पास के जिलों नौराएल और खुलना में कुछ मछुआरे मछली पकड़ने के लिए ऊदबिलाव पालते हैं। ऊदबिलावों को रस्सी से बांधकर रखा जाता है।
 
मछली हांकते ऊदबिलाव
सुबह तड़के या शाम को ऊदबिलावों को लेकर मछुआरे नदी में जाते हैं। ऊदबिलावों के साथ ही जाल का इस्तेमाल किया जाता है। ऊदबिलाव के डर की वजह से मछलियां जाल की ओर आती हैं।
 
जाल में क्या क्या
जाल में सिर्फ मछलियां ही नहीं फंसती, बल्कि केकड़े और झींगे भी आते हैं। आम तौर पर एक बार में मछुआरे चार से 12 किलो मछली पकड़ लेते हैं।
मछलियों की कमी
लेकिन मछलियों की संख्या में बहुत ज्यादा कमी की वजह से मछुआरे परेशान हो रहे हैं। उनके लिए ऊदबिलावों को पालना भी मुश्किल हो रहा है।
 
घटते पालतू ऊदबिलाव
एक अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश के मछुआरों के पास अब करीब 176 पालतू ऊदबिलाव ही बचे हैं। ऊदबिलाव एक दिन में 400 ग्राम से लेकर एक किलोग्राम तक मछली खाता है।
 
ऊदबिलावों की खुराक
मछुआरे बड़ी मछलियां बाजार में बेच देते हैं और छोटी मछलियों को ऊदबिलावों को खिला देते हैं। आम तौर पर आजाद ऊदबिलाव एक बड़ी मछली पकड़ता है और दिन भर उसे ही खाता है। लेकिन यहां छोटी मछलियों के मारे जाने से इको संतुलन गड़बड़ा चुका है।
 
बड़ी मछलियां खत्म
तीन से छह महीने बाद यही मछलियां बड़ी होती हैं। लेकिन अगर वह बचपन में ही मारी जाएं तो उनका विकास क्रम भी टूट जाता है और उन पर निर्भर दूसरे जीव भी भूखे रह जाते हैं।
 
नींद का वक्त
ऊदबिलाव दिन भर में अधिकतम आठ घंटे ही सक्रिय रहते हैं। बाकी समय वो आराम फरमाना पंसद करते हैं। मछुआरों के साथ एक ट्रिप लगाने के बाद वो घर लौट आते हैं।
 
आखिरी पड़ाव पर मछुआरे
बांग्लादेश के ज्यादातर मछुआरे अब ऊदबिलावों का सहारा नहीं लेते। पर्याप्त मछलियां न होने के कारण उन्हें पालना महंगा साबित हो रहा है। मछली पकड़ने की कुछ नई तकनीकें सरल भी है और सस्ती भी।
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